हम दिल्ली में बैठकर मॉब लिंचिंग और गौरक्षकों की निगरानी नहीं कर सकते, SC ने खारिज की याचिका
- कोर्ट ने यह भी बताया कि उसने पहले ही तहसीन पूनावाला केस में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे, जो कि सभी प्रशासनिक अधिकारियों के लिए बाध्यकारी हैं।
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सुप्रीम कोर्ट (SC) ने मंगलवार को उस जनहित याचिका (PIL) को बंद कर दिया, जिसमें "गौरक्षकों" द्वारा की जाने वाली भीड़ हिंसा और मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता जताई गई थी। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में ऐसी घटनाओं के अलग-अलग कारण हो सकते हैं और दिल्ली में बैठकर सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए इन मामलों को बारीकी से मैनेज करना (micromanagement) व्यावहारिक नहीं होगा।
हर राज्य की स्थिति अलग, हाईकोर्ट जा सकते हैं याचिकाकर्ता: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने इस दौरान यह भी स्पष्ट किया कि वह विभिन्न राज्यों में लागू गौ-संरक्षण कानूनों की वैधता की जांच नहीं करेगा। पीठ ने कहा कि यदि किसी को इन कानूनों पर आपत्ति है, तो वह संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "किसी एक सामान्य याचिका के आधार पर यह उचित नहीं होगा कि यह कोर्ट 13 विभिन्न राज्यों के कानूनों की वैधता की जांच करे। इसीलिए, संबंधित हाईकोर्ट से संपर्क करना उचित रहेगा।"
तहसीन पूनावाला केस का हवाला दिया
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने यह भी बताया कि उसने पहले ही तहसीन पूनावाला केस में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे, जो कि सभी प्रशासनिक अधिकारियों के लिए बाध्यकारी हैं। यदि कोई व्यक्ति महसूस करता है कि इन निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है, तो वह कानूनी सहायता ले सकता है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "दिल्ली में बैठकर हम देश के विभिन्न क्षेत्रों की घटनाओं की निगरानी नहीं कर सकते। अगर कोई व्यक्ति प्रभावित है, तो वह कानून के अनुसार उचित अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।"
याचिकाकर्ता ने उठाए गंभीर सवाल
यह जनहित याचिका नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन ने दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील निजामुद्दीन पाशा ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले दिए गए निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, खासकर उन राज्यों में जहां हाल ही में गौ-संरक्षण कानून लागू किए गए हैं। पाशा ने कहा, "जब निजी व्यक्तियों को यह अधिकार दिया जाता है कि वे वाहन जब्त कर सकते हैं और पशु तस्करी के संदेह में लोगों को पकड़ सकते हैं, तो यह पुलिस के अधिकार निजी संस्थाओं को सौंपने जैसा है। इस मामले में राज्य मशीनरी के रवैये की भी जांच होनी चाहिए। 13 राज्यों में यह कानून लागू है।"
सरकार की दलील – नया कानून बना दिया गया है
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि हाल ही में भारतीय न्याया संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) के तहत भीड़ हत्या (mob lynching) को दंडनीय अपराध बना दिया गया है। मेहता ने तर्क दिया, "अब पूरा कानूनी ढांचा बदल चुका है।"
कोर्ट ने इस मामले में मुआवजा नीति पर एकसमान आदेश जारी करने से भी इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, "भीड़ हत्या के मामलों में मुआवजा तय करना हर
केस के तथ्यों पर निर्भर करता है। यदि किसी को मामूली चोट लगी हो और किसी को गंभीर, तो एक समान मुआवजा तय करना न्यायसंगत नहीं होगा। इसलिए, इस याचिका में मांगी गई राहत पीड़ितों के हित में नहीं होगी।" सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि भीड़ हिंसा और गौ-संरक्षण कानूनों को लेकर राज्यों की परिस्थितियां अलग-अलग हो सकती हैं। इसलिए, इन मामलों पर निगरानी रखना और कानून की वैधता पर निर्णय लेना संबंधित राज्य के हाईकोर्ट का दायित्व है। इसी आधार पर अदालत ने याचिका को बंद कर दिया।