भारत की जिस विदेश नीति का विश्व में बजता है डंका, मनमोहन सिंह ने कैसे रखी थी उसकी नींव
- पूरा देश पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के निधन की खबर से शोकाकुल है। देश में आर्थिक सुधारों से लेकर एक सफल विदेश नीति स्थापित करने में मनमोहन सिंह ने अहम योगदान दिया था। जानते हैं उनके कुछ कदम जिन्होंने बदल दी थी विदेश नीति की दिशा।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह नहीं रहे। आज पूरा विश्व उनकी विरासत को याद कर रहा है। मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री और उसके बाद देश के प्रधानमंत्री के रूप में सबसे सफलतम राजनेताओं में से एक रहे। इतिहास के पन्नों को खंगाले तो भारत की जिस विदेश नीति की आज दुनिया मुरीद है उसकी नींव मनमोहन सिंह ने रखी थी। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति का अधिकांश हिस्सा दो पूर्व प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रखी गई नींव की वजह से एक ठोस आधार पर खड़ा है।
1991 में भारत की अर्थव्यवस्था का उदारीकरण के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को भारत के सबसे अहम आर्थिक सुधारों के वास्तुकार के रूप में श्रेय दिया जाता है। वहीं 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पोखरण में परमाणु परीक्षण के आधार पर भारत ने अपनी नीति और दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव किया। आज भारत को एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में देखा जाता है।
अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने पर जोर
मनमोहन सिंह की सरकार ने भारत की एक दशक से भी ज्यादा पुरानी 'लुक ईस्ट' नीति को आगे बढ़ाने का काम किया। आज इसे 'एक्ट ईस्ट' नीति के नाम से जाना जाता हैं। उनके नेतृत्व में, जापान, रूस, अफ्रीकी देशों के साथ-साथ लैटिन-अमेरिकी देशों के साथ भारत के संबंधों में बड़े सुधार हुए और आज भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह ने अमेरिका, रूस, चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने पर ज्यादा जोर दिया। उस वक्त इन देशों को भारत की विदेश नीति के लिए सबसे अहम माना जाता था।
एनएसजी से हासिल किया क्लीन-चिट
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मुख्य दिलचस्पी वित्त और अर्थशास्त्र के मामलों में थी। हालांकि मनमोहन सिंह हमेशा से ही विदेशी मामलों में गहरी रुचि रखने के लिए जाने जाते थे। 2004 में जब डॉ. मनमोहन सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी से विदेश मंत्री का पदभार संभाला तब लोगों में कौतूहल जागा। पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद से भारत की विदेश नीति ने जो दिशा पकड़ी थी, मनमोहन सिंह उससे काफी हद तक सहमत थे। उन्होंने वाजपेयी सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाना शुरू किया। उन्होंने भारत को एक जिम्मेदार परमाणु हथियार संपन्न देश के रूप में स्थापित करने के महत्व को समझा। उन्होंने एनएसजी से क्लीन-चिट हासिल किया ताकि अमेरिका के साथ भारत के असैन्य परमाणु समझौते को आगे बढ़ाया जा सके। एनएसजी से मंजूरी प्राप्त करना भारत के इतिहास में एक अहम क्षण था।
एस जयशंकर के साथ किया काम
2004 में मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। तब एस जयशंकर विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (अमेरिका) थे। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में जयशंकर ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से मंजूरी दिलाने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने ही अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते की रूपरेखा भी तैयार की। सफलतापूर्वक समझौता करने में मनमोहन सिंह और एस जयशंकर की भूमिका के लिए उन्हें भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के वास्तुकारों के रूप में जाना जाता है। एस जयशंकर मोदी सरकार में विदेश सचिव और फिर विदेश मंत्री बने। आज अमेरिका के अलावा फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, जैसे देशों के साथ भारत ने सिविल परमाणु समझौता किया है।