पीडीए की बिसात पर मिल्कीपुर में बढ़ीं मुश्किलें, नए दांव से और कठिन हुई भाजपा-सपा की जंग
- मिल्कीपुर के जातीय समीकरण के हिसाब से करीब डेढ़ लाख दलित वोट हैं। इसमें से सर्वाधिक 55 हजार पासी वोट हैं। इन्हीं पासी वोटों पर भाजपा और सपा दोनों की निगाहें हैं। सपा सांसद अवधेश प्रसाद को अपने बेटे अजीत प्रसाद को यहां से जिताने के लिए अब और मेहनत करनी पड़ेगी।सजातीय वोटों में सेंधमारी का खतरा है।
Milkipur Assembly by-election: यूपी की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में पीडीए की बिसात पर आमने-सामने खड़े भाजपा और सपा के बीच की जंग अब और कठिन हो गई है। पीडीए में डी यानी दलित वोटों में सपा बड़ी दावेदारी कर रही थी लेकिन अब भाजपा ने चंद्रभान पासवान को उतार कर तीर निशाने पर लगाने की कोशिश की है। अब सपा के सामने चुनौती है कि कैसे वह अपनी जीती हुई सीट को बरकरार रख पाती है।
असल में मिल्कीपुर के जातीय समीकरण के हिसाब से करीब डेढ़ लाख दलित वोट हैं। इसमें से सर्वाधिक 55 हजार पासी वोट हैं। इन्हीं पासी वोटों पर भाजपा और सपा दोनों की निगाहें हैं। सपा सांसद अवधेश प्रसाद को अपने बेटे अजीत प्रसाद को यहां से जिताने के लिए अब और मशक्कत करनी पड़ेगी। उनके सामने सजातीय वोटों में सेंधमारी का खतरा है। अभी तक सपा को इस बात से संतोष है कि उपचुनाव में जनता उसे ही जिताती है।
1995 के बाद से मिल्कीपुर में दो उपचुनाव हो चुके हैं और तीसरा अब होने जा रहा है। पहले दो में सपा ने जीत हासिल की थी। पहले उपचुनाव में सपा के यादव प्रत्याशी के आगे भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशी थे। उस वक्त कल्याण सिंह की सरकार थी लेकिन सपा विपक्ष में रहते हुए चुनाव जीत गई।
दूसरी बार उपचुनाव 2004 में हुआ तब सपा की सरकार थी। तब भी सपा के रामचंद्र यादव उपचुनाव जीत गए और बसपा दूसरे नंबर पर रही। मिल्कीपुर सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2024 में सपा के अवधेश प्रसाद के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई थी। इससे पहले नेता प्रसाद मिल्कीपुर सीट से विधायक थे। अब इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर है।