समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट फिर सुनवाई को राजी, संवैधानिक बेंच ने दिया था फैसला
समलैंगिक विवाह के मामले में बीते साल ही सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की बात से इनकार कर दिया था।
समलैंगिक विवाह के मामले में बीते साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की बात से इनकार कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा था कि समलैंगिक रिश्तों को अपराध नहीं माना जा सकता है। इससे पहले ऐसा करने को आर्टिकल 377 के तहत अपराध की श्रेणी में रखा गया था। 10 जुलाई से इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू होगी। इस केस की सुनवाई 5 जजों बेंच करेगी, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ करेंगे।
उनके अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस पीवी नरसिम्हा भी बेंच का हिस्सा होंगे। संवैधानिक बेंच ने पिछले साल दिए आदेश में कहा था कि समलैंगिक विवाह को भारत में मान्यता देने में कई तकनीकी पेच हैं। अदालत का कहना था कि भारत में जेंडर न्यूट्रल कानून नहीं हैं। ऐसे में यदि समलैंगिक विवाह में किसी का उत्पीड़न होता है तो कैसे साबित होगा कि कौन पति है और कौन पत्नी है। इसलिए भारत जैसे देश में यदि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई तो फिर बहुत सारे कानूनों को बदलना होगा।
तब सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील ने भी कहा था कि ऐसी मंजूरी देना ठीक नहीं होगा। ऐसा करने के लिए बहुत सारे कानूनों को बदलना होगा। इसके अलावा यह जटिलता भी रहेगी कि समलैंगिक विवाह में किसे पति और पत्नी माना जाए। वहीं समलैंगिक विवाह की मान्यता की मांग करने वालों का कहना था कि भारत विवाह आधारित समाज है। ऐसे में समलैंगिक रिश्तों में यदि विवाह को मंजूरी दी जाए तो वह बेहतर होगा। इसके अलावा विवाह को सामाजिक सुरक्षा के लिए भी जरूरी माना गया था। अब उस आदेश को अदालत में चुनौती मिली है और सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को सुनवाई करने का फैसला लिया है।