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हर चीज की लिमिट होती है, वर्शिप ऐक्ट केस में बढ़ती PIL पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा

  • वर्शिप ऐक्ट मामले में बढ़ती हस्तक्षेप याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने ऐसे आवेदनों को सीमित करने की जरूरत पर जोर दिया।

Deepak लाइव हिन्दुस्तानMon, 17 Feb 2025 01:57 PM
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हर चीज की लिमिट होती है, वर्शिप ऐक्ट केस में बढ़ती PIL पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा

वर्शिप ऐक्ट मामले में बढ़ती हस्तक्षेप याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने ऐसे आवेदनों को सीमित करने की जरूरत पर जोर दिया। बेंच ने कहाकि हस्तक्षेप दायर करने की एक सीमा होती है। हम आज पूजा स्थल अधिनियम मामले पर सुनवाई नहीं करेंगे। यह तीन न्यायाधीशों की बेंच का मामला है। बहुत सारी याचिकाएं दायर की गई हैं। मामले को मार्च में किसी दिन सूचीबद्ध किया जाएगा। गौरतलब है कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम 15 अगस्त 1947 को स्थापित धार्मिक स्थल के उस समय के स्वरूप को बनाए रखने का प्रावधान करता है।

यह मामला विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं के हस्तक्षेप की अपील पर आधारित है। इसमें कांग्रेस, मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी (सीपीआई (एमएल)), जमीयत उलमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुख असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं। इन दलों ने उस पूजा अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध किया है।

ऐसा था 12 दिसंबर का आदेश
शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर, 2024 के आदेश के जरिए विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों की कार्यवाही रोक दी थी। इसमें 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग की जा रही थी। इनमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद शामिल हैं, जहां झड़पों में चार लोग मारे गए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं की लिस्ट बनाते हुए 17 फरवरी की तारीख सुनवाई के लिए तय की थी।

12 दिसंबर के बाद, कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी के नेता और कैराना सांसद इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी द्वारा 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की गई है। उत्तर प्रदेश के कैराना के लोकसभा सांसद चौधरी ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को टारगेट करने वाली कानूनी कार्रवाइयों के बढ़ते मामलों को रोकने की मांग की। उन्होंने इसे सामुदायिक सद्भाव और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए खतरा बताया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ओवैसी की इसी तरह की अपील को देखने पर सहमति जताई थी।

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