संविधान में सेकुलर क्यों जोड़ा? सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प बहस, जज ने उलटे दाग दिया सवाल
- चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, '42वें संशोधन की पहले भी न्यायिक समीक्षा हो चुकी है। हम यह नहीं कह सकते कि संसद ने जो पहले किया था, वह सब कुछ गलत है।' यही नहीं बेंच का कहना था कि सेकुलरिज्म और सोशलिस्ट की परिभाषा को हमें पश्चिम के चश्मे से नहीं देखना चाहिए।
संविधान में सेकुलर, सोशलिस्ट जैसे शब्द जैसे शब्द जोड़े जाने को लेकर दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को आखिरी सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में सोमवार यानी 25 नवंबर को फैसला सुनाने की बात कही है। राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी, वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय और बलराम सिंह की ओर से दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि हम 25 तारीख को फैसला सुनाएंगे। इसके साथ ही बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि सेकुलरिज्म तो संविधान के मूल ढांचे का ही हिस्सा है। इसके अलावा जिस 42वें संशोधन में इस शब्द को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया, उसका तो पहले ही रिव्यू हो चुका है।
बेंच के रुख से ऐसा लग रहा है कि अदालत सेकुलर और सोशलिस्ट शब्दों को संविधान में जोड़े जाने को सही करार दिया जा सकता है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, '42वें संशोधन की पहले भी न्यायिक समीक्षा हो चुकी है। हम यह नहीं कह सकते कि संसद ने जो पहले किया था, वह सब कुछ गलत है।' यही नहीं बेंच का कहना था कि सेकुलरिज्म और सोशलिस्ट की परिभाषा को हमें पश्चिम के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। दरअसल याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संविधान में इन शब्दों को असामान्य परिस्थितियों में जोड़ा गया था। लोकसभा के अतिरिक्त सत्र में इसे शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था।
याचिका में कहा गया कि इन संशोधनों को राज्यों से मंजूरी के बिना ही शामिल किया गया था। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों को विस्तार से सुना, लेकिन यह भी कहा कि इस पर तो पहले भी अदालत में विचार हो चुका है। इस केस की सुनवाई के दौरान सुब्रमण्यन स्वामी भी व्यक्तिगत तौर पर मौजूद थे। इस दौरान याचियों के वकील ने कहा कि देश के लोगों को एक खास विचारधारा मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐसा तो कोई भी नहीं कर रहा है।
यही नहीं याचिकाकर्ताओं ने सवाल उठाया कि आखिर कभी भी इनकी परिभाषा क्यों नहीं बताई गई। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि सेकुलरिज्म की परिभाषा विस्तार से एसआर बोम्मई केस में बताई गई थी। बोम्मई केस में कहा गया था कि सेकुलरिज्म संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। अब अदालत ने इस मामले में 25 तारीख को फैसला देने की बात कही है। इन याचिकाओं का अदालत में सीपीआई के नेता और राज्यसभा सांसद बिनॉय विस्वम ने विरोध किया।