भारत आए हसीना को हो गए 20 दिन, राजनायिक पासपोर्ट भी रद्द; प्रत्यर्पण का खतरा मंडराया
- सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर में कहा गया है कि हसीना के पास उनके नाम से जारी राजनयिक पासपोर्ट के अलावा कोई अन्य पासपोर्ट नहीं है।
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना लगभग तीन सप्ताह से भारत में ही हैं। इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री के अगले कदम के बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा हसीना का राजनयिक पासपोर्ट रद्द करने से उनके भारत में रहने की संभावना कम हो गई है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ-साथ पूर्व मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों का राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है।
देश के गृह मंत्रालय के सुरक्षा सेवा प्रभाग ने घोषणा करते हुए कहा है कि शेख हसीना, उनके सलाहकारों, पूर्व कैबिनेट सदस्यों और हाल ही में भंग की गई 12वीं जातीय संसद के सभी सदस्यों और उनके जीवनसाथियों का राजनयिक पासपोर्ट तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया जाएगा। अंतरिम सरकार ने यह कदम विद्यार्थियों के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा इस्तीफा देने और भारत चले जाने के लगभग दो सप्ताह बाद उठाया है। इन पासपोर्टों को रद्द करने का प्रावधान उन राजनयिक अधिकारियों पर भी लागू होता है जिनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है, साथ ही कम से कम दो जांच एजेंसियों की मंजूरी के बाद ही साधारण पासपोर्ट जारी किए जाने की संभावना है।
क्या शेख हसीना को प्रत्यर्पण का खतरा है?
सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर में कहा गया है कि हसीना के पास उनके नाम से जारी राजनयिक पासपोर्ट के अलावा कोई अन्य पासपोर्ट नहीं है। हसीना के राजनयिक पासपोर्ट और उससे संबंधित वीजा विशेषाधिकारों को रद्द करने से उन्हें प्रत्यर्पित किए जाने की आशंका बढ़ सकती है। ढाका से प्रकाशित अखबार ‘डेली स्टार’ की खबर के मुताबिक भारतीय वीजा नीति के अनुसार राजनयिक या आधिकारिक पासपोर्ट रखने वाले बांग्लादेशी नागरिक वीजा-मुक्त प्रवेश करने और 45 दिन तक रहने के पात्र हैं। हसीना के भारत में रहते 20 दिन हो गए हैं हैं।
उनके राजनयिक पासपोर्ट और उससे संबंधित वीजा विशेषाधिकारों को रद्द करने से हसीना का बांग्लादेश में प्रत्यर्पण का जोखिम बढ़ सकता है, जहां उन पर 51 मामले चल रहे हैं, जिनमें हत्या के 42 मामले शामिल हैं। हसीना का प्रत्यर्पण बांग्लादेश और भारत के बीच 2013 की प्रत्यर्पण संधि के कानूनी ढांचे के अंतर्गत आएगा, जिसे 2016 में संशोधित किया गया था। हालांकि संधि में आरोप राजनीतिक प्रकृति के होने पर प्रत्यर्पण से इनकार करने की अनुमति दी गई है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से हत्या जैसे अपराधों को राजनीतिक नहीं मानता है।
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