'2 मिनट में नहीं हो सकता फैसला', अब अनुच्छेद 370 के बाद ही सुप्रीम कोर्ट सुलझाएगा शिवसेना विवाद
भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद शिंदे कैंप की ओर से ECI में नाम और चिह्न के लिए याचिका दी गई। चुनाव आयोग ने भी विधायक दलों की संख्या को देखते हुए शिंदे गुट को नाम और चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया।
पार्टी 'शिवसेना' और चुनाव चिह्न 'तीर-कमान' पर शीर्ष न्यायालय जल्द ही बड़ा फैसला सुना सकता है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ जारी मामले की सुनवाई के बाद शिवसेना के इस मामले को सूचीबद्ध किया जाएगा। CJI यानी भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि इस केस में फैसला दो मिनट में नहीं आ सकता है।
उद्धव ठाकरे की ओर से कोर्ट पहुंचे एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने शिवसेना का मामला कोर्ट के सामने रखा। साथ ही उन्होंने इसकी तत्काल सुनवाई की भी अपील की। इसपर कोर्ट ने मामले को अनुच्छेद 370 के बाद सुनने का फैसला किया है। सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का मानना है कि शिवसेना मामले में अंतिम फैसला देने में कुछ समय की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा, 'इसे 2 मिनट में तय नहीं किया जा सकता है। आर्टिकल 370 की बात खत्म होने दीजिए। फिर इसे हम लिस्ट करते हैं।' खास बात है कि शीर्ष न्यायालय की संवैधानिक बेंच अनुच्छेद 370 से जुड़े मामलों में बुधवार से अंतिम सुनवाई शुरू कर रही है।
क्या था मामला
दरअसल, भारत निर्वाचन आयोग ने मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले गुट को 'शिवसेना' नाम और 'तीर-कमान' चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया था। वहीं, फरवरी में शीर्ष न्यायालय ने भी चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। जून-जुलाई 2021 में शिवसेना में फूट हो गई थी, जिसके बाद एक गुट की कमान पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के पास रही। वहीं, अधिकांश विधायकों ने शिंदे को समर्थन दे दिया।
भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद शिंदे कैंप की ओर से ECI में नाम और चिह्न के लिए याचिका दी गई। चुनाव आयोग ने भी विधायक दलों की संख्या को देखते हुए शिंदे गुट को नाम और चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया। हालांकि, ECI ने साफ किया था कि संगठन स्तर पर परीक्षण करने की कोशिश की गई थी और कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल सका था। आयोग ने बताया था कि इसकी वजह पार्टी का नया संविधान रिकॉर्ड में नहीं था।
निर्वाचन आयोग का कहना था कि संगठन स्तर पर दोनों ही गुटों की तरफ से किए गए संख्याबल के दावे संतोषजनक नहीं थे। खास बात है कि एक ओर जहां शिंदे गुट के पास उस दौरान 40 विधायकों का समर्थन रहा। वहीं, ठाकरे को केवल 15 विधायकों का साथ मिला।
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