अखिलेश ने फोन उठाना बंद किया तब स्वाभिमान बचाने के लिए गठबंधन तोड़ा: मायावती
- कांग्रेस-सपा से पीडीए के लोगों को कुछ मिलने वाला नहीं लखनऊ- विशेष संवाददाता
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बसपा सुप्रीमो मायावती ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ने के कारणों को एक बार फिर से गिनाते हुए कहा है कि अखिलेश यादव ने फोन उठाना बंद कर दिया था तब स्वाभिमान बचाने के लिए गठबंधन तोड़ा। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से पीडीए के लोगों को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।
बसपा सुप्रीमो ने पार्टी कार्यकर्ताओं और समाज के लोगों के नाम 59 पेज की एक बुक जारी की है। इसमें बसपा के गठन, कांशीराम और डा. भीमराव अंबेडकर के समाज के त्याग आदि की एक-एक कर चर्चा की गई है। इसमें समाजवादी पार्टी के साथ वर्ष 1993 और लोकसभा चुनाव 2019 में किए गए गठबंधन व उसके टूटने के कारणों की भी चर्चा की है। उन्होंने इसमें कहा है कि स्टेट गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर सपा से वर्षों बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया गया। बसपा को 10 और सपा को पांच सीटें मिलीं। सपा मुखिया अखिलेश ने बसपा से संबंध बनाए रखना तो दूर बसपा के प्रमुख नेताओं का फोन तक उठाना बंद कर दिया, तो गठबंधन न तोड़ती तो क्या करती?
सपा ने सिर्फ एक जाति विशेष की जगह
उन्होंने कहा कि सपा में एक जाति विशेष को छोड़कर बाकी पीडीए के लिए जगह नहीं है। ब्राह्मण समाज की तो कतई नहीं, क्यूंकि सपा व भाजपा सरकार में इनका उत्पीड़न व उपेक्षा किसी से छिपी नहीं है। इनका उत्थान सिर्फ बसपा में ही है। उन्होंने कहा है कि अलग-थलग रहने से पिछड़े वर्गों की बड़ी हानि हुई है। उन्हें दलितों व आदिवासियों के साथ मिलकर राजनीतिक शक्ति बनानी होगी। यह तभी संभव है, जब बसपा के साथ जुड़ेंगे।
ईडब्ल्यूएस आधार गलत
मायावती ने कहा है कि संविधान के साथ खिलवाड़ करने का एक ताजा उदाहरण आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देना है। भाजपा व कांग्रेस ने मिलकर संविधान के 103वें संशोधन के जरिए आरक्षण का नया अध्याय जोड़कर गरीबी उन्मूलन का सरकारी स्कीम बना दिया। यह रोग आईएएस बनने में भी लगा हुआ है।
क्यूं नहीं दिया अलग आरक्षण
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा है कि महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण की पुरानी मांग के लिए संविधान संशोधित कर दिया गया। इसके बाद भी एससी, एसटी व ओबीसी महिलाओं के अधिकारों की उपेक्षा करते हुए अलग से आरक्षण नहीं दिया गया। यह इनके जातिवादी रवैया का नया प्रमाण है।
निजी क्षेत्रों व ठेकों में मिले आरक्षण
उन्होंने यह भी कहा है कि निजी क्षेत्रों को हर प्रकार की मदद देने के बाद भी आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। बसपा ने अपनी सरकार में ठेकों में आरक्षण देकर मिसाल कायम की थी, लेकिन भाजपा, कांग्रेस व सपा इसके विरोधी हैं। एससी, एसटी व ओबीसी उत्थान के लिए नियोजित बजट भी दूसरे कामों में खर्च किया जा रहा है। भाजपा सरकार में इसे देखा जा सकता है।
भाजपा-कांग्रेस आरक्षण के पक्ष में नहीं
भाजपा-कांग्रेस का रवैया एससी, एसटी व ओबीसी के प्रति उदारवादी रहा है, सुधारवादी नहीं। वे इसके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्त के पक्षधर नहीं हैं, वरना आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर दी गई होती।
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