महिला सरपंचों से बदला लेने के लिए सांठगांठ कर रहे पंचायत सदस्य, अब सुप्रीम कोर्ट ने लिया ऐक्शन
- महिला सरपंच ने इस घटनाक्रम को चुनौती दी। उच्च न्यायालय द्वारा कोई राहत देने से इनकार करने के बाद, उसने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत स्तर पर महिला प्रतिनिधियों के साथ भेदभाव और उन्हें हटाने की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने इसे लोकतांत्रिक और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन बताया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि महिला सरपंचों के खिलाफ लगातार पूर्वाग्रह और अन्यायपूर्ण व्यवहार देखने को मिल रहा है। कोर्ट ने इस तरह की घटनाओं को "समाज में गहराई तक जमी पितृसत्तात्मक मानसिकता" का परिणाम बताया और इस पर तत्काल सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायालय के समक्ष मामला 27 वर्षीय महिला से संबंधित था, जो स्थानीय चुनाव जीतकर छत्तीसगढ़ के साजबहार ग्राम पंचायत की सरपंच बनी थी। सरपंच बनने के बाद पंचायत को कई विकास कार्य सौंपे गए, जिनमें सड़कों के लिए दस निर्माण परियोजनाएं शामिल थीं। लेकिन कहा गया कि इन निर्माण कार्य को पूरा करने में देरी हुई और इसके लिए महिला सरपंच को दोषी ठहराया गया और जनवरी 2024 में उनको पद से हटा दिया गया। महिला सरपंच ने इस घटनाक्रम को चुनौती दी। उच्च न्यायालय द्वारा कोई राहत देने से इनकार करने के बाद, उसने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
14 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने उसे बहाल करने का आदेश दिया और उसके साथ हुए उत्पीड़न के लिए उसे 1 लाख रुपये का मुआवजा भी दिया। कोर्ट ने पाया कि यह कार्रवाई "झूठे और आधारहीन आरोपों" पर आधारित थी। महिला सरपंच को जानबूझकर निशाना बनाया गया, जबकि विकास कार्यों की जिम्मेदारी पंचायत के अन्य सदस्यों के साथ शेयर की गई थी।
भेदभाव और साजिश के मामलों पर चिंता
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि "महिला सरपंचों को हटाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों और पंचायत सदस्यों का आपसी गठजोड़ चिंताजनक है। यह घटनाएं एक गहरी पूर्वाग्रहपूर्ण और भेदभावपूर्ण प्रणाली की ओर इशारा करती हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि वे महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करने के बजाय उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि "महिला प्रतिनिधियों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करने की ऐसी प्रवृत्ति देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में बाधा डालती है।"
लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन
कोर्ट ने उन अधिकारियों की मानसिकता पर भी सवाल उठाया जो चुने हुए प्रतिनिधियों को "नौकरशाही का अधीनस्थ" मानते हैं। पीठ ने कहा, "चुनाव के माध्यम से मिले जनादेश को नौकरशाही के आदेशों के तहत लाना लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान है।" सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में महिला नेतृत्व को सशक्त बनाने और उनके साथ होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए समाज और प्रशासन से आत्मनिरीक्षण करने की अपील की।