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मनमोहन सिंह के LPG मॉडल की कहानी, सफल हुए तो श्रेय दोनों को; फेल हुए तो आपकी नाकामी

Ex PM Manmohan Singh Death: मनमोहन सिंह 1991 से 1996 तक देश के वित्त मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG- Liberalization, Privatization और Globalization) की नींव डाली थी।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 27 Dec 2024 12:37 AM
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Ex PM Manmohan Singh Death: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो चुका है। उन्होंने 2004 से 2014 तक कुल 10 वर्षों तक देश की बागडोर संभाली थी। इससे पहले वह नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री बनाए गए थे। मनमोहन सिंह 21 जून 1991 को वित्त मंत्री बने थे। वह 1991 से 1996 तक देश के वित्त मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG- Liberalization, Privatization और Globalization) की नींव डाली थी। इसे भारतीय अर्थव्यवस्था में राव-मनमोहन मॉडल कहा जाता है। उस वक्त देश की अर्थव्यवस्था नाजुक दौर में थी और भारत के पास सिर्फ 5.80 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था।

कहा जाता है कि उस वक्त देश का सोना गिरवीं रखने की नौबत आ चुकी थी लेकिन राव और मनमोहन ने मिलकर देश की आर्थिक दशा और दिशा बदल दी थी। उनके LPG मॉडल के तहत ही विदेशी कंपनियां भारत में निवेश करने को तैयार हुई थी और देश में कई प्राइवेट कंपनियों ने उड़ान भरी थी। बताया जाता है कि नरसिम्हा राव ने अपने एक करीबी और आला अफसर पीसी अलेक्जेंडर के कहने पर मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया था। इससे पहले वह रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके थे।

मनमोहन सिंह ने जब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से अपने LPG मॉडल का जिक्र किया था, तब राव ने उनसे कहा था कि अगर आप इस मॉडल के जरिए अपने उद्देश्यों में सफल हुए तो इसका श्रेय हम दोनों को जाएगा लेकिन अगर आप असफल हुए तो नाकामी की जिम्मेदारी सिर्फ आपकी होगी। मनमोहन सिंह अर्थशास्त्र के विद्वान थे और उन्हें अपने उदारीकरण के इकॉनमिक मॉडल पर पूरा भरोसा था। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था की राह 1991 के बाद बदल गई थी। उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी और ऑक्सफोर्ड से डी.फिल किया था।

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मृदुभाषी मनमोहन सिंह हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी के भी जानकार थे। उनका जन्म 26 सितंबर, 1932 को अविभाजित भारत में पंजाब के गाह में हुआ था। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी और दिल्ली स्कील ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे थे। 1971 में उन्हें वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार भी नियुक्त किया गया था। इसके बाद 1972 में वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार बनाए गए थे। वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे थे।

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