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'पूर्ण विनाश हो जाएगा', समलैंगिक विवाह पर भाजपा सांसद सुशील मोदी का तर्क

सुशील मोदी ने कहा, भारत देश में समलैंगिक विवाह की न कोई मान्यता है और न ही स्वीकार किया जाता है। अगर ऐसा किया जाता है तो यह पूर्ण विनाश का कारण होगा।

Gaurav Kala हिन्दुस्तान टाइम्स, नई दिल्लीMon, 19 Dec 2022 09:31 AM
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बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा सांसद सुशील मोदी ने सरकार से मांग की है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। राज्यसभा में शून्य काल के दौरान बोलते हुए सुशील मोदी ने कहा, भारत देश में इस तरह की चीजों न कोई मान्यता है और न ही स्वीकार किया जाता है। अगर ऐसा किया जाता है तो यह पूर्ण विनाश का कारण होगा।

दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में संबंधित कानून को समाप्त करके समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, लेकिन अभी भी समान लिंग के व्यक्तियों के बीच विवाह को कोई कानूनी मंजूरी नहीं मिल पाई है। इस महीने की शुरुआत में एलजीबीटीक्यू जोड़ों द्वारा दायर दो जनहित याचिकाओं में कहा गया था कि राज्य द्वारा उन्हें विवाहित के रूप में मान्यता देने से इनकार करना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

इस मसले पर राज्यसभा में बोलते हुए भाजपा सांसद सुशील मोदी ने कहा "भारत के भीतर समान लिंग विवाह को देश में विवाह वाले कानूनों द्वारा न तो मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकार्य है। क्योंकि यह देश में निजी कानूनों के संतुलन की दृष्टि से पूर्ण विनाश का कारण होगा।" उन्होंने तर्क दिया कि गोद लेने, घरेलू हिंसा, तलाक और वैवाहिक घर में रहने के अधिकार से संबंधित कानून "पुरुषों और महिलाओं के बीच विवाह की संस्था" से जुड़े हैं।

याचिकाओं पर अगले महीने सुनवाई होने की उम्मीद के साथ, भाजपा सांसद ने कहा कि इस मुद्दे पर अदालत में फैसला नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, विवाह एक ऐसी संस्था है जिसमें पुरुष और महिला दोनों एक साथ रहते हैं और बच्चे पैदा करके अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाते हैं।

समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के लिए 'वामपंथी उदारवादियों' पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीश इसका फैसला नहीं कर सकते... इसके लिए संसद में इसपर चर्चा की जरूरत है।' संसद में बहस के लिए जोर देते हुए उन्होंने कहा कि विवाह एक सामाजिक मुद्दा है, न्यायपालिका को इसकी वैधता पर फैसला नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, "इस मुद्दे पर संसद और समाज में विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।"

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