CJI ने अपने रिटायरमेंट के दिन से रखी सुनवाई की तारीख, हिन्दू-मुस्लिम से जुड़ा क्या है ये मामला?
देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर हो रहे हैं। उस दिन उनका अंतिम कार्यदिवस होगा। उन्होंने इस मामले को उसी दिन से शुरू होने वाले हफ्ते में सूचाबद्ध करने का निर्देश दिया है। उनके बाद जस्टिस गवई अगले CJI होंगे।

देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने आज (बुधवार, 30 अप्रैल को) भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने देश भर में धर्म-परिवर्तन विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने की मांग की। इस पर सीजेआई खन्ना ने कहा कि निश्चित तौर पर इस पर सुनवाई करेंगे लेकिन उन्होंने इसके लिए एक ऐसी तारीख दे दी, जो चर्चा का विषय बन गई है।
दरअसल, जिस पीठ के सामने इस याचिका पर सुनवाई की मांग की गई, वह सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ थी। पीठ ने मामले की संक्षिप्त सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। इसी दौरान सीजेआई खन्ना ने कहा, "हमें इस पर विस्तार से सुनवाई करने की जरूरत है। इसे 13 मई, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए।" बता दें कि जस्टिस खन्ना 13 मई को ही रिटायर हो रहे हैं। यानी वह तारीख उनके कार्यकाल का आखिरी दिन होगा। 14 मई को जस्टिस बीआर गवई देश के नए मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे।
हर दिन 10 हजार हिंदुओं का धर्मांतरण हो रहा
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब सीजेआई सुनवाई की तारीख तय कर रहे थे, तभी अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा, "माई लॉर्ड! धर्मांतरण एक युद्ध छेड़ने जैसा है, हर दिन 10 हजार हिंदुओं का धर्मांतरण हो रहा है।" दरअसल, उपाध्याय ने अवैध धर्मांतरण के खिलाफ जनहित याचिका (PIL) दायर की है और इस पर त्वरित सुनवाई की मांग कर रहे थे। उन्होंने चुनौती दिए जा रहे धर्मांतरण विरोधी कानूनों का बचाव करते हुए आरोप लगाया कि हर दिन हजारों हिंदुओं का अवैध रूप से दूसरे धर्मों में धर्मांतरण किया जा रहा है।
दूसरे पक्ष को सुने बिना सुनवाई नहीं
हालांकि, कोर्ट आज अन्य याचिकाकर्ताओं की सुनवाई किए बिना उनकी दलीलें सुनने को तैयार नहीं हुआ। पीठ ने कहा, “आप बहस क्यों कर रहे हैं? क्या हमने दूसरे पक्ष को सुना है। हमें पहले उन्हें सुनना होगा।” इन कानूनों का उद्देश्य जबरन या गैरकानूनी तरीके से होने वाले धर्म परिवर्तन से निपटना है लेकिन आलोचकों का आरोप है कि इन कानूनों का दुरुपयोग एक खास धार्मिक समुदाय को टारगेट करने के लिए किया जा रहा है और ये लोगों की अपना धर्म चुनने की आजादी को प्रभावित करते हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के सामने कई याचिकाएं दायर कर विभिन्न धर्म-परिवर्तन विरोधी कानूनों को चुनौती दी गई है। इनमें हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2019, मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अध्यादेश, 2020, उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अध्यादेश, 2020 और उत्तराखंड का भी इसी तरह का एक कानून शामिल हैं। 2021 में, न्यायालय ने जमीयत उलमा-ए-हिंद को भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी थी, क्योंकि उसने आरोप लगाया था कि इस तरह के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लागू करके देश भर में बड़ी संख्या में मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है।