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जैसे यूरोप में मुसलमानों ने किया कब्जा, वैसे ही कश्मीर को हड़पना चाहता था पाकिस्तान; क्या था ऑपरेशन जिब्राल्टर?

  • पाकिस्तान ने ऑपरेशन का नाम जिब्राल्टर रखा। जिब्राल्टर इस्लामिक इतिहास में महत्वपूर्ण माने जाने वाले जिब्राल्टर की लड़ाई के आधार पर रखा गया था।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 6 Sep 2024 02:13 PM
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Operation Gibraltar Explained: ऑपरेशन जिब्राल्टर 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का एक प्रमुख और विवादास्पद अध्याय है। इस ऑपरेशन का उद्देश्य कश्मीर घाटी में विद्रोह और अस्थिरता पैदा कर भारत को सैन्य और कूटनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाना था। ऑपरेशन जिब्राल्टर पाकिस्तान द्वारा भारतीय कश्मीर में घुसपैठ की एक योजना थी, जिसका नतीजा 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध बना। यह ऑपरेशन इतिहास में इस युद्ध के प्रारंभिक बिंदु के रूप में दर्ज है। साल के नौवें महीने का छठा दिन देश के इतिहास में सेना के शौर्य की याद दिलाता है जब पाकिस्तान के ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ का भारतीय सेना ने छह सितंबर को मुंहतोड़ जवाब दिया था। ऑपरेशन जिब्राल्टर पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने की रणनीति का कूट नाम (कोड) था जो भारतीय शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू करने के लिए किया गया था। सफल होने पर, पाकिस्तान को कश्मीर पर नियंत्रण हासिल करने की उम्मीद थी, लेकिन उसके लिए यह अभियान एक बड़ी विफलता साबित हुआ। इसके जवाब में छह सितंबर 1965 को भारतीय सैनिकों ने कार्रवाई की। अंतत: युद्ध छिड़ा और उसमें भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी।

ऑपरेशन जिब्राल्टर का उद्देश्य और योजना

ऑपरेशन जिब्राल्टर की योजना पाकिस्तान द्वारा इस विश्वास के साथ बनाई गई थी कि कश्मीर के मुसलमानों में असंतोष है और अगर उन्हें उकसाया जाए, तो वे विद्रोह करेंगे। पाकिस्तान ने कश्मीर में विद्रोह को प्रोत्साहित करने और भारतीय सैनिकों का ध्यान दूसरी ओर मोड़ने के लिए अपनी सेना के विशेष बलों को भेजने की योजना बनाई। ऑपरेशन का नाम "जिब्राल्टर" रखा। "जिब्राल्टर" इस्लामिक इतिहास में महत्वपूर्ण माने जाने वाले "जिब्राल्टर की लड़ाई" के आधार पर रखा गया था। इतिहासकार बताते हैं कि इसी लड़ाई के बाद मुस्लिम सेनाओं ने यूरोप में अपना विस्तार शुरू किया था।

जिब्राल्टर की लड़ाई: इस्लामिक इतिहास का निर्णायक क्षण

जिब्राल्टर की लड़ाई (Battle of Gibraltar) इस्लामिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक संघर्षों में से एक है, जिसने यूरोप के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। यह लड़ाई 711 ईस्वी में तब लड़ी गई जब उमय्यद खलीफा के सेनापति तारिक बिन जियाद ने स्पेन के जिब्राल्टर में ईसाई राजा रोडेरिक के खिलाफ विजय प्राप्त की और इस्लामी सेनाओं ने यूरोप में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू किया। जिब्राल्टर एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान है जो यूरोप और अफ्रीका के बीच स्थित है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य, जिसे अरबी में "जबल-उत-तारीक" (तारिक का पहाड़) कहा जाता है, वह भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है। यह यूरोप और अफ्रीका के बीच आने-जाने का मुख्य रास्ता था, इसलिए इसे सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था। 711 ईस्वी में उमय्यद खिलाफत के सैनिक तारिक बिन जियाद ने उत्तरी अफ्रीका से यूरोप में प्रवेश किया। कहा जाता है कि उन्होंने अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए अपनी नौकाओं को जला दिया, ताकि पीछे हटने का कोई विकल्प न रहे। यह एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक कदम था, जिसका मतलब था "या तो जीत, या मौत।"

तारिक बिन जियाद ने राजा रोडेरिक की विशाल सेना को परास्त कर दिया, और इसके बाद मुसलमानों ने तेजी से इबेरियन प्रायद्वीप (वर्तमान में स्पेन और पुर्तगाल) के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। इस विजय के बाद इस्लामी सेनाओं ने स्पेन के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और यह क्षेत्र मुस्लिम शासन के अधीन आ गया जिसे अल-अंदलुस के नाम से जाना जाता है। इस लड़ाई के बाद इस्लामी साम्राज्य ने यूरोप में अपनी उपस्थिति मजबूत की, और यह विजय एक नए युग की शुरुआत के रूप में मानी जाती है। स्पेन और पुर्तगाल में मुस्लिम शासन कई सदियों तक बना रहा और इस दौरान अल-अंदलुस सभ्यता का विकास हुआ। कोर्डोबा, ग्रेनाडा और सेविल जैसे शहर इस्लामी संस्कृति और विज्ञान के केंद्र बन गए।

ऐसा ही भारत के साथ करना चाहता था पाकिस्तान?

पाकिस्तान को उम्मीद थी कि यह ऑपरेशन कश्मीर में एक बड़े पैमाने पर जन आंदोलन को भड़का देगा, जो भारत के खिलाफ संघर्ष को मजबूत करेगा। ऑपरेशन जिब्राल्टर की असली चुनौती तब आई जब पाकिस्तान को यह अहसास हुआ कि कश्मीर में बड़े पैमाने पर विद्रोह की योजना पूरी तरह से विफल हो गई। स्थानीय जनता ने पाकिस्तानी घुसपैठियों का समर्थन नहीं किया। इसके अलावा, भारतीय सेना ने इन घुसपैठियों को पकड़ने और निष्क्रिय करने के लिए तेज और आक्रामक कार्रवाई की। भारत ने 5 अगस्त 1965 को घुसपैठियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाया और इन्हें दो दिन के भीतर कश्मीर घाटी से बाहर खदेड़ दिया। इससे पाकिस्तान का पूरा ऑपरेशन ध्वस्त हो गया।

ऑपरेशन जिब्राल्टर की सबसे बड़ी विफलता का कारण स्थानीय कश्मीरियों का समर्थन न मिल पाना था। पाकिस्तान को विश्वास था कि कश्मीर के लोग घुसपैठियों का स्वागत करेंगे और भारत के खिलाफ विद्रोह में शामिल हो जाएंगे। लेकिन इसके विपरीत, कई कश्मीरियों ने घुसपैठियों की पहचान भारतीय सेना को दी और उनकी मदद की। कई बार ऐसा हुआ कि कश्मीरी स्थानीय लोग घुसपैठियों को भ्रमित कर देते थे और भारतीय सेना को गुप्त सूचनाएं पहुंचाते थे, जो पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका था।

फिर हुआ ताशकंद समझौता

ऑपरेशन जिब्राल्टर की विफलता के बाद, भारत ने तेजी से जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ दिया। भारत ने सीमा के पार कई हमले किए और यह संघर्ष धीरे-धीरे एक बड़े पैमाने पर युद्ध में बदल गया। यह युद्ध 1965 के अंत तक चला और इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसे ताशकंद समझौते के रूप में जाना जाता है। ताशकंद समझौता 10 जनवरी, 1966 को हुआ था। इस समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत, दोनों देशों ने अपने सशस्त्र बलों को 5 अगस्त, 1965 से पहले की स्थिति में लाने का फैसला किया था। कहा जाता है कि भारत पाकिस्तान के बेहद अंदर तक घुस गया था।

कुल मिलाकर पाकिस्तान की ओर से यह एक विफल सैन्य योजना साबित हुई, जिसने भारतीय कूटनीतिक और सैन्य ताकत को और मजबूत किया। ऑपरेशन जिब्राल्टर की विफलता के कारण पाकिस्तान के लिए यह एक सबक भी मिला कि कश्मीर में विद्रोह भड़काने की उसकी कोशिशें सफल नहीं हो सकतीं, खासकर तब जब स्थानीय आबादी का सहयोग न हो। इसके बाद पाकिस्तान ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और अन्य तरीकों से कश्मीर में अस्थिरता फैलाने की कोशिशें कीं।

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