Hindi Newsदेश न्यूज़Supreme Court Sets Aside Bail Granted To PFI Members National Security Of Paramount Importance - India Hindi News

देश की सुरक्षा सर्वोपरि है, तुरंत सरेंडर कर दो; SC ने रद्द की PFI सदस्यों की जमानत

रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ 19 अक्टूबर, 2023 के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की याचिका पर फैसला कर रही थी।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 22 May 2024 02:48 PM
share Share

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने बुधवार को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपित प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े 8 लोगों को जमानत देने के मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इन लोगों की जमानत रद्द करते हुए कहा कि उनके खिलाफ आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने के लिए पैसे इकट्ठा करने के आरोप 'प्रथम दृष्टया सच' प्रतीत होते हैं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ 19 अक्टूबर, 2023 के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की याचिका पर फैसला कर रही थी। पीठ ने कथित अपराधों की गंभीरता, कारावास की अवधि 1.5 वर्ष और एनआईए द्वारा पेश किए गए मटेरियल पर ध्यान दिया और हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने पर सहमति व्यक्त की। कोर्ट ने जमानत रद्द करते हुए सुनवाई में तेजी लाने का भी निर्देश दिया है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि "आरोपियों के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सत्य हैं और यूएपीए की धारा 43डी(5) में निहित प्रावधान का आदेश आरोपियों को जमानत पर रिहा नहीं करने के लिए लागू होगा।" उन्होंने कहा कि अपराधों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए और आरोप पत्र में बताए गए आरोपियों के पिछले आपराधिक इतिहास को भी ध्यान में रखना होगा। इसके अलावा, अभियुक्तों की हिरासत की अवधि बमुश्किल 1.5 वर्ष हुई है। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता। 

कोर्ट ने आगे कहा कि यूएपीए आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने और देश में राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि रखने के प्रयास को दर्शाता है। इस प्रकार यूएपीए के तहत आरोपी व्यक्तियों या संगठनों की नागरिक स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंध भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के व्यापक हित में किए गए हैं।

न्यायालय ने कहा, "इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय सुरक्षा हमेशा सर्वोपरि है और किसी भी आतंकवादी कृत्य से जुड़ा कोई भी हिंसक या अहिंसक कृत्य प्रतिबंधित किया जा सकता है। यूएपीए ऐसे अधिनियमों में से एक है जो व्यक्तियों या संघों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की प्रभावी रोकथाम और आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के साथ-साथ भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में ऐसे व्यक्तियों की नागरिक स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाने के लिए अधिनियमित किया गया है।" अदालत ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और आरोपियों को एनआईए के सामने तुरंत सरेंडर करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने विशेष अदालत को फैसले में किसी भी टिप्पणी से प्रभावित हुए बिना कानून का तेजी से पालन करने का भी निर्देश दिया। 

इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एसएस सुंदर और सुंदर मोहन द्वारा दिए गए आदेश में आरोपी को 'आतंकवादी कार्य करने' के लिए धन इकट्ठा करने के अपराध जैसी किसी भी आतंकवादी गतिविधियों से जोड़ने से इनकार कर दिया था। एनआईए ने अपनी जांच में एक 'विजन डॉक्यूमेंट' का खुलासा किया था जिसमें कई आरएसएस नेताओं के निशानों का कलेक्शन दिखाया गया था। आरोप था कि इस विजन डॉक्यूमेंट के मुताबिक आरोपियों ने आरएसएस और अन्य हिंदू संगठन के नेताओं को पीएफआई की 'हिट लिस्ट' में शामिल किया था।

अगला लेखऐप पर पढ़ें