कुछ क्लर्क साहब बने बैठे हैं, आप चाहते हैं उसके आगे सिर झुकाएं; क्यों झल्ला उठे जस्टिस सूर्यकांत
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी निर्माण कार्य के लिए इंजीनियरों की आवश्यकता होती है। ठेकेदारों को समय पर मजदूरों और निर्माण सामग्री की आपूर्ति की जरूरत होती है, तब इस मामले में देरी के लिए सरपंच को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जबकि उसने काम के आवंटन में कोई देरी ही नहीं की।
छत्तीसगढ़ की एक महिला सरपंच को पद से हटाने के खिलाफ एक अपील अर्जी पर आज (गुरुवार, 14 नवंबर को) सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी। जस्टिस सूर्यकांत की पीठ इस मामले को सुन रही थी। इस दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए ना सिर्फ महिला सरपंच को पद पर बहाल करने का आदेश दिया बल्कि उसे एक लाख रुपये बतौर मुआवजा देने का भी आदेश दिया। जस्टिस सूर्यकांत ने अपने फैसले में कहा कि महिला सरपंच को गलत तरीके से अपने पद से हटने के लिए मजबूर किया गया था।
बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह एक निर्वाचित महिला सरपंच को हटाने में मनमानी करने का मामला है। उस महिला सरपंच ने छत्तीसगढ़ के एक दूरदराज इलाके में अपने गांव की सेवा करने का सपना देखा था लेकिन उसकी सोच और प्रतिबद्धताओं की प्रशंसा करने या उसमें मदद के तौर पर हाथ बंटाने की बजाय शासन में बैठे लोगों ने उसे ही पद से हटने पर मजबूर कर दिया। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अपीलकर्ता सरपंच ने गांव के लिए जो करने का इरादा किया था,वह करने नहीं दिया गया और उसके साथ अनुचित कारणों से अन्याय किया गया है।
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने फैसले में कहा, "किसी भी निर्माण कार्य के लिए इंजीनियरों की आवश्यकता होती है। ठेकेदारों को समय पर मजदूरों और निर्माण सामग्री की आपूर्ति की जरूरत होती है, तब इस मामले में देरी के लिए सरपंच को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जबकि उसने काम के आवंटन में कोई देरी ही नहीं की। अगर कार्य आवंटन में निर्वाचित निकाय ने देरी की होती तो वह जिम्मेदार हो सकती थीं। इसलिए हम मानते हैं कि निर्माण में देरी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करना एक बहाना था और उसी बहाने की आड़ में सरपंच को पद से हटाना था।"
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “महिला सरपंच अपने कार्यकाल के अंत तक सरपंच के पद पर बनी रहेंगी। चूंकि अपीलकर्ता को परेशान किया गया है और उसे अनावश्यक मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ा है, इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य को आदेश दिया जाता है कि वह उसे एक लाख रुपये का मुआवजा देगी और यह धनराशि एक सप्ताह के भीतर जारी की जाए। इसके साथ ही राज्य ऐसे अधिकारियों को जवाबदेह बनाए और उनसे मुआवजे की वसूली करे।”
यह फैसला सुनते ही राज्य सरकार के वकील ने कहा, "…लेकिन अधिनियम में कहा गया है कि इसके खिलाफ अपील की जा सकती है..." इतना सुनते ही जस्टिस कांत भड़क गए और झल्लाते हुए कहा, "कुछ क्लर्क साहब बने बैठे हैं और आप चाहते हैं कि सरपंच उस बाबू के समक्ष जाए और अपना सिर झुकाए! सॉरी.. ऐसा नहीं होने दे सकते।" इस पर जब राज्य सरकार के वकील ने कहा कि यह अधिनियम का आदेश है तो पीठ ने कहा कि हमें आगे कुछ कहने पर मजबूर न करें!