Supreme Court castigated Madhya Pradesh government on Custodial death transfers case to CBI किस मामले को लेकर MP सरकार पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, फटकार लगा सीबीआई को सौंप दिया केस, Ncr Hindi News - Hindustan
Hindi Newsएनसीआर NewsSupreme Court castigated Madhya Pradesh government on Custodial death transfers case to CBI

किस मामले को लेकर MP सरकार पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, फटकार लगा सीबीआई को सौंप दिया केस

इस याचिका में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने जांच को किसी अन्य एजेंसी को सौंपने और हिरासत में यातना के एकमात्र चश्मदीद गवाह गंगाराम पारधी को जमानत पर रिहा करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था।

Sourabh Jain पीटीआई, नई दिल्लीFri, 16 May 2025 12:25 AM
share Share
Follow Us on
किस मामले को लेकर MP सरकार पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, फटकार लगा सीबीआई को सौंप दिया केस

मध्य प्रदेश में पुलिस हिरासत में कथित रूप से 24 साल के युवक की मौत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाई और केस की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया। न्यायालय ने केस में आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सरकार द्वारा कार्रवाई नहीं करने पर नाराजगी जताई। इस मामले में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सीबीआई के क्षेत्राधिकार वाले पुलिस अधीक्षक को तत्काल मामला दर्ज करने और देवा पारधी की हिरासत में मौत की निष्पक्ष, पारदर्शी और त्वरित जांच सुनिश्चित करने का निर्देश देने को कहा।

पीठ ने कहा, 'हिरासत में मौत के लिए जिम्मेदार पाए गए पुलिस अधिकारियों को तत्काल गिरफ्तार किया जाना चाहिए और आज से एक महीने के अंदर यह गिरफ्तारी हो जानी चाहिए। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि जांच भी आरोपी की गिरफ्तारी की तारीख से 90 दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जानी चाहिए।'

सुप्रीम कोर्ट बोला, 'एफआईआर दर्ज हुए करीब आठ महीने बीत चुके हैं, लेकिन आज तक एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है। इन परिस्थितियों से इस बात का अनुमान स्पष्ट रूप से लगाया जा सकता है कि स्थानीय पुलिस द्वारा निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से जांच नहीं की जा रही है और अगर जांच राज्य पुलिस के हाथों में छोड़ दी जाती है, तो अभियोजन पक्ष के आरोपियों के अधीन होने की पूरी संभावना है, जो जाहिर तौर पर सौहार्द के कारण अपने ही साथी पुलिसकर्मियों को बचा रहे हैं। इसलिए, हम यह निर्देश देना उचित और आवश्यक समझते हैं कि एफआईआर की जांच तुरंत केंद्रीय जांच ब्यूरो को हस्तांतरित की जाए।'

उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश हिरासत में मारे गए युवक देवा की मां और मौसी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। इस याचिका में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने जांच को किसी अन्य एजेंसी को सौंपने और हिरासत में यातना के एकमात्र चश्मदीद गवाह गंगाराम पारधी को जमानत पर रिहा करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था। याचिका के अनुसार, देवा को उसके चाचा गंगाराम के साथ चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था, जो कि अब भी न्यायिक हिरासत में है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने देवा को बुरी तरह प्रताड़ित किया और उसकी हत्या कर दी, जबकि पुलिस का कहना है कि देवा की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। उधर मध्य प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि मामले में शामिल दो पुलिस अधिकारियों का तबादला पुलिस लाइन में कर दिया गया है।

वहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि FIR दर्ज कर ली गई है, लेकिन हिरासत में युवक की मौत के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों में से एक को भी आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। अदालत ने कहा, 'इस बात पर भी विवाद नहीं है कि देवा पारधी की हिरासत में मौत के एकमात्र गवाह गंगाराम पारधी ने पुलिस और जेल अधिकारियों के हाथों गंभीर खतरे की आशंका जताई थी। इसलिए, हम आश्वस्त हैं कि यह एक क्लासिक मामला है, जिसके लिए लैटिन कहावत 'नेमो जुडेक्स इन कॉसा सुआ' का आह्वान किया जाना चाहिए, जिसका अर्थ है 'किसी को भी अपने मामले में न्यायाधीश नहीं होना चाहिए।'

पीठ ने कहा, 'देवा पारधी की हिरासत में मौत का आरोप म्याना पुलिस स्टेशन के स्थानीय पुलिस अधिकारियों पर है।' सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि शव परीक्षण करने वाले डॉक्टरों पर भी दबाव और प्रभाव था। आगे उन्होंने कहा, 'हम यह देखने के लिए विवश हैं कि हिरासत में यातना के शिकार देवा पारधी के शरीर पर बड़ी संख्या में चोटों को ध्यान में रखने के बावजूद, उसके शरीर का पोस्टमार्टम करने वाले मेडिकल बोर्ड के सदस्य मौत के कारण के बारे में कोई राय व्यक्त करने में विफल रहे।'

अदालत ने आगे कहा, 'यह चूक जानबूझकर की गई प्रतीत होती है, न कि अनजाने में और स्थानीय पुलिस अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे प्रभाव का प्रत्यक्ष परिणाम प्रतीत होता है। देवा पारधी की हिरासत में मौत में पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी गंगाराम पारधी के बयान से स्पष्ट रूप से सामने आती है, और मजिस्ट्रेट जांच के दौरान इसकी पुष्टि होती है।'

शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ित परिवार ने घटना के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट जांच के बाद ही एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें गैर इरादतन हत्या के अपराध को छोड़ दिया गया।