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कैसे 'केजरीवाल' ने ही केजरीवाल को हराया, गढ़ में ढह जाने की यही असली वजह

2013 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने वाली आम आदमी पार्टी (आप) को अपने जन्म के 13वें साल में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। दिल्ली में अब तक चार विधानसभा चुनाव लड़ी 'आप' का यह सबसे खराब प्रदर्शन है।

Sudhir Jha लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 8 Feb 2025 06:05 PM
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कैसे 'केजरीवाल' ने ही केजरीवाल को हराया, गढ़ में ढह जाने की यही असली वजह

2013 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने वाली आम आदमी पार्टी (आप) को अपने जन्म के 13वें साल में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। दिल्ली में अब तक चार विधानसभा चुनाव लड़ी 'आप' का यह सबसे खराब प्रदर्शन है। अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली पार्टी 22 सीटों पर सिमट गई। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में 'क्रांति' लाने का दावा करने वाली पार्टी आखिर क्यों अपने गढ़ में इस तरह से ढह गई, इसके जवाब में कई तर्क दिए जा रहे हैं। कुछ लोग भाजपा की मजबूती गिना रहे हैं तो कुछ लोग यह तलाश रहे हैं कि इसमें कांग्रेस का क्या हाथ है। हालांकि, अरविंद केजरीवाल पर करीब से निगाह रखने वाले कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि केजरीवाल को खुद 'केजरीवाल' ने ही हराया है। कंफ्यूज होने की जरूरत नहीं है, आइए समझते हैं कि असल में क्यों ऐसा कहा जा रहा है।

दरअसल, 2012 में जब आम आदमी पार्टी का गठन किया गया था तब से अब तक भले ही यमुना के पानी में कोई बदलाव नहीं आया, लेकिन अरविंद केजरीवाल कई मुद्दों पर खुद को जितना बदल चुके हैं, उसको लेकर जनता में अब कहीं ना कहीं उनकी छवि खराब हुई है। ईमानदारी, लोकपाल, भ्रष्टाचार मुक्त शासन, आम आदमी की जीवन शैली, राजनीतिक शुचिता आदि के केजरीवाल ने जो सपने दिखाए थे और वादे किए थे, उन कसौटियों पर खुद फेल होते चले गए और अंतत: आम आदमी की नजरों से उतरते चले गए। भाजपा ने इस हालात का सियासी फायदा उठाते हुए ना केवल आम जनमानस के सामने केजरीवाल की कथनी और करनी का अंतर सामने लाया बल्कि पिछले एक दशक में 'आप' मुखिया को हर दिन उनके ही तय किए गए मानकों में तौलती रही।

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वैगनार से शीशमहल तक यात्रा

कांग्रेस नीत यूपीए-2 सरकार के खिलाफ दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन चलाने के बाद राजनीति में उतरे केजरीवाल ने शुरुआत में अपनी छवि एक बेहद साधारण व्यक्ति के रूप में गढ़ी। कभी एक नीली वैगनार में तो कभी ऑटो या कभी मेट्रो में सफर करते हुए दिखते। साधारण कपड़े, चप्पल और कान से गले तक मफलर लेपेटे हुए केजरीवाल ने अपनी एक खास छवि बना ली। वह उन दिनों मुख्यमंत्रियों के बड़े बंगलों को भी बड़ा मुद्दा बनाते थे। केजरीवाल तब कहा करते थे कि वह सीएम बनेंगे तो 2-3 कमरों का एक छोटा घर ही पर्याप्त होगा। वह सुरक्षा, सरकारी गाड़ी और बड़े बंगले ना लेने के लिए एक शपथपत्र भी नई दिल्ली में घर-घर बांट चुके थे। लेकिन समय बीतने के साथ वह इन मानकों को तोड़ते रहे। अब उनके पास हाईटेक गाड़ियों का काफिला है, जिस बंगले में वह बतौर सीएम रह रहे थे उसमें सुख सुविधा के लिए करोड़ों रुपए खर्ज के आरोप हैं, वह दिल्ली के साथ पंजाब पुलिस की सुरक्षा भी लेना चाहते हैं। भाजपा एक दशक में आए उनके बदलावों को जोरशोर से उठाती रही और ये मुद्दे सोशल मीडिया से निकलकर आम जनता की जुबान तक पहुंच चुके थे।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से शराब घोटाले में जेल यात्रा तक

एक दशक पहले जहां अरविंद केजरीवाल की पहचान भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले एक लड़ाके की थी तो अब वह खुद शराब घोटाले में जमानती बन चुके हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी सरकार पर शराब घोटाले का आरोप लगा और मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें जेल जाना पड़ा। केजरीवाल के अलावा उनके कई मंत्री भी तिहाड़ में बंद हुए। कभी आरोप लगते ही इस्तीफे की मांग करने वाले केजरीवाल जेल जाने के बाद भी पद पर बने रहने को अड़ गए। उन्होंने तब तक इस्तीफा नहीं दिया जब तक सुप्रीम कोर्ट ने उन पर कई सख्त पाबंदियां नहीं लगा दीं। शराब घोटाले के अलावा भाजपा उनकी सरकार पर क्लासरूम घोटाला, पैनिक बटन स्कैम आदि का आरोप भी लगाती है। जो केजरीवाल कभी दूसरों को भ्रष्टाचारी का सर्टिफिकेट देते थे उन्हें अब खुद उनकी ईमानदारी पर जनता में संदेह पैदा हो चुका था।

यमुना में डुबकी के वादे से जहर मिलाने के आरोप तक

अरविंद केजरीवाल को इस चुनाव में जिन मुद्दों पर सबसे अधिक घेरा गया, उनमें से एक है यमुना और इसका प्रदूषण। 2020 चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने डंके की चोट पर वादा किया था कि 2025 चुनाव से पहले वह खुद यमुना में जाकर डुबकी लगाएंगे। लेकिन यमुना के प्रदूषण में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई। अरविंद केजरीवाल को खुद भी यह स्वीकार करना पड़ा। इस चुनाव में बार-बार भाजपा जनता को याद दिलाती रही कि केजरीवाल ने तब कहा था कि यदि वह यमुना को साफ नहीं कर पाए तो उन्हें वोट ना दिया जाए।

सब मिले हुए हैं जी से सबसे गले मिलने तक

कभी भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी रखने की कसमें खाने वाले अरविंद केजरीवाल का एक वाक्य खूब प्रसिद्ध हुआ था- सब मिले हुए हैं जी। लेकिन समय बीतने के साथ भले ही भाजपा से उनकी दूरी बनी रही, लेकिन कांग्रेस समेत अन्य दलों से उनकी नजदीकी बढ़ती चली गई। केजरीवाल जिन दलों और नेताओं को कभी भ्रष्ट बताते हुए लिस्ट जारी करते थे अब उनके साथ अक्सर गले और हाथ मिलाते हुए उनकी तस्वीरें आने लगी थी। वह

अधूरे रह गए कई वादे

अरविंद केजरीवाल ने पिछले चुनाव में दिल्लीवालों को यूरोप जैसी सड़कें और 24 घंटे साफ पानी देने का वादा किया था। लेकिन हुआ कुछ उल्टा। एक तरफ जहां दिल्ली की सड़कों पर गड्ढ़े भर गए तो घरों में सप्लाई होने वाला पानी बद से बदबूदार होता चला गया। अलबत्ता यह कि गंदे पानी की भी सप्लाई समय पर नहीं हो पाती थी। गर्मियों में तो टैंकरों के पीछे दौड़ते दिल्लीवालों की तस्वीरें इंटरनेशनल मीडिया तक में छा गईं। खुद अरविंद केजरीवाल को चुनाव के बीच स्वीकार करना पड़ा कि वह इन वादों को पूरा करने में विफल रहे। उन्होंने जनता से एक और मौके की मांग की थी।

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