Hindustan Special: यूपी के इस जिले में 300 साल पुरानी दरगाही बाबा की समाधि, जानिए क्यों है खास
यूपी के हापुड़ जिले के सिंभावली में दरगाही बाबा की 300 साल से भी पुरानी समाधि है। यह श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। इसे लेकर दावा किया जाता है कि यहां सच्चे मन से आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
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उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के सिंभावली में दरगाही बाबा की 300 साल से भी पुरानी समाधि है। जो श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। इसे लेकर दावा किया जाता है कि यहां सच्चे मन से आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस समाधि पर हर वर्ष वसंतकालीन तीन दिवसीय वार्षिक मेला लगता है। जहां देर शाम तक महिला बच्चों समेत भक्तों का तांता लगा रहता है। आज हम आपको इन बाबा की समाधि के बारे में बताने जा रहे हैं। इसकी क्यों मान्यता इतनी बढ़ी और इसके पीछे का क्या है राज।
वसंत पंचमी पर लगता है तीन दिवसीय मेला
मुगलकाल में तत्कालीन बादशाह शाहआलम ने अपनी मन्नत पूरी होने पर सिंभावली क्षेत्र के गांव लिसड़ी में दरगाही बाबा की समाधि बनवाई थी। रविवार को वसंत पंचमी के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय वार्षिक मेला प्रारंभ हुआ। पहले दिन महिला बच्चों समेत हजारों भक्तों ने बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाकर मन्नत मांगी। दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड सहित विभिन्न प्रांतों के भक्त दरगाही बाबा की समाधि पर लग रहे मेले में पहुंच रहे हैं, जो बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाने के बाद दीप प्रज्ज्वलित कर संतान प्राप्ति की जात लगा रहे हैं। प्रात:काल सुबह साढ़े सात बजे प्रबंधक महंत देवेश्वरानंद ने समाधि पर वसंत रखने की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया। इसके पश्चात महंत देवेश्वरानंद ने समाधि पर सबसे पहली चादर चढ़ाकर भक्तों को प्रसाद वितरित किया।
सदियों से बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाने आ रहे
भक्तों का अटूट विश्वास है कि बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाकर मन्नत मांगने वालों की मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है, जो अपनी मुराद पूरी होने पर अगले साल बाबा का आभार जताने समाधि पर प्रसाद चढ़ाने आते हैं। जाह्नवी, उर्वशी, शुभम, ऊमा, सुमन, कौशल, रामप्यारी, हरजिंदर कौर, दुलारी, नैनवती, सुषमा, रिंकी ने बताया कि उनके परिजन सदियों से बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाने आते हैं, जिससे उनकी सभी जायज मुराद पूरी होती हैं।
बाबा के आशीर्वाद से हर मुराद पूरी होती है
दरगाही बाबा की समाधि के प्रबंधक महंत डॉ. देवेश्वरानंद ने बताया कि बाबा दुर्गादास उदासीन संप्रदाय से जुड़े संत थे, जिन्होंने भगवान की चरणागति प्राप्त कर सिद्धि हासिल की थी। उनके आशीर्वाद से अपनी मुराद पूरी होने पर मुगल शासक शाहआलम उनका शिष्य बन गया था, जिसने 300 साल से भी पहले सिंभावली क्षेत्र के गांव लिसड़ी में बाबा की समाधि का निर्माण कराया था। जिसे वर्तमान में दरगाही बाबा की समाधि के नाम से जाना जाता है, जहां वसंत पंचमी पर भरने वाले तीन दिवसीय वार्षिक मेले में एक लाख से अधिक भक्त चादर और प्रसाद चढ़ाने आते हैं।
क्या है मान्यता
बाबा दरगाही मंदिर पर हर वर्ष की वसंत पंचमी पर लगने वाले तीन दिवसीय विशाल मेले में विभिन्न प्रांतों से आने वाले श्रद्धालु अपने अपने बच्चों के मुंडन, नव दम्पति, नौकरी लगने व संतान प्राप्ति पर दर्शन करने के लिए आते हैं। रात में मंदिर परिसर की ओर से बनाए गए विश्राम गृह में रात को रुक कर सुबह में समाधि पर प्रसाद चढ़ाते हैं। बाबा दरगाही पर लगने मेले में आने वाले श्रद्धालु मंदिर परिसर के बाहर बिकने वाली गुड़ की भेली और पीली चादर का चढ़ावा चढ़ाते हैं। इसके बाद मंदिर प्रबंधन द्वारा तैयार किए गए हलवे (कढ़ाह) का प्रसाद बांटा जाता है।
मेले में रंगत बढ़ी, लोगों की भीड़ उमड़ रही
दरगाही बाबा की समाधि पर लगे मेले में इस बार भी पुलिस प्रशासनिक स्तर से सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। मेले में हवाई झूला, मिकी माउस, बाइक साइकिल झूला महिला बच्चों में प्रमुख आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। छोटे छोटे बच्चे झूलों की सैर कर लुत्फ खूब उठा रहे हैं। समाज सेवी राकेंद्र चौधरी ने बाबा दरगाही साहब की समाधि से लौटने वाले भक्तों के लिए प्रसाद के रूप देसी घी के हलवा वितरण कर किया।