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LAC पर ऐसे लगेगी ड्रैगन पर लगाम, तवांग में हरकतों के बाद भारत को उठाने होंगे ये कदम

तवांग सीमा पर हुई घटना यह बताने के लिए काफी है कि चीन सुधरने वाला नहीं हैं। चीन और उसकी सेना 3488 किमी की लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर लगातार भारत को उकसाता रहेगा। इसलिए उस पर लगाम जरूरी है।

Deepak शिशिर गुप्ता, हिंदुस्तान टाइम्स, नई दिल्लीTue, 13 Dec 2022 10:24 AM
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तवांग बॉर्डर पर चीन की हरकत ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि वह भारत के साथ सीमा से से जुड़े मामलों को हल करने का इच्छुक नहीं हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह चीन के उस बयान के बाद हुआ है, जिसमें उसने भारत को 1993-96 में हुए द्विपक्षीय सीमा समझौते पर कायम रहने के लिए कहा था। चीन ने उस वक्त ऑली में चल रहे भारत-अमेरिका सैन्य अभ्यास पर आपत्ति जताई थी। लेकिन बॉर्डर समझौते पर कायम रहने के लिए कहने के कुछ ही दिनों के अंदर चीन ने खुद ही तवांग में सीमा पर गुस्ताखी कर डाली। हालांकि, पहले से सतर्क भारतीय जवानों ने उसका मुंहतोड़ जवाब दे डाला, लेकिन इस घटना से भारत को कई सबक सीखने की जरूरत है।

सबक नंबर 1: चीन सुधरने वाला नहीं
तवांग सीमा पर हुई घटना यह बताने के लिए काफी है कि चीन सुधरने वाला नहीं हैं। वह 3488 किमी की लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर लगातार भारत को उकसाता रहेगा। असल में चीनी सेना का मकसद साल 1959 के उसके तत्कालीन आर्मी चीफ द्वारा खींचे गए नक्शे को लागू करने का है। इसके तहत वह पश्चिमी या पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सीमा के बारे में चीनी धारणा को परिभाषित करना चाहेंगे। उसका दूसरा मकसद अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा जमाने का है। जो लोग, सोचते हैं अगर भारत चीन के हिसाब से सीमा मुद्दों पर काम करता रहेगा तो ड्रैगन इस मामले को खराब नहीं करेगा, वह गलत साबित हो सकते हैं। तवांग पर जो हुआ उसने यह साबित कर दिया है कि चीन तिब्बत पर कब्जे के मकसद के लिए आने वाले वक्त में भी ऐसी हरकतें करता रहेगा। 

सबक नंबर 2: रूस के साथ जाने में रिस्क 
देश में एक बौद्धिक तबका है, जो कहता है कि भारत को अमेरिका के बजाए रूस से दोस्ती बढ़ानी चाहिए। उनका दावा है कि अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसके पीछे वह 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी सैन्यबलों की मौजूदगी का हवाला देते हैं, जिसका मकसद भारत पर दबाव बनाना था। भारतीय सैन्य सेवाओं से जुड़े इस तबके मानना है कि भारत को विदेश नीति का पालन करते हुए रूस और चीन से करीबी रखनी चाहिए, बदले में उसे सीमा पर शांति का माहौल मिल सकता है। यह लोग भूल जाते हैं कि रूस चीन का आंखें बंद करके समर्थन करने वाला देश है। वहीं, भारत को पश्चिमी देशों से अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी की जरूरत है, जिससे वह अपने सैन्य उद्योग में इजाफा कर सकता है। चीन के साथ रिश्तों का समर्थन करने वालों को यह भी याद रखना चाहिए कि उसने सिक्किम को भारतीय हिस्से के रूप में तभी मान्यता दी, जब अमेरिका ने भारत को 2002 में सिविलियन न्यूक्लियर डील का ऑफर दिया। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 1962 के युद्ध के दौरान रूस ने नहीं, बल्कि अमेरिका ने भारत का साथ दिया था। 

सबक नंबर 3: आक्रामकता से ही बनेगी बात
बहुत से एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर भारत नहीं चाहता कि चीन सीमा पर खुराफात करे तो उसे क्वॉड गेम से बाहर रहना चाहिए। विशेषज्ञों के मुताबिक क्वॉड अमेरिका को ज्यादा सूट करता है, क्योंकि वह इसके जरिए इंडो-पैसिफिक पर निगरानी चाहता है। इनका कहना है कि भारत को पड़ोसी देश को तवज्जो देनी चाहिए और इंडियन ओशियन पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन यह रणनीति कारगर नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि भारत सैन्य मामलों में चीन से कमजोर है। वहीं, चीन के ग्लोबल रोल की तुलना में भारत की भूमिका क्षेत्रीय ही है। हालांकि इंडो-पैसेफिक से दूरी बनाने के भी अपने खतरे हैं। ऐसा होने पर चीनी नेवी आने वाले वक्त में इंडियन ओशियन में पैट्रोलिंग शुरू कर देगी। ऐसे में आक्रामकता ही चीन का काबू पाने का एकमात्र उपाय है। भारत को चाहिए कि वह ऑस्ट्रेलिया, जापान, फिलीपीन्स और इंडोनेशिया जैसे सहयोगियों के साथ मिलकर इंडियन ओशियन में चीनी सेना पर दबाव बनाए।

सबक नंबर 4: मिलिट्री को हाइटेक बनाना
चौथा सबक यह है कि भारत अपनी सेना को पूरी तरह से हाइटेक बनाए। एलएसी पर दुश्मन को देखते हुए उसे इसके लिए फ्रांस और अमेरिका जैसे अपने सहयोगियों की मदद लेनी चाहिए। पिछले दशकों में भारतीय सेना बॉर्डर पर सड़कें नहीं बनाती थी, क्योंकि उसे आशंका थी कि कहीं इससे चीनी सेना को ही मदद मिलने लगे। हालांकि अब यहां पर सड़कों का निर्माण हो रहा है। उसी तरह से भारत को चाहिए कि वह सीमा पर संसाधनों को चीन के स्तर तक अपग्रेड करे। अगर भारतीय सरकार चाह तो ऐसा करना मुश्किल नहीं होगा।

पांचवां सबक: इंटेलीजेंस को भी अपग्रेड किया जाए
पांचवां सबक यह है कि भारत अपने इंटेलीजेंस सिस्टम को चीन की तरह से अपग्रेड करे। ऐसा करने पर एलएसी पर चीन की सेना की सभी हरकतों की निगरानी हो सकेगी। पूर्व में चीन के ऊपर दबाव न बनाने का खामियाजा भारत भुगत चुका है। तिब्बत से बौद्धों को निकाले जाने जैसी घटनाएं हुई हैं। वहीं, पूर्व में भारतीय इंटेलीजेंस चीन और एलएसी पर उसकी सैन्य गतिविधियों के प्रति उदासीन भी रही है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 1950 में बनाई गई स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की तैनाती साल 2020 में जाकर हुई। हालांकि इंटेलीजेंस सिचुएशन में भी पहले से ज्यादा बदलाव आया है, लेकिन इसे और बेहतर बनाए जाने की जरूरत है।

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