भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 10 कांग्रेस बागियों को नामाकंन वापस लेने के लिए किया राजी, टिकट ना मिलने से थे नाराज
- पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने आज कांग्रेस के कम से कम 10 बागियों को नामांकन वापस लेने पर राजी कर लिया है। एक दशक बाद सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही कांग्रेस को अभी भी कई कद्दावर नेताओं की बगावत का सामना करना पड़ रहा है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में अब एक महीने से भी कम का समय बचा है। ऐसे में सभी दल एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। जहां बीजेपी यहां हैट्रिक लगाने का लक्ष्य साधने की कोशिश में है वहीं कांग्रेस एक दशक के बाद सत्ता में वापसी करने की कोशिश कर रही है। इस बीच कांग्रेस पार्टी के कई बागियों को मनाने में जुटी है। खबरों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने कांग्रेस के कम से कम 10 बागियों को नामांकन वापस लेने पर राजी कर लिया है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, "हमने सुनिश्चित किया है कि कई बागियों ने अपने नामांकन वापस ले लिए हैं। सुधीर कुमार (पटौदी), शमसुद्दीन (सोहना), प्रदीप (सोहना) और राजिंदर (नीलोखेड़ी) ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है।"
रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने अंबाला सिटी से नामांकन दाखिल करने वाले बागी नेताओं जयबीर मल्लौर और हिम्मत सिंह के घर जाकर उन्हें नामांकन वापस लेने पर राजी किया। वे इस बात से नाराज थे कि हुड्डा खेमे से चार बार के विधायक निर्मल सिंह को टिकट मिल गया। वहीं छह बार के विधायक और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री संपत सिंह ने आधिकारिक उम्मीदवार अनिल मान के खिलाफ नलवा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया था। हुड्डा ने उन्हें भी अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए भी मना लिया है। एक और नाराज नेता पूर्व मुख्य संसदीय सचिव राम किशन फौजी ने बवानी खेड़ा से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। वे पहले दो लगातार चुनाव हारने के बाद इस बार टिकट की रेस में प्रदीप नरवाल से हार गए। वहीं हुड्डा खेमे से प्रेम सिंह मलिक, सुमन शर्मा और नरेश ने हुड्डा खेमे से ही आधिकारिक उम्मीदवार राहुल मक्कड़ के पक्ष में हांसी से अपने नामांकन वापस ले लिए।
कई नेताओं ने आखिरी वक्त तक किया था इंतजार
इस बीच यह दिलचस्प यह है कि निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा ने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली है। वहीं हुड्डा खेमे से ताल्लुक रखने वाली आदर्श पाल सिंह को शैलजा खेमे के परविंदर पाल पारी से हार का सामना करना पड़ा। वह एक मजबूत उम्मीदवार थीं लेकिन 2019 के चुनाव में भी उन्हें टिकट नहीं मिला था। हालांकि वह 44,406 वोटों के साथ निर्दलीय के तौर पर दूसरे स्थान पर रही थी। आदर्श पाल सिंह 2019 के चुनाव में जगाधरी में बसपा के टिकट पर 47,988 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। कांग्रेस के अकरम खान दूसरे स्थान पर रहे, लेकिन कैबिनेट मंत्री कंवर पाल गुज्जर से 16,000 से अधिक वोटों के अंतर से हार गए। भाजपा विरोधी वोट दोनों के बीच बंट गया। कांग्रेस में शामिल होने के बाद आदर्श पाल सिंह ने टिकट के लिए हुड्डा खेमे पर भरोसा किया, लेकिन टिकट फिर शैलजा खेमे के अकरम खान को मिल गया। नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन वह आम आदमी पार्टी (आप) में चले गए और टिकट हासिल कर लिया। हुड्डा खेमे पर भरोसा करते हुए बृजपाल सढौरा (एससी) से टिकट की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन टिकट मौजूदा विधायक रेणु बाला को मिलने के बाद, जो शैलजा खेमे से हैं, वे इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी)-बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) गठबंधन में चले गए।
कई कांग्रेसी अब भी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुई पूर्व विधायक रोहिता रेवड़ी पानीपत से निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरी हैं। कांग्रेस ने वरिंदर कुमार शाह को मैदान में उतारा है। रेवड़ी और शाह दोनों ने 2014 में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिसमें रेवड़ी ने 53,721 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। हालांकि बीजेपी ने 2019 के चुनाव के लिए उन्हें हटा दिया और प्रमोद विज को मैदान में उतारा। पूर्व मुख्य संसदीय सचिव शारदा राठौर की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। उन्होंने बल्लभगढ़ (2005 और 2009) से कांग्रेस के टिकट पर दो बार जीत हासिल की लेकिन 2014 में उन्हें टिकट नहीं मिला। वह 2019 में भाजपा में चली गईं लेकिन वहां भी उन्हें टिकट नहीं मिला। 2022 में वह फिर से कांग्रेस में शामिल हो गईं और पराग शर्मा से टिकट छिनने के बाद निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। तिगांव से निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक ललित नागर ने भी पीछे हटने से इनकार कर दिया है।