महाकुंभ के अंतिम दिन वायुसेना की 'महासलामी', संगम के आकाश में बनाया त्रिशूल, देखिए तस्वीरें
महाकुंभ के अंतिम दिन वायुसेना ने ‘महासलामी’ दी। एयरशो से आकाश में ही त्रिशूल बना दिया। संगम के ऊपर सुखोई, एएन-32 और चेतक ने उड़ान भरी। हैरतअंगेज करतब देख हर कोई अचंभित होता रहा।
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महाकुंभ के समापन पर भारतीय वायुसेना ने संगम में डुबकी लगा रहे लाखों श्रद्धालुओं को रोमाांचक अंदाज में महासलामी दी। महाशिवरात्रि के दिन दोपहर लगभग 1.30 बजे संगम के आसमान पर विमानों की आवाज सुनकर श्रद्धालु चौंक गए। आकाश में सुनाई पड़ने वाली आवाज सामान्य विमान या श्रद्धालुओं पर फूल बरसाने वाले हेलीकॉप्टर की नहीं थी। गर्जना सुनने के बाद श्रद्धालुओं ने आसमान की ओर देखा तो उनकी नजर नीचे नहीं उतरी।
आसमान में गर्जना किसी और की नहीं, बल्कि भारतीय वायुसेना की अग्रिम पंक्ति का लड़ाकू विमान सुखोई-30 की थी। वायुसेना के मोटिवेशनल फ्लाई पास्ट का नेतृत्व कर रहे सुखोई-30 की आवाज ने श्रद्धुालुओं को आसमान की ओर आकर्षित किया। अद्भुत कलाबाजी करते हुए तीन सुखोई विमानों ने आसमान में धुएं से त्रिशूल बनाया तो संगम क्षेत्र तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। संगम क्षेत्र में खड़े श्रद्धालु हर-हर महादेव के नारे लगाने लगे। जबतक विमान आकाश में उड़ते रहे, संगम की रेती पर मानों सबकुछ थम गया। सभी की निगाहें आसमान पर ही थीं।
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आसमान में यह नजारा देख श्रद्धालुओं ने मोबाइल निकाला और ऐतिहासिक पल को कैमरे में कैद करते रहे। हेलीकॉप्टर के साथ विमानों को आकाश मे हैरतअंगेज कलाबाजियां देख रहे कई श्रद्धालुओं को पिछले साल संगम क्षेत्र में वायुसेना के एयर शो की याद आ गई। शो के दौरान श्रद्धालुओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी के भी नारे लगाए। इसे देखने वाले श्रद्धालुओं ने कहा, महाकुम्भ में संगम स्नान के साथ आसमान में वायुसेना का प्रदर्शन यादगार रहा। मध्य वायु कमान के बमरौली स्थित एयर बेस से सुखोई के साथ एएन-32 विमान और चेतक ने उड़ान भरी थी।
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हर दिन एक करोड़ 47 लाख श्रद्धालुओं ने किया स्नान
महाकुम्भ 2025 महाशिवरात्रि के स्नान पर्व के साथ पूरा हुआ। इसमें हर दिन औसतन लगभग एक करोड़ 47 लाख श्रद्धालुओं ने पावन त्रिवेणी में पुण्य की डुबकी लगाई। सनातन धर्म के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में पहली बार अहसास हुआ कि हर दिन कोई स्नान पर्व है। कई ऐसे दिन रहे जब लगातार करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का यहां आना हुआ। सिलसिला ऐसा चला जिसकी कल्पना शायद महाकुम्भ शुरू होने से पहले किसी ने नहीं की थी। श्रद्धालुओं की अनुमानित संख्या के सरकार के आंकड़े भी काफी पीछे रह गए।
महाकुम्भ शुरू होने से पहले निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने एक पोडकॉस्ट में इसे पूर्ण कुम्भ बताया था। उन्होंने कहा कि यह 12-12 वर्षों के 12 चरण को पूरा करके आने वाला पर्व है, इसलिए इसे महाकुम्भ नहीं पूर्ण कुम्भ कहना उचित है। इसके बाद अधिकांश संतों का इसे समर्थन मिला। बात पूरी दुनिया में कुछ इस कदर फैली कि फिर यह महाकुम्भ अपने आप में एक रिकॉर्ड ही बन गया। मेले में कई दिन करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने स्नान किया। यह क्रम ऐसा बना कि कई दिनों तक टूटा ही नहीं।