कॉलेजियम को लेकर सरकार पर फिर से भड़का SC, पूछा- क्यों अटका रखी हैं 80 फाइलें
केंद्र द्वारा देरी का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वे मामले की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।
छोटे से अल्पविराम के बाद एक बार फिर से न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने सवाल किया कि केंद्र ने अभी तक उच्च न्यायालयों की सिफारिशें कॉलेजियम को क्यों नहीं भेजी हैं। नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वे मामले की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति कौल ने केंद्र सरकार को सीधे संबोधित करते हुए कहा, "उच्च न्यायालय के 80 नाम 10 महीने से लंबित हैं। केवल एक बुनियादी प्रक्रिया होती है जिसे किया जाना है। आपका दृष्टिकोण जानना होगा ताकि कॉलेजियम निर्णय ले सके।" पीठ ने कहा कि 26 न्यायाधीशों का तबादला और "संवेदनशील उच्च न्यायालय" में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति लंबित है।
जस्टिस कौल ने कहा, "मेरे पास इस बात की जानकारी है कि कितने नाम लंबित हैं। इनकी सिफारिश उच्च न्यायालय ने की है लेकिन कॉलेजियम को यह (सिफारिशें) नहीं मिली है।" अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा है। पीठ ने उन्हें दो सप्ताह का समय दिया और कहा कि वे इस मसले पर केंद्र की दलील के साथ आएं। अब इस मामले की सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी।
सख्त टिप्पणी में जस्टिस कौल ने कहा, "कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन मैं खुद को रोक रहा हूं। मैं चुप हूं क्योंकि ए-जी ने जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा है, लेकिन अगली तारीख पर मैं चुप नहीं रहूंगा।" न्यायाधीशों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय और कार्यपालिका के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रही है। केंद्रीय मंत्रियों का तर्क है कि जजों के चयन में सरकार की भूमिका होनी चाहिए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति अधिनियम को रद्द कर दिया था। अगर यह अधिनियम रहता तो न्यायाधीशों की नियुक्तियों में कार्यपालिका की बड़ी भूमिका होती। कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच विवाद पिछले साल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की उस टिप्पणी से और बढ़ गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कानून को "निष्प्रभावी" कर दिया है।