Challenges Faced by Lekhpals in Rural Administration Corruption Resource Shortage and Safety Concerns बोले बाराबंकी:दर्जनभर जिम्मेदारियां पर संसाधनों का अभाव, Barabanki Hindi News - Hindustan
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बोले बाराबंकी:दर्जनभर जिम्मेदारियां पर संसाधनों का अभाव

Barabanki News - बाराबंकी में लेखपालों को भूमि रिकॉर्ड अपडेट, प्रमाण पत्रों की जांच, और सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। तकनीकी उपकरणों की कमी, भ्रष्टाचार के आरोप, और असुरक्षित...

Newswrap हिन्दुस्तान, बाराबंकीFri, 16 May 2025 06:00 PM
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बोले बाराबंकी:दर्जनभर जिम्मेदारियां पर संसाधनों का अभाव

बाराबंकी। लेखपालों के जिम्मे आज एक नहीं, बल्कि दर्जनों कार्य है, भूमि का रिकॉर्ड अपडेट करना, वरासत दर्ज करना, आय-जाति-निवास प्रमाण पत्रों की जांच, पीएम किसान सम्मान निधि योजना में सत्यापन, फसल बीमा, राहत मुआवजा वितरण, आपदा राहत सर्वे, सरकारी भूमि की निगरानी, भूमि विवादों की रिपोर्टिंग, जमीन की पैमाइश, विवादों का निस्तारण, सीमांकन आदि लेखपालों के रोजमर्रा के कार्य हैं। लेकिन इसमें उन्हें तकनीकी उपकरणों की कमी, पटवारी अभिलेखों में विसंगतियां और ग्रामीणों के आपसी विवादों से निपटना बेहद कठिन बनाता है। लेखपालों के माध्यम से ही सरकारी योजनाओं का लाभ आम ग्रामीण तक पहुंचता है। जमीन से जुड़े विवादों का प्राथमिक समाधान उन्हीं के जरिए होता है।

प्रमाण पत्रों के सत्यापन से लेकर प्राकृतिक आपदाओं में राहत सामग्री की सूची बनाने तक, हर कार्य में इनकी भागीदारी होती है। जिले के लेखपाल अपनी जिम्मेदारियों को निभा तो रहे हैं, लेकिन सिस्टम की खामियों, बढ़ते दबाव और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। यदि सरकार व प्रशासन समय रहते इनके हालात पर ध्यान नहीं देता, तो इसका असर सीधे आम जनता की सेवाओं पर पड़ सकता है। मेहनत के बाद भी कार्य प्रणाली पर उठते सवाल: राजस्व विभाग के जमीनी सिपाही कहे जाने वाले लेखपालों की भूमिका ग्रामीण प्रशासन, भूमि विवाद निस्तारण और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में बेहद अहम है। लेकिन इनकी मेहनत के बावजूद इनकी कार्य प्रणाली पर लगातार सवाल उठते हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से लेकर जनता की शिकायतों तक, लेखपालों पर नकारात्मक छवि बनती जा रही है। जिससे उनकी मानसिक और व्यावसायिक परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। एक लेखपाल के ऊपर चार से पांच ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी होती है। फसल नुकसान का सर्वे हो या पीएम किसान योजना का सत्यापन, बाढ़ राहत हो या सीमांकन-हर जगह उनकी उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। लेकिन ना तो समय पर सहयोगी कर्मचारी मिलते हैं, न ही पर्याप्त संसाधन। भ्रष्टाचार के आरोप, कारण और प्रतिक्रिया: लेखपालों पर रिश्वत मांगने या फाइलों में देरी करने के आरोप अक्सर लगाए जाते हैं। हालांकि, लेखपाल इन आरोपों को खारिज नहीं करते, लेकिन उनके मुताबिक इसके पीछे कई व्यवस्थागत कारण हैं। लेखपाल संघ के एक प्रतिनिधि का कहना है, हम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, लेकिन कोई यह नहीं देखता कि हम बिना सहायक, बिना वाहन और बिना तकनीकी सुविधा के काम करते हैं। काम की अधिकता और संसाधनों की कमी कई बार प्रक्रिया को जटिल बना देती है। तमाम लेखपालों का कहना है कि लेखपालों को दोष देने से पहले सिस्टम की खामियों को समझना और सुधारना जरूरी है। तभी ग्रामीण भारत का यह प्रशासनिक तंत्र सही मायनों में सशक्त हो सकेगा। रिश्वत के नाम पर विभाग को बदनाम कर चुके हैं कई लेखपाल : बाराबंकी। कई लेखपाल ऐसे हैं, जो कुछ पैसों के लिए राजस्व विभाग को बदनाम करने से बाज नहीं आते। हाल ही में नवाबगंज से लेकर फतेहपुर तहसील के तीन लेखपालों को रिश्वत लेते हुए एंटी करप्शन की टीम ने रंगे हाथों पकड़ा था। पिछले माह नवाबगंज तहसील में लेखपाल व शिकायत कर्ता के बीच मारपीट का मामला भी सामने आया था। ऐसे में दोनों पक्षों की तहरीर पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करते जांच कर रही है। लेखपालों के निजी मुंशी देख रहे काम काज: जिलों में लेखपालों की भारी कमी और बढ़ते कार्यभार के चलते अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कई बार इन्हें निजी लोगों की मदद लेनी पड़ रही है। ये निजी व्यक्ति बिना किसी अधिकारिक पहचान के राजस्व संबंधी कार्यों में सहायता कर रहे हैं, जिससे न केवल गोपनीयता भंग होती है बल्कि भ्रष्टाचार की संभावना भी बढ़ जाती है। एक लेखपाल ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि हमें मजबूरी में निजी व्यक्तियों से मदद लेनी पड़ती है, वरना समय पर काम पूरा करना नामुमकिन हो जाता है। लेकिन इससे विभागीय नियमों का उल्लंघन होता है। लेखपालों का कहना है कि जब तक उनकी संख्या पर्याप्त नहीं की जाती और उन्हें तकनीकी व मानव संसाधनों से लैस नहीं किया जाता, तब तक न तो भूमि संबंधी विवादों का समय पर निस्तारण हो सकेगा और न ही सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन। निजी व्यक्तियों पर निर्भरता न केवल गलत है, बल्कि यह प्रशासनिक पारदर्शिता को भी खतरे में डालती है। उठाती रहती है शस्त्र लाइसेंस देने की मांग:राजस्व विभाग के अहम स्तंभ लेखपाल न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि से जुड़े विवादों का समाधान करते हैं, बल्कि तमाम सरकारी योजनाओं की निगरानी और क्रियान्वयन में भी उनकी सीधी भूमिका होती है। लेकिन फील्ड में काम करते समय वे अक्सर असुरक्षित महसूस करते हैं। विशेष रूप से जब उन्हें विवादित भूमि पर पैमाइश करनी हो या आपसी झगड़ों में हस्तक्षेप करना पड़े। जिले में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां लेखपालों को भूमि पैमाइश या कब्जा हटवाने के दौरान स्थानीय दबंगों और विवादित पक्षों की धमकियों का सामना करना पड़ा। कुछ मामलों में मारपीट तक हो चुकी है। एक लेखपाल ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हम जब फील्ड में जाते हैं तो न तो हमारे पास सुरक्षा होती है, न कोई सहयोगी। जमीन के झगड़ों में अक्सर दोनों पक्ष आक्रामक होते हैं। कई बार हालात जानलेवा हो जाते हैं। लेखपाल संघ वर्षों से मांग करता आ रहा है कि फील्ड ड्यूटी करने वाले लेखपालों को आत्मरक्षा के लिए शस्त्र लाइसेंस की सुविधा दी जाए। उनका तर्क है कि पुलिस हर बार तत्काल नहीं पहुंच पाती और मौके पर लेखपाल अकेले होते हैं। प्रशासनिक स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करने की बात तो की जाती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर लेखपाल अब भी असुरक्षा की भावना के साथ काम कर रहे हैं। लेखपालों का कहना है कि भूमि विवादों के निस्तारण, सरकारी रिकॉर्ड की जांच और राहत कार्यों में फील्ड पर डटे लेखपालों की सुरक्षा की गारंटी देना अब वक्त की मांग है। बोले जिम्मेदार: एडीएम अरुण कुमार सिंह का इस बारे में कहना है कि लेखपालों की जो भी समस्याएं आती हैं उनका निस्तारण प्राथमिकता पर कराया जाता है। विवादित स्थलों में लेखपालों के साथ स्थानीय थाने की पुलिस भेजी जाती है। यदि कहीं पुलिस मिलने की समस्या होती है तो लेखपालों को अपने सर्किल के एसडीएम को इसकी सूचना देनी चाहिए।

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