जमीन पर चांद कहां रोज-रोज उतरता है; जजों के स्वागत में शायराना हुए चीफ जस्टिस, सरकार का शुक्रिया
देर लगी तुमको आने में, शुक्र है फिर भी आये तो... चीफ जस्टिस ने विजयपथ फिल्म का गीत दोहराते हुए नए नियुक्त हुए जजों का स्वागत किया। इसके अलावा उन्होंने वसीम बरेली का एक शेर भी पढ़ा।
सुप्रीम कोर्ट में दो नए जजों की नियुक्ति के मौके पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शायराना अंदाज में नजर आए। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन के स्वागत में एक तरफ विजयपथ फिल्म के गीत की पंक्तियां सुनाईं तो वहीं वसीम बरेलवी के शेर से आगे की बात कही। छत्तीसगढ़ के चीफ जस्टिस रहे प्रशांत मिश्रा के स्वागत में चीफ जस्टिस ने कहा कि आपने नए राज्य की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया था। उनके स्वागत में चीफ जस्टिस ने फिल्म विजयपथ का गीत दोहराया, 'देर लगी आने में तुमको, शुक्र है फिर भी आए तो। आस ने दिल का साथ ना छोड़ा, वैसे हम घबराये तो।'
वहीं जस्टिस विश्वनाथन के स्वागत भाषण में चंद्रचूड़ ने कहा कि आप युवा वकील के तौर पर भी आदर्श रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक वकील के तौर पर आपका करियर बताता है कि उतावलापन और दिखावटी होना सुप्रीम कोर्ट में सफलता की पहचान नहीं है। उनकी प्रोन्नति के स्वागत में चीफ जस्टिस ने वसीम बरेलवी की पंक्तियां गुनगुनाईं- तुम आ गए हो तो कुछ चांदनी सी बातें हों, जमीन पर चांद कहां रोज-रोज उतरता है। जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने अपनी नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश और कॉलेजियम को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस की तरह ही वह भी बार के ही प्रोडक्ट हैं।
चीफ जस्टिस बोले- साबित हुआ कि कॉलेजियम वाइब्रेंट सिस्टम
इस मौके पर चीफ जस्टिस ने जजों की नियुक्ति पर 72 घंटे के अंदर फैसला लिए जाने पर सरकार की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम की सिफारिशों को सरकार ने तीन दिन के अंदर ही मंजूर कर दिया। इससे देश को यह संदेश गया है कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की व्यवस्था वाइब्रेंट हैं, ऐक्टिव और उद्देश्य को पूर्ण करने वाली है। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति में अकेले कॉलेजियम का ही रोल नहीं है, इसमें सरकार भी बराबर की भागीदार है। इसलिए सरकार को भी प्रकिया तेजी से पूरी करने के लिए धन्यवाद देना चाहिए।
सरकार को भी बोलें धन्यवाद, उसने तेजी से लिया है फैसला
चीफ जस्टिस ने कहा, 'हमें यह स्वीकार करना होगा कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार भी बराबर की हिस्सेदार है। यदि उसने 72 घंटों के अंदर ही फैसला कर लिया तो उससे देश को यह संदेश गया है कि कॉलेजियम की व्यवस्था वाइब्रेंट है, सक्रिय है और अपने उद्देश्य को पूरा करने वाली है।'