कौन हैं जंगम साधु, महाकुंभ में शिव महिमा का कर रहे गान; पोशाक में क्या खास
- Maha Kumbh 2025: महाकुंभ 2025 में अखाड़ों के सामने अपनी ही धुन में मस्त होकर शिव महिमा का बखान करती यह टोली जंगम साधुओं की है। एक जंगम साधु ने बताया कि हजार सालों से हमारी यह परंपरा चल रही है।
Maha Kumbh 2025: सिर पर दशनामी पगड़ी, गेरुआ लुंगी-कुर्ता और पगड़ी पर गुलदान में मोर पंखों का गुच्छा। इसके साथ ही पगड़ी में लगे हैं तांबे-पीतल की घंटियों की तरह दिखने वाले आभूषण। महाकुंभ 2025 में अखाड़ों के सामने अपनी ही धुन में मस्त होकर शिव महिमा का बखान करती यह टोली जंगम साधुओं की है। लाइव हिन्दुस्तान जब इनसे बात करने पहुंचा तो यह एक अखाड़े के सामने अपनी प्रस्तुति दे रहे थे। हमसे बात करते हुए एक जंगम साधु ने बताया कि हजार सालों से हमारी यह परंपरा चल रही है। हम शिव महिमा का गान करते हैं। उन्होंने बताया कि हम कुरुक्षेत्र से आते हैं और फिर वहीं चले जाते हैं।
बेहद खास है पोशाक
अपनी वेशभूषा के बारे में जंगम साधु ने बताया कि हमारी पोशाक में भगवान शिव के प्रतीक नागराज, भगवान विष्णु के मोरपंख से बना मुकुट, माता पार्वती के आभूषणों का प्रतीक बाला और घंटियां हैं। यह साधु कुछ खास किस्म के वाद्ययंत्र बजाकर भजन सुनाते हैं। इनके भजन में शिव विवाह कथा, कलयुग की कथा और शिव पुराण होता है। जिस अखाड़े के सामने यह भजन सुना रहे थे, वहां के नागा संन्यासी ने भजन खत्म होने के बाद इनकी खूब तारीफ की। नागा संन्यासी ने कहाकि भजन सुनकर मन प्रसन्न हो गया।
हमसे बात करते हुए एक जंगम साधु ने बताया कि हम भगवान शिव के पुरोहित हैं। इसके अलावा हम दशनाम जूना अखाड़े के भी पुरोहित हैं। जंगम साधुओं का संबंध ब्राह्मण वंश से है। उनके वंशजों के अलावा किसी अन्य को यह परंपरा आगे बढ़ाने का कोई हक नहीं है। बताते हैं कि सिर्फ जंगम साधु का पुत्र ही जंगम साधु बन सकता है। हर पीढ़ी में जंगम परिवार से एक सदस्य साधु बनता है। इस परंपरा का निर्वाह सदियों से किया जा रहा है।
कब से शुरू हो रहा महाकुंभ
महाकुंभ 2025 की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। स्नानार्थियों के लिए सभी जरूरी इंतजाम कर दिए गए हैं। वहीं, करीब-करीब सभी अखाड़ों के शिविर भी मेला क्षेत्र में लग चुके हैं। 13 जनवरी को महाकुंभ का पहला शाही स्नान है। महाकुंभ 26 फरवरी को महाशिवरात्रि तक चलेगा। इस बीच गुरुवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी प्रयागराज पहुंचे थे। उन्होंने विभिन्न अखाड़ों के शिविरों में जाकर संतों से मुलाकात की।