उन्हें ढोल ताशे बजाने दें, पुणे की जान है; गणेश विसर्जन से जुड़े किस मामले पर बोली CJI चंद्रचूड़ की बेंच?
- सीजेआई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि नोटिस जारी किया जाए...निर्देश संख्या 4 (ढोल-ताशा समूहों में व्यक्तियों की संख्या पर) के निष्पादन पर रोक रहेगी। उन्हें 'ढोल ताशे' बजाने दें। ये पुणे की जान है।
CJI Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट ने पुणे में भगवान गणेश की मूर्तियों के विसर्जन के समारोहों में शामिल होने वाले 'ढोल-ताशा' समूहों में लोगों की संख्या 30 तक सीमित करने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश पर गुरुवार को रोक लगा दी। इस दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ की बेंच ने महाराष्ट्र सरकार, पुणे प्रशासन और अन्य को नोटिस जारी करते हुए कहा कि उन्हें ढोल ताशे बजाने दें। यह पुणे की जान है।
इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ पुणे के एक 'ढोल-ताशा' समूह की याचिका पर अपराह्न दो बजे सुनवाई करने का निर्णय लेते हुए राज्य के अधिकारियों को इस संबंध में नोटिस भी जारी किया।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान वकील अमित पई ने कहा कि 'ढोल-ताशा' का पुणे में सौ वर्षों से अधिक समय से "गहरा सांस्कृतिक महत्व" रहा है और इसकी शुरुआत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी। उन्होंने कहा कि एनजीटी के 30 अगस्त के निर्देश से ऐसे समूह प्रभावित होंगे।
सीजेआई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा, "नोटिस जारी किया जाए...निर्देश संख्या 4 (ढोल-ताशा समूहों में व्यक्तियों की संख्या पर) के निष्पादन पर रोक रहेगी। उन्हें 'ढोल ताशे' बजाने दें। ये पुणे की जान है।"
एनजीटी ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से गणपति विसर्जन में शामिल ढोल-ताशा समूह में लोगों की संख्या 30 तक सीमित कर दी थी। 'गणेश चतुर्थी' का त्योहार सात सितंबर से शुरू हुआ और यह अनंत चतुदर्शी तक मनाया जाता है। महाराष्ट्र के कुछ भागों में 'ढोल-ताशा' समूह पारंपरिक त्योहारों का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।
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