यहां राजनीतिक भाषण मत दीजिए, कॉलेजियम पर वकील ने क्या कह दिया कि भड़क गए CJI खन्ना
CJI जस्टिस संजीव खन्ना ने नेदुम्परा को तब कड़ी फटकार लगाई, जब उन्होंने पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके सामने भी 3 बार ऐसी मांग की थी लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस पर सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक भाषण मत दीजिए।

देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना आज उस समय भरी अदालत में एक वरिष्ठ वकील पर भड़क गए, जब उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली को चुनौती देने वाली याचिका को सूचीबद्ध करने की मांग की। दरअसल, वकील मैथ्यूज नेदुम्परा CJI खन्ना के सामने 2022 में दायर एक रिट याचिका का उल्लेख कर रहे थे, जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को पुनर्जीवित करने की मांग की गई थी।
इस दौरान नेदुम्परा ने सीजेआई से कहा, "हम देख रहे हैं कि क्या हो रहा है। कृपया देखें कि क्या हो रहा है। सीजेआई चंद्रचूड़ से इसे तीन बार सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया गया था लेकिन फिर भी.. इस देश के लोगों को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की जरूरत है। उपराष्ट्रपति ने भी यह कहा है, और यही देश की जरूरत है। हम इसकी मांग करते हैं।"
CJI ने वकील को लगाई फटकार
इस पर सीजेआई संजीव खन्ना भड़क गए। उन्होंने अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा को फटकार लगाई और उनसे अदालत में राजनीतिक भाषण देने से परहेज करने को कहा। लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, CJI खन्ना ने कहा, "कृपया मेरे मुंह में शब्द न डालें और यहां अदालत में कोई राजनीतिक भाषण न दें।"
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने यह कहते हुए यही याचिका स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि यह मुद्दा 2015 के एनजेएसी फैसले में पहले ही सुलझा चुका है। इसलिए फिर से इसी मुद्दे को उठाने वाली रिट याचिका विचारणीय नहीं है। रजिस्ट्री ने कहा कि याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका के माध्यम से एनजेएसी फैसले की समीक्षा की मांग कर रहा था।
क्या है एनजेएसी अधिनियम
बता दें कि संसद द्वारा 2014 में पारित और अधिकांश राज्यों द्वारा अनुमोदित एनजेएसी अधिनियम में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए न्यायपालिका, कार्यपालिका और प्रतिष्ठित व्यक्तियों के प्रतिनिधियों वाला एक आयोग के गठन का प्रस्ताव था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। इस फैसले में कहा गया कि यह अधिनियम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करता है। तब से, न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार को लेकर समय-समय पर बहस तेज होती रही है। इससे अक्सर राजनीतिक और कानूनी तनाव उभर जाता है।