Hindi Newsदेश न्यूज़Wakf Board bill stuck in Lok Sabha now bill will be sent to JPC speaker will form joint Parliament committee

लोकसभा में अटका वक्फ बोर्ड बिल, अब JPC को भेजा जाएगा विधेयक; स्पीकर का कैसे बढ़ गया काम

बिल के प्रावधानों पर विपक्षी दलों की आपत्ति के बाद अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में प्रस्ताव रखा कि इस बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेज दिया जाए। इस पर स्पीकर ने कहा कि हां, जल्द ही कमेटी बनाऊंगा।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 8 Aug 2024 04:28 PM
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लोकसभा में पेश वक्फ बोर्ड बिल अटक गया है। अब ये बिल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा जाएगा। बिल के प्रावधानों पर विपक्षी दलों की आपत्ति के बाद अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में प्रस्ताव रखा कि इस बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेज दिया जाए। इस पर स्पीकर ने कहा कि हां, जल्द ही कमेटी बनाऊंगा। लोकसभा अध्यक्ष बिरला अब दोनों सदनों के सदस्यों की एक संयुक्त संसदीय कमेटी बनाएंगे जो इस विधेयक के पहलुओं और सांसदों की आपत्तियों पर विचार करेगी और संसद को अपनी सिफारिश सौंपेगी।

इससे पहले सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पुर:स्थापित करने का प्रस्ताव किया, जिसका विपक्ष ने जमकर विरोध किया और इसे सदन के सांविधिक अधिकार के परे और संविधान के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया। विपक्षी दलों के सांसदों ने संशोधन विधेयक को वापस लेने अथवा संयुक्त संसदीय समिति के विचार के लिए भेजने की मांग की।

दोपहर एक बजे अध्यक्ष ओम बिरला की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस विधेयक को पुर:स्थापित करने का प्रस्ताव रखा जिसका विरोध करते हुए विपक्ष ने नियम 72 के तहत इस प्रस्ताव पर चर्चा करवाने के मांग की। इसके बाद बिरला ने विपक्ष की भावना को देखते हुए नियम 72 के तहत उनके बात रखने की अनुमति दे दी।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके, माकपा, भाकपा, वाईएसआर कांग्रेस आदि पार्टियों ने जहां विधेयक का विरोध किया, वहीं सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल यूनाइटेड, तेलुगु देशम और शिवसेना ने इस विधेयक का समर्थन किया। शिवसेना के श्रीकांत एकनाथ शिंदे ने विपक्ष पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि जो देश की व्यवस्थाओं को जाति एवं धर्म के आधार पर चलाना चाहते हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। इस विधेयक का मकसद पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाना है लेकिन संविधान पर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनकी सरकार ने जब महाराष्ट्र में शिर्डी, महालक्ष्मी मंदिरों में प्रशासक बैठाये थे, उन्हें संविधान एवं संघीय ढांचे की याद क्यों नहीं आयी।

कांग्रेस सांसद और महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक संविधान विरोधी है और एक समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है। उन्होंने कहा कि संविधान में हर समुदाय को अधिकार है कि वह अपनी धार्मिक, चैरिटेबल आधार पर चल अचल संपत्ति रखे। इस विधेयक में वक़्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की बात कही गई है। उन्होंने सवाल किया कि क्या अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में गैर हिन्दू हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर आक्रमण है और संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर हमला है। भारत की संस्कृति में सब एक दूसरे की आस्थाओं एवं धार्मिक विश्वासों का आदर करते हैं। लेकिन यह कदम उनमें विभाजन पैदा करेगा।

वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार फासीवाद की ओर बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्तियां सैकड़ों वर्ष पुरानी हैं। उन पर विवाद खड़ा किया जाएगा। यह विधेयक गलत मंशा से लाया गया है। यह विधेयक पारित नहीं हो सकता है।

समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा कि यह विधेयक सोची समझी राजनीति से लाया गया है। जब वक्फ़ बोर्ड में सदस्यों को लोकतांत्रिक ढंग से चुने जाने की व्यवस्था है तो मनोनयन करने की जरूरत क्यों है। क्यों गैर बिरादरी का व्यक्ति बोर्ड में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि भाजपा हताश और निराश है और चंद कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए ये विधेयक लेकर आई है। इसके बाद यादव ने कहा कि ये विधेयक इसलिये लाया गया है कि ये अभी अभी हारे हैं। उन्होंने अध्यक्ष को संबोधित करते हुए कहा कि अध्यक्ष का पद लोकतंत्र का न्यायालय होता है लेकिन अध्यक्ष के अधिकारों को भी काटा जा रहा है।

इस पर गृह मंत्री अमित शाह भड़क गये। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के अधिकार पूरे सदन के अधिकार हैं और अखिलेश यादव उन अधिकारों के संरक्षक नहीं हैं। इस पर लोकसभा स्पीकर बिरला ने सदस्यों को हिदायत दी कि वे आसन या संसद की आंतरिक व्यवस्था पर व्यक्तिगत टिप्पणियां नां करें।

तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंद्योपाध्याय और कल्याण बनर्जी ने कहा कि सदन काे इस बारे में कानून बनाने का अधिकार नहीं है। संविधान में यह राज्यों का विषय कहा गया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सरकार को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। बनर्जी ने कहा कि यह विधेयक संवैधानिक नैतिकता के भी खिलाफ है और मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि चुनाव के पहले भारत की हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की कोशिश की गयी थी जो कामयाब नहीं हो पायी।

द्रमुक की कनिमोझी ने कहा कि संसद में आज बहुत दुख भरा दिन है जब संविधान के तमाम अनुच्छेदों का उल्लंघन करने वाला विधेयक आया है। हमने कुछ दिन पहले ही संविधान की रक्षा की शपथ ली है और यह विधेयक संविधान, संघीय ढांचे और मानवता पर खुला अतिक्रमण है और न्याय का हनन है। तमाम पुरानी मस्जिदों पर खतरा आयेगा क्योंकि ये कुछ पुरातत्वविद कहेंगे कि अमुक मस्जिद पहले मंदिर थी। उन्होंने कहा कि यह एक समुदाय को निशाना बनाने के लिए लाया गया है।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा कि सरकार को विधेयक को वापस लेना चाहिए या किसी समिति को भेजना चाहिए। लेकिन इस विधेयक को सबसे पहले मीडिया को बताया गया फिर सांसदों को। यह संसद का अपमान है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में वक्फ अधिनियम के कई धाराओं को समाप्त करने का प्रस्ताव है और वक्फ पंचाट को भी कमजाेर किया गया है। उन्होंने कहा कि हर देश में अल्पसंख्यकों को सुरक्षित रखा जाता है। आखिर ऐसा क्या है कि इस विधेयक को अभी लाना है।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के ईटी मोहम्मद बशीर ने कहा कि यह संविधान एवं उसमें वर्णित मौलिक अधिकारों का हनन है। यह गलत मंशा और गंदे एजेंडे के तहत लाया गया है। सरकार वक्फ की संपत्तियां हड़पना चाहती है और इस तरह से देश के सेकुलर ढांचे का ध्वस्त कर रही है। इस विधेयक के पारित होने से वक्फ की सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाएगी। सरकार क्रूर हो गयी है और देश में जहर फैला रही है।

रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के एन के प्रेमचंद्रन नेे कहा कि यह विधेयक सेकुलरिज़्म के खिलाफ है। वक्फ का एकमात्र मकसद चल अचल संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन करना है। इस विधेयक के पारित हाेने से वक्फ बोर्ड शक्तिहीन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि वह सरकार को और इस सदन को आगाह करना चाहते हैं कि यदि नया कानून संवैधानिक विवेचना के लिए उच्चतम न्यायालय गया तो वहां यह खारिज कर दिया जाएगा।

ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वक्फ एक अनिवार्य मजहबी गतिविधि है। नये विधेयक के प्रावधान में तमाम विसंगतियां हैं। बोर्ड में कोई गैर मुस्लिम सदस्य बन सकता है लेकिन संपत्ति दान करने के लिए उसका पांच साल से इस्लाम का अनुपालन अनिवार्य किया गया है। कलेक्टर को अधिकार देने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि वक्फ कोई सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार देश को फिर से बांटने की कोशिश कर रही है।

सपा के मोहिबुल्लाह ने कहा कि हिन्दुओं के चारधाम, सिखों के गुरुद्वारों में प्रबंधन समिति में गैर समुदायिक लोग नहीं होते हैं। लेकिन मुस्लिमों के साथ अन्याय किया जा रहा है। वक्फ मुसलमानों का मजहबी अकीदा है। सरकार गलती करने जा रही है। संशोधनों के माध्यम से सरकारी अमले को मजहब में दखलंदाजी करने का अधिकार दे रहे हैं। इस विधेयक से मुल्क की साख को नुकसान होगा और अल्पसंख्यक समुदाय खुद को असुरक्षित समझेगा। कहीं ऐसा ना हो कि संविधान की रक्षा के लिए लोग सड़कों पर उतर आयें।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ अहमद ने कहा कि मुल्क के सेकुलर लोगों के लिए यह एक बड़ा झटका है। दुनिया में हिन्दुस्तान को सेकुलरिज़्म एवं जम्हूरियत से पहचाना जाता है। भारत की छवि खराब होगी। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पी वी मिथुनरेड्डी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के के. सुब्बारायण, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के के. राधाकृष्णन, वीसीके के थोल तिरुमावलम, कांग्रेस के इमरान मसूद ने भी विधेयक का विरोध किया। (एजेंसी इनपुट्स के साथ)

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