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Hindi Newsदेश न्यूज़high court can quash FIR even after Charge-Sheet is Filed : supreme court decision

हाईकोर्ट चार्जशीट दायर होने के बाद भी FIR रद्द कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को धारा 482 सीआरपीसी के तहत चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी एफआईआर रद्द करने का अधिकार है, यदि न्यायालय को लगता है कि कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

Praveen Sharma लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 1 Sep 2024 10:00 AM
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क्या किसी मुकदमे में चार्जशीट दायर होने के बाद उसकी एफआईआर दर्ज की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने ताजा फैसले में दोहराया कि यदि हाईकोर्ट को लगता है कि कार्यवाही जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा तो हाईकोर्ट को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत चार्जशीट दायर होने के बाद भी एफआईआर को रद्द करने का अधिकार है। 

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्ज्वल भुयन की बेंच ने 28 अगस्त को आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता के एक मामले में शिकायतकर्ता एक महिला के सास-ससुर और पति के खिलाफ दर्ज एफआईआर और चार्जशीट को खारिज कर दिया।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने गुजरात हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर को खारिज करने से इनकार करने के खिलाफ शिकायतकर्ता के सास-ससुर और पति द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। शिकायतकर्ता महिला ने 2002 में अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। उसने और उसके पति ने 2004 में आपसी सहमति से तलाक ले लिया था।

गुजरात हाईकोर्ट ने 14 सितंबर 2011 को महिला के पति और सास-ससुर द्वारा दायर केस रद्द करने की अर्जी खारिज कर दी थी, क्योंकि जांच अधिकारी ने केस में चार्जशीट दायर कर दी थी और अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया था। हाईकोर्ट के उस फैसले अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर वर्तमान अपील दायर की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 30 मई 2023 को नोटिस दिए जाने के बावजूद शिकायतकर्ता महिला अपील का विरोध करने के लिए अदालत में उपस्थित नहीं हुई, जैसा कि 2 दिसंबर 2023 की रिपोर्ट में जिक्र किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता और उसके पति ने 2004 में अपने वैवाहिक संबंध तोड़ लिए थे और दोनों अपने-अपने जीवन में अच्छी तरह से व्यवस्थित थे। कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता महिला ने अपने वैवाहिक जीवन को बाधित नहीं करना चाहती थी और उसने अदालत की वर्तमान कार्यवाही में भाग नहीं लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य प्रकृति के थे। इसलिए, कोर्ट ने सवाल किया कि क्या एफआईआर और चार्जशीट को केवल अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला दिखने के कारण सुनवाई के लिए आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने अभिषेक बनाम मध्य प्रदेश राज्य सहित कई मिसालों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि हाईकोर्ट के पास चार्जशीट दायर होने के बाद भी सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर को रद्द करने की शक्ति है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एफआईआर, चार्जशीट और इससे उत्पन्न होने वाली अन्य सभी कार्यवाहियों को रद्द करके पक्षों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को खत्म कर दिया। 

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