इंसान सुपरमैन बनना चाहता है; मोहन भागवत ने ऐसा क्या कहा; कांग्रेस को आया मजा
झारखंड के गुमला में आरएसएस चीफ ने कहा कि एक व्यक्ति पहले सुपरमैन बनना चाहता है, फिर देवता और फिर भगवान। इसकी कोई सीमा नहीं है। वहीं आरएसएस चीफ के बयान पर कांग्रेस ने तंज कस दिया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि आत्म-विकास करते समय एक मनुष्य अतिमानव (सुपरमैन) बनना चाहता है। इसके बाद वह देवता, फिर भगवान बनना चाहता है। साथ ही विश्वरूप की भी आकांक्षा रखता है, लेकिन वहां से आगे भी कुछ है क्या, यह कोई नहीं जानता है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों में मनुष्य होने के बावजूद मानवीय गुणों का अभाव होता है। उन्हें सबसे पहले अपने अंदर इन गुणों को विकसित करना चाहिए। झारखंड के गुमला में गैर-लाभकारी संगठन विकास भारती द्वारा आयोजित ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता बैठक को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि लोगों को मानव जाति के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि विकास और मानव महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं है।
आरएसएस चीफ के बायन को लेकर कांग्रेस ने पीएम मोदी पर तंज कस दिया ह। जयराम रमेश ने इस बयान को 'भागवत बम' बताते हुए कहा कि मुझे पता है कि स्वघोषित नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री को पता चल गया हो कि नागपुर से हाल में दागी गई मिसाइल का निशाना लोक कल्याण मार्ग है।
भागवत ने झारखंड के कार्यक्रम में कहा कि मानवीय गुणों को विकसित करने के बाद एक मनुष्य अलौकिक बनना चाहता है, सुपरमैन बनना चाहता है, लेकिन वह वहां रुकता नहीं है। इसके बाद उसे लगता है कि देवता बनना चाहिए, लेकिन देवता कहते हैं कि हमसे तो बड़ा भगवान है और फिर वह भगवान बनना चाहता है। भगवान कहता है कि वह तो विश्वरूप है तो वह विश्वरूप बनना चाहता है। वहां भी कुछ है क्या रुकने की जगह, ये कोई नहीं जानता है। लेकिन, विकास का कोई अंत नहीं है। बाहर का विकास भी और अंदर का विकास भी, यह निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को मानवता के लिए अथक परिश्रम करना चाहिए। साथ ही कहा कि एक कार्यकर्ता को अपने काम से कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए।
भागवत ने कहा कि काम जारी रहना चाहिए। पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में निरंतर कार्य करने का प्रयास करना चाहिए...इसका कोई अंत नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर कार्य करना ही एकमात्र समाधान है। बदलते समय के साथ हमारे कपड़े तो बदल सकते हैं, लेकिन हमारा स्वभाव कभी नहीं बदलेगा। बदलते समय में अपने काम और सेवाओं को जारी रखने के लिए हमें नए तौर-तरीके अपनाने होंगे। जो लोग अपने स्वभाव को बरकरार रखते हैं, उन्हें विकसित कहा जाता है। भागवत ने कहा कि वह देश के भविष्य को लेकर कभी चिंतित नहीं रहे, क्योंकि कई लोग इसकी बेहतरी के लिए सामूहिक रूप से काम कर रहे हैं।
सनातन संस्कृति ही दुनिया को तारेगी
भागवत ने सनातन संस्कृति की चर्चा करते हुए कहा कि यह खेतों, जंगलों और आश्रमों से निकली है। यही दुनिया को तारेगी। कोरोना के समय यह साफ दिखा। उन्होंने कहा कि हमारी भाषा, खान-पान और वेशवूषा भले ही अलग हो, लेकिन पूरे भारत के लोगों की प्रकृति, प्रवृत्ति और स्वभाव एक ही है। उसे हम पवित्र मानते हैं, जिन्होंने हमें कुछ दिया है, उन्हें वह हमारे के लिए माता है। इसीलिए धरती, गंगा और गो को माता मानते हैं, जो इस देश के कथित प्रगतिशील को पसंद नहीं आती है। संघ प्रमुख ने विकास को सतत प्रक्रिया बताते हुए कहा कि यह भारत के तरीके से हो। विकास का अंत नही है। देश में नए-नए आयाम स्थापित करने की जरूरत है, मगर मूल स्वभाव बरकरार रहना चाहिए।
आदिवासी समाज के विचार बदले जा रहे
आदिवासी समाज के स्वभाव और उसकी विचारधारा को बदला जा रहा है। जिनके पास प्रभाव है वह जनजातीय समाज का अभाव दूर करने के नाम पर यह कर रहे हैं। देश के जनजातीय समाज का अपेक्षित विकास नहीं हुआ है। वे आज भी अभावों से घिरे हैं। वहां काम की जरूरत है। (भाषा से इनपुट्स के साथ)
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