'बोलने से पहले सोच लो, यह बर्दाश्त नहीं', मोहम्मद यूनुस के सलाहकार को भारत की फटकार
- प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, ‘हमने इस मुद्दे पर बांग्लादेश के समक्ष अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है। हमें पता चला है कि जिस पोस्ट का जिक्र किया जा रहा है, उसे कथित तौर पर हटा दिया गया है।'
भारत ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सहयोगी महफूज आलम की विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर कड़ा विरोध दर्ज कराया। नई दिल्ली की ओर से कहा गया कि ऐसे बयान बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। इसलिए कुछ भी बोलने से पहले सोच लिया करो। महफूज आलम ने सोशल मीडिया मंच फेसबुक पर एक पोस्ट में कहा था कि भारत को उस विद्रोह को मान्यता देनी चाहिए, जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा था। उन्होंने इस पोस्ट में हसीना सरकार के पतन को लेकर भारत पर टिप्पणी की। पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा को बांग्लादेश का हिस्सा भी बताया था। हालांकि, बाद में इसे हटा दिया गया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, ‘हमने इस मुद्दे पर बांग्लादेश के समक्ष अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है। हमें पता चला है कि जिस पोस्ट का जिक्र किया जा रहा है, उसे कथित तौर पर हटा दिया गया है। हम सभी संबंधित पक्षों को याद दिलाना चाहेंगे कि वे अपनी सार्वजनिक टिप्पणियों के प्रति सचेत रहें।’ जायसवाल ने कहा कि भारत ने बांग्लादेश के लोगों और अंतरिम सरकार के साथ संबंधों को बढ़ावा देने में बार-बार रुचि दिखाई है। इस तरह की टिप्पणियां सार्वजनिक तौर पर बात रखते वक्त जिम्मेदारी की जरूरत को सामने रखती हैं।
यूनुस के सलाहकार ने भारत को लेकर क्या कहा
महफूज आलम ने फेसबुक पर अपने पोस्ट में दावा किया था कि उनका सपना समग्र बंगाल को लेकर है। उन्होंने कहा कि भारत, पाकिस्तान की राजनीति के चलते बंगाल खंडित हुआ। उन्होंने पोस्ट में लिखा कि विजय तो मिल गई। मगर, पूर्ण मुक्ति अभी दूर है। आलम ने 16 दिसंबर को यानी विजय दिवस पर पोस्ट में लिखा,'बांग्लादेश और पूर्वी भारत के लोगों की संस्कृति एक जैसी है। पूर्वी पाकिस्तान ऊच्च जातियों और हिंदू कट्टरपंथियों के बंगाल विरोधी रवैये के चलते बना। हमें 1975 और 2024 जैसा ही कुछ करना होगा जिससे भारत से सच्ची आजादी मिल सके।'
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में मंत्री का दर्जा रखने वाले महफूज आलम ने फेसबुक पोस्ट में कहा था, 'भारत सरकार ने विद्रोह को कुछ इस तरह से चित्रित करने की कोशिश की जैसे यह सत्ता पर कुछ अतिवादियों, हिंदू विरोधी और इस्लामी कट्टरपंथियों का कब्जा हो गया हो।’ आलम ने भारत से 75 के बाद की रणनीति बदलने और बांग्लादेश की नई वास्तविकताओं को समझने को भी कहा। आलम बांग्लादेश के एंटी डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट्स मूवमेंट के एक प्रमुख नेता है। उसने लिखा, ‘यह मान्यता सबसे पहली चीज है जिससे शुरुआत की जानी चाहिए। जुलाई के विद्रोह को दरकिनार करके नए बांग्लादेश की नींव रखना दोनों देशों के रिश्तों के लिए हानिकारक होगा। बंगाल के इस हिस्से में रहने वाले भारत-प्रेमी या भारतीय सहयोगी सोच रहे थे कि चीजें शांत हो जाएंगी। जुलाई के विद्रोह और फासीवादियों के अत्याचारों से उन्हें कुछ भी नुकसान नहीं होगा।’
(एजेंसी इनपुट के साथ)