जेएनयूएसयू में एबीवीपी की बढ़त में कई पहलू रहे मददगार
-जेएनयू में कई कारणों से तेजी से उभर रही एबीवीपी -सीयूईटी, वाम गठबंधन में

नई दिल्ली। अभिनव उपाध्याय
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ चुनाव में इस बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जोरदार प्रदर्शन किया। सेंट्रल पैनल के चारों प्रमुख पदों पर मुकाबला कांटे का रहा और एबीवीपी ने संयुक्त सचिव का पद अपने नाम कर लिया। वामपंथ का गढ़ कहे जाने वाले जेएनयू में एबीवीपी उन सेंटर और स्कूल में अपनी सेंध लगा रहा है जो वाम गठबंधन का किला कहा जा रहा था। सरसरी तौर पर एबीवीपी के इस उभार को केवल वाम गठबंधन के बीच की फूट का नतीजा माना जा रहा है। लेकिन इसके पीछे कई अन्य कारण मौजूं हैं। एबीवीपी ने दावा किया है कि पहली बार उसके पांच काउंसलर निर्विरोध जीते हैं। स्कूल ऑफ सोशल साइंस में एबीवीपी ने 25 वर्षों बाद दो सीटों पर विजय प्राप्त की है। जबकि स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में भी एबीवीपी ने दो सीटों पर सफलता प्राप्त कर नया राजनीतिक परिदृश्य गढ़ा है। हालांकि आइसा ने एबीवीपी के इस दावे पर सवाल उठाए हैं।
जेएनयू में छात्र संगठन आइसा से छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके एन साई बालाजी एबीवीपी के उभार को नकारते हैं हालांकि वह यह स्वीकार भी कहते हैं कि जेएनयू के एबीवीपी का यह प्रदर्शन कई बड़े बदलावों का संकेत दे रहा है। इस उभार के पीछे न केवल स्थानीय राजनीतिक कारण हैं, बल्कि विश्वविद्यालय में हाल ही में आए ढांचागत परिवर्तन, खासकर कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) की भूमिका भी अहम रही है। उनका कहना है कि अब जेएनयू अपनी प्रवेश परीक्षा नहीं कराता। सीयूईटी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से छात्रों का चयन होता है। यह एक रिसर्च यूनिवर्सिटी है लेकिन चयन का आधार कॉमन कर दिया गया है और इसका असर पड़ रहा है। एक अन्य छात्र नेता का कहना है कि सीयूईटी लागू होने के बाद जेएनयू में विविध पृष्ठभूमियों से छात्र प्रवेश पा रहे हैं। छोटे शहरों, ग्रामीण इलाकों और गैर-परंपरागत शैक्षिक पृष्ठभूमि से आए छात्रों के लिए राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक गौरव और व्यावहारिक मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण हैं। एबीवीपी ने इस नये छात्र समूह के बीच अपनी जड़ें जमाई हैं, जबकि पारंपरिक वामपंथी संगठनों का प्रभाव अपेक्षाकृत सीमित होता गया।
उनका कहना है कि केंद्र और राज्य में भाजपा सरकार का होना भी एक प्रमुख कारण है। लोगों को लगता है कि मुद्दों का समाधान एबीवीपी आसानी से करा सकती है।
स्थानीय मुद्दों पर आक्रामक रणनीति:
एबीवीपी के छात्र नेता राजेश्वर दुबे का कहना है कि हमने कैंपस के मुद्दों को लेकर आवाज उठाई है। छात्रावासों की खराब स्थिति, मेस फीस में बढ़ोतरी, पुस्तकालयों के सीमित समय, और रोजगारपरक पाठ्यक्रमों की मांग जैसे जमीनी मुद्दों को एबीवीपी ने अपने अभियान का प्रमुख आधार बनाया। इससे छात्रों के एक बड़े वर्ग का विश्वास जीता और यह बढ़त और जीत उसका परिणाम है।
वामपंथी संगठनों में विभाजन
जेएनयू में चार प्रमुख वामपंथी छात्र संगठन सक्रिय हैं। इसमें आइसा, एआईएसएफ, डीएसएफ और एसएफआई है। इस बार यह गठबंधन टूट गया और आइसा तथा डीएसएफ ने चुनाव लड़ा। आंकड़े बताते हैं कि यदि वामपंथी संगठन एकजुट होते तो बढ़त या जीत के किले को भेदना एबीवीपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता। यही नहीं छोटे संगठनों ने भी वाम संगठनों के मतों को प्रभावित किया है। पूर्वोत्तर के छात्र, दलित, ओबीसी इन छात्रों के छोटे छोटे समूह और गुट हैं। जो एक तरफा वोट देते हैं। लेकिन इस बार इनके नेता खुद मैदान में थे और उन्होंने हार जीत के आंकड़े को प्रभावित किया है। यही नहीं नोटा, अमान्य मतों की संख्या भी अधिक थी।
बदलती वैचारिक धारा
जेएनयू में सोशल साइंस के एक शिक्षक का कहना है कि राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दों पर छात्र समुदाय के रुझान में बदलाव आ रहा है। कश्मीर, आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, और आर्थिक विकास जैसे विषयों पर युवा छात्रों में राष्ट्रवादी सोच को बढ़ावा मिला है, जिसे एबीवीपी ने मजबूती से संबोधित किया। पहलगाम का मुद्दा प्रेसिडेंशियल डिबेट में छाया था। इसका असर मत परिवर्तन में होता है।
वामपंथी सोच से जकड़ा था विश्वविद्यालय
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री वीरेंद्र सिंह सोलंकी का कहना है कि जेएनयू में राष्ट्रवाद की नई सुबह का प्रारंभ हुआ है। आज जेएनयू की पवित्र धरती पर इतिहास रचा गया है। वर्षों से जिस वामपंथी सोच ने विश्वविद्यालय परिसर को जकड़ रखा था, आज उसकी दीवारें छात्रों के लोकतांत्रिक निर्णय से दरक गई हैं। एबीवीपी ने न केवल काउंसलर पदों पर शानदार विजय प्राप्त की है, बल्कि केंद्रीय पैनल पर भी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई है। यह जीत हर उस छात्र की जीत है जो शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का आधार मानता है। हम छात्रों के हर हित के लिए संघर्षरत रहेंगे और 'राष्ट्र सर्वोपरि' के आदर्श को स्थापित करेंगे।
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