महाकुंभ भगदड़ की जांच कर रहे न्यायिक आयोग का दायरा बढ़ा, सरकार ने हाईकोर्ट में दी जानकारी
महाकुंभ में हुई भगदड़ की जांच के लिए बनी न्यायिक आयोग का दायरा बढ़ा दिया गया है। सरकार ने इसकी जानकारी सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में दिया। महाकुंभ मेला प्रशासन का जिला प्रशासन से समन्वय कैसा था, इसकी भी जांच आयोग करेगा।
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यूपी की योगी सरकार ने महाकुंभ भगदड़ की न्यायिक जांच कर रहे आयोग का दायरा बढ़ा दिया है। आयोग अभ घटना में हुई मौतों एवं सम्पत्ति (जन-धन) की हानि को भी जांच के बिंदुओं में शामिल कर लिया है। इसके साथ ही आयोग इस बिंदु पर भी जांच करेगा कि भगदड़ के दौरान महाकुम्भ मेला प्रशासन का जिला प्रशासन आदि से समन्वय कैसा था। राज्य सरकार की ओर से सोमवार को यह जानकारी दिए जाने पर मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने भगदड़ की घटना को लेकर दाखिल जनहित याचिका निस्तारित कर दी।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव सुरेश चंद्र पांडेय की ओर से दाखिल जनहित याचिका में कहा गया था कि सरकार द्वारा गठित न्यायिक आयोग को सीमित जांच करने को कहा गया है। उसमें जन-धन हानि को शामिल नहीं किया गया है। उनका कहना था कि आयोग की जांच में घटना कैसे घटी और भविष्य में ऐसी घटना न घटे, ये बिंदु ही शामिल थे।
पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने महाकुम्भ में 28 जनवरी की आधी रात हुई भगदड़ की जांच न्यायिक निगरानी में करने और घटना के बाद लापता लोगों का सही ब्योरा देने की मांग में दाखिल इस जनहित याचिका पर राज्य सरकार से पूछा था कि न्यायिक आयोग की जांच का दायरा बढ़ाकर इसमें हताहतों की संख्या की पहचान करने और भगदड़ से संबंधित अन्य शिकायतों पर गौर करने को शामिल किया जा सकता है या नहीं। कोर्ट ने सरकार से इस संदर्भ में जानकारी मुहैया कराने को कहा था। जनहित याचिका में कहा गया था कि आयोग के कार्यक्षेत्र में भगदड़ के अन्य प्रासंगिक विवरणों की जांच शामिल नहीं है।
जनहित याचिका में महाकुम्भ में भगदड़ के बाद लापता हुए व्यक्तियों का विवरण एकत्र करने के लिए न्यायिक निगरानी समिति के गठन की मांग की गई है। सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता सौरभ पांडेय ने कहा था कि कई मीडिया पोर्टल ने राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर बताई गई मौतों (30) की संख्या पर विवाद किया है।
एडवोकेट सौरभ पांडेय ने विभिन्न समाचार पत्रों और पीयूसीएल की एक प्रेस विज्ञप्ति का भी हवाला देते हुए कहा था कि मृतकों के परिजनों को मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भागने पर मजबूर होना पड़ रहा है। उन्हें मृतकों का बिना पोस्टमार्टम 15,000 रुपये देकर यह आश्वासन दिया गया है कि मृत्यु प्रमाण पत्र दिया जाएगा लेकिन लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है जबकि राज्य का कर्तव्य लोगों की मदद करना है।
अधिवक्ता ने बताया था कि उनके पास एम्बुलेंस चलाने वालों के वीडियो हैं, जिन्होंने बताया है कि वे कितने लोगों को अस्पताल ले गए थे। उन्होंने कहा कि आधिकारिक बयानों में सेक्टर 21 और महाकुम्भ मेला के आसपास के अन्य इलाकों में हुई भगदड़ का उल्लेख नहीं किया गया है। इस पर पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया था कि जनहित याचिका में की गई सभी प्रार्थनाओं पर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त न्यायिक आयोग विचार कर रहा है।
अभी न्यायिक आयोग की जांच के दायरे में दो बिंदु शामिल हैं। पहला उन कारणों एवं परिस्थितियों का अभिनिश्चय करना, जिसके कारण उक्त घटना हुई। दूसरा, भविष्य में इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति को रोकने के संबंध में सुझाव देना।