Hindi Newsदेश न्यूज़Prior Sanction Mandatory for ED To Prosecute Public Servants and Judges in Money Laundering Case Supreme Court orders

जजों-अफसरों पर ऐसे ही नहीं कस सकते नकेल, पहले लेनी होगी इजाजत; SC ने ED को क्यों झिड़का

IAS अधिकारी के खिलाफ भूमि आवंटन में आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने, संपत्तियों का कम मूल्यांकन करने और अनुचित रियायत देने के आरोप हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री से जुड़ी निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाया था।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 6 Nov 2024 06:04 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को करारा झटका देते हुए कहा है कि CrPC की धारा 197(1) के अनुसार सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान कथित अपराधों के लिए किसी भी अधिकारी यानी लोक सेवक या न्यायाधीशों पर मुकदमा चलाने से पहले उसे सरकार की इजाजत लेनी होगी। कोर्ट ने दो टूक लहजे में कहा कि यही नियम मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले में भी लागू होगा। जस्टिस अभय ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें तेलंगाना हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पूर्व अनुमति के अभाव के आधार पर एक IAS अधिकारी के खिलाफ संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया गया था।

मामले में प्रतिवादी IAS अधिकारी बिभु प्रसाद आचार्य के खिलाफ भूमि आवंटन में आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने, संपत्तियों का कम मूल्यांकन करने और अनुचित रियायत देने के आरोप हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी से जुड़ी निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाया था। इससे सरकार को बड़े पैमाने पर वित्तीय नुकसान हुआ। ईडी ने आरोप लगाया कि आचार्य ने इन लेन-देन को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रमुख हस्तियों के साथ साजिश रची।

तेलंगाना हाई कोर्ट में दी गई अपनी अर्जी में आचार्य ने तर्क दिया था कि उन्होंने आधिकारिक क्षमता के तहत ही कार्य किया है और उनके खिलाफ मुकदमे और अभियोजन के लिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत सरकार की पूर्व मंजूरी आवश्यक है। इस पर ईडी ने तर्क दिया कि PMLA एक विशेष कानून है, जिसमें धारा 65 और 71 के तहत अधिभावी प्रावधान हैं, इसलिए इसके लिए सरकार से ऐसी मंजूरी की जरूरत नहीं है।

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ईडी ने कहा कि आरोपों में निजी लाभ के लिए आधिकारिक शक्तियों का दुरुपयोग शामिल है,इसलिए CrPC की धारा 197(1) के अनुसार द्वारा दी गई सुरक्षा नहीं दी जा सकती है। ईडी ने आगे तर्क दिया कि पीएमएलए के तहत कार्यवाही के लिए मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं है क्योंकि पीएमएलए हर चीज के लिए प्रक्रिया प्रदान करने वाला एक पूर्ण कोड है। हाई कोर्ट ने इस मामले में ईडी के तर्कों को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ ईडी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी ईडी को झटका दिया है और दो टूक कहा है कि जज हों या सरकारी लोक सेवक मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में भी उन पर कार्रवाई से पहले सरकार की इजाजत लेनी होगी।

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