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महात्मा गांधी भी खुद को लिखते थे 'अंग्रेजों का सेवक', SC ने राहुल गांधी को दिलाया याद; देखें- ऐसा एक लेटर

अब बात करते हैं कि आखिर SC ने गांधी का जिक्र अदालत में क्यों किया। दरअसल महात्मा गांधी भी जब अंग्रेजी सरकार को पत्र लिखा करते थे तो अकसर अंत में लिखते थे- 'I have the honour to remain, Your Excellency's obdt. servant'। इसका अर्थ हुआ- आपका वफादार सेवक बने रहने में मैं खुद को सम्मानित महसूस करूंगा।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 25 April 2025 01:49 PM
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महात्मा गांधी भी खुद को लिखते थे 'अंग्रेजों का सेवक', SC ने राहुल गांधी को दिलाया याद; देखें- ऐसा एक लेटर

स्वतंत्रता सेनानी दामोदर सावरकर पर विवादित टिप्पणी किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को नसीहत दी है। अदालत ने कहा कि वीर सावरकर ने देश को आजादी दिलाई थी और आप उनका मजाक बना रहे हैं। ऐसा स्वीकार नहीं किया जा सकता और यदि भविष्य में भी ऐसा हुआ तो हम स्वत: संज्ञान लेंगे। यही नहीं जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी भी अपने पत्रों में खुद को अंग्रेजों का सेवक लिखते थे। क्या इस आधार पर यह मान लिया जाए कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के सेवक थे। बता दें कि उस दौर में यह एक प्रचलन था और भले ही देश गुलाम था, लेकिन ब्रिटिश सरकार को संबोधित करते हुए लोग ऐसा लिखा करते थे। ऐसा ही महात्मा गांधी भी अपने पत्रों के आखिर में लिखते थे।

अब बात करते हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी का जिक्र अदालत में क्यों किया। दरअसल महात्मा गांधी भी जब अंग्रेजी सरकार को पत्र लिखा करते थे तो अकसर अंत में लिखते थे- 'I have the honour to remain, Your Excellency's obdt. servant'। इसका अर्थ हुआ- आपका वफादार सेवक बने रहने में मैं खुद को सम्मानित महसूस करूंगा। अब बात करते हैं कि महात्मा गांधी या फिर वीर सावरकर के लेटर्स में ऐसी भाषा इस्तेमाल करने का क्या उद्देश्य था। ब्रिटिशकालीन इतिहास पर नजर डालें तो उस दौरान यह परंपरा थी कि ब्रिटिश सरकार से संवाद में ऐसा लिखा जाता था। महात्मा गांधी, वीर सावरकर समेत कई नेताओं ने आजादी की लड़ाई लड़ी, जेल भी गए और आंदोलनों में भी हिस्सा लिया।

इसके बाद भी जब पत्र लिखते थे तो उसकी यही भाषा होती थी। इसका कोई खास अर्थ नहीं था और इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि किसी नेता की अंग्रेजों से वफादारी थी या वे ऐसा कोई वादा करते थे। यह महज एक औपचारिकता हुआ करती थी। आप इस आर्टिकल में भी संलग्न महात्मा गांधी एक पत्र के आखिरी हिस्से को देख सकते हैं, जो उन्होंने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड को 22 जून, 1920 को लिखा था। देखें लेटर…

लॉर्ड चेम्सफोर्ड को लिखा गया महात्मा गांधी का एक पत्र

'आपको भूगोल और इतिहास की जानकारी नहीं तो बोलना नहीं था'

ऐसे ही पत्रों का हवाला देते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता ने अभिषेक मनु सिंघवी से कहा, 'क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी भी वायसराय को संबोधित करते हुए खुद को आपका वफादार सेवक लिखा करते थे? क्या वह जानते हैं कि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने भी एक पत्र लिखा था, जिसमें सावरकर की तारीफ की थी।' इसके आगे जज ने कहा, ‘इसलिए राहुल गांधी को फ्रीडम फाइटर्स पर गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देने चाहिए। आप स्वतंत्रता के आंदोलनकारियों के बारे में ऐसे बात नहीं कर सकते, जब आपको देश के इतिहास और भूगोल के बारे में कोई जानकारी न हो।’

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अदालत ने कहा- महाराष्ट्र में जाकर ऐसा बोला, जहां भगवान जैसे हैं सावरकर

इसके आगे अदालत ने कहा, 'राहुल गांधी का एक कद है। वह एक दल के नेता हैं। आप कैसे इस तरह का विवाद खड़ा कर सकते हैं? आप महाराष्ट्र जाते हैं और ऐसा बयान देते हैं, जहां उनकी (सावरकर) पूजा की जाती है? ऐसा न करें। आपने ऐसा बयान क्यों दिया?' अदालत ने इसके बाद एक और उदाहरण देते हुए कहा कि ब्रिटिशकाल में कलकत्ता हाई कोर्ट के जज चीफ जस्टिस को पत्र लिखने के बाद खुद को वफादार सेवक लिखा करते थे। बेंच ने कहा, 'इस तरह कोई किसी का सेवक या नौकर नहीं हो जाता। अगली बार कोई कहेगा कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के नौकर थे। आप इस तरह के बयानों को बढ़ावा दे रहे हैं।'

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