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तिब्बत में बांध, अक्साई चिन में बनाईं दो नए काउंटी; चीन की हरकतों पर भारत का कड़ा विरोध

  • सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक आधिकारिक बयान के हवाले से बताया कि चीन सरकार ने यारलुंग जांग्बो नदी (ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम) के निचले इलाकों में एक जलविद्युत परियोजना के निर्माण को मंजूरी दे दी है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 3 Jan 2025 08:57 PM
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भारत ने चीन की ताजा हरकतों पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। चीन ने हाल ही में भारतीय सीमा के पास तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग जांग्बो) पर दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण को मंजूरी दी थी। इसके अलावा, होटन प्रांत (अक्साई चिन) में दो नई काउंटी की घोषणा की है। अब भारत ने इसका कड़ा विरोध दर्ज कराया है। विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को जानकारी दी कि नई दिल्ली ने इस परियोजना को लेकर बीजिंग से अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं। चीन का कहना है कि तिब्बत में जलविद्युत परियोजनाएं पर्यावरण या नदी के निचले प्रवाह वाले देशों की जल आपूर्ति पर बड़ा प्रभाव नहीं डालेंगी। हालांकि, भारत और बांग्लादेश दोनों ने इस परियोजना को लेकर अपनी चिंताओं का इजहार किया है। यारलुंग जांग्बो नदी तिब्बत से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों में ब्रह्मपुत्र के नाम से बहती होती है और अंततः बांग्लादेश में प्रवेश करती है। चीन के घोषणा करने के बाद, भारत ने शुक्रवार को कहा कि वह निगरानी जारी रखेगा और अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक उपाय करेगा।

अपने हितों की रक्षा करेंगे- भारत

प्रस्तावित बांध के प्रति अपनी पहली प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नयी दिल्ली ने बीजिंग से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि ब्रह्मपुत्र के ऊपरी इलाकों में गतिविधियों से नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में स्थित देशों को नुकसान नहीं पहुंचे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, ‘‘हम निगरानी जारी रखेंगे और अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे।’’ यह आशंका जताई जा रही है कि बांध का निर्माण होने से अरुणाचल प्रदेश और असम को नुकसान पहुंचेगा। जायसवाल ने कहा, ‘‘नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में जल का उपयोग करने का अधिकार रखने वाले देश के रूप में, हमने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक माध्यम से, चीनी पक्ष के समक्ष उसके क्षेत्र में नदियों पर बड़ी परियोजनाओं के बारे में अपने विचार और चिंताएं लगातार व्यक्त की हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हालिया रिपोर्ट के बाद, इन बातों को दोहराया गया है। साथ ही, नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में स्थित देशों के साथ पारदर्शिता बरतने और परामर्श की जरूरत बताई गई है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘चीनी पक्ष से आग्रह किया गया है कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में स्थित देशों के हितों को नदी के प्रवाह के ऊपरी क्षेत्र में गतिविधियों से नुकसान नहीं पहुचे।’’

बांग्लादेश ने भी जताई चिंता

भारत के अलावा, बांग्लादेश ने भी इस परियोजना को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं, क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रमुख जल स्रोतों में से एक है। इस बांध परियोजना को दुनिया की सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना बताया जा रहा है जिसकी लागत 137 अरब अमेरिकी डॉलर है। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक आधिकारिक बयान के हवाले से बताया कि चीन सरकार ने यारलुंग जांग्बो नदी (ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम) के निचले इलाकों में एक जलविद्युत परियोजना के निर्माण को मंजूरी दे दी है।

यह बांध हिमालय की एक विशाल घाटी में बनाया जाएगा, जहां ब्रह्मपुत्र नदी एक विशाल ‘यू-टर्न’ लेकर अरुणाचल प्रदेश और फिर बांग्लादेश में बहती है। हांगकांग के ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने बताया कि बांध में कुल निवेश 137 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकता है। इस बांध के आगे चीन का थ्री गॉर्जेस बांध सहित धरती पर कोई भी अन्य एकल बुनियादी ढांचा परियोजना छोटी पड़ जाएगी।

भारत में इस बात को लेकर चिंता उत्पन्न हो गई है कि इस बांध से चीन को जल प्रवाह को नियंत्रित करने का अधिकार तो मिलेगा ही, साथ ही इसके आकार और पैमाने को देखते हुए यह चीन को शत्रुता के समय सीमावर्ती क्षेत्रों में भारी मात्रा में पानी छोड़ने में भी सक्षम बना देगा। भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा है।

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नए काउंटी बनाने पर चीन के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया

भारत ने शुक्रवार को कहा कि उसने होटन प्रांत (अक्साई चिन) में दो नई काउंटी की घोषणा पर चीन के समक्ष ‘‘कड़ा विरोध’’ दर्ज कराया है, क्योंकि इनके कुछ हिस्से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के दायरे में आते हैं। भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि नए काउंटी बनाने से न तो क्षेत्र पर भारत की संप्रभुता के संबंध में दीर्घकालिक और सतत स्थिति पर कोई असर पड़ेगा और न ही इससे चीन के ‘‘अवैध और जबरन कब्जे’’ को वैधता मिलेगी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि इन तथाकथित काउंटी के कुछ हिस्से भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में आते हैं और इस चीनी कार्रवाई का, संप्रभुता के संबंध में नयी दिल्ली के स्थायी रुख पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

भारत-चीन के विशेष प्रतिनिधियों द्वारा सीमा वार्ता पुनः शुरू करने के कुछ दिनों बाद चीन ने दोनों काउंटी बनाने की घोषणा की है। यह वार्ता लगभग पांच वर्षों से ठप थी। जायसवाल ने कहा, ‘‘हमने चीन के होटन प्रांत में दो नए काउंटी बनाने से संबंधित घोषणा पर गौर किया है। इन तथाकथित काउंटी के अधिकार क्षेत्र के कुछ हिस्से भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में आते हैं।’’ प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हमने वहां भारतीय क्षेत्र पर अवैध चीनी कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘नए काउंटी बनाने से न तो क्षेत्र पर भारत की संप्रभुता के संबंध में दीर्घकालिक और सतत स्थिति पर कोई असर पड़ेगा और न ही इससे चीन के अवैध और जबरन कब्जे को वैधता मिलेगी।’’ जायसवाल ने कहा, ‘‘हमने राजनयिक माध्यमों से चीनी पक्ष के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया है।’’

संबंधों में यह ताजा तनाव ऐसे समय पर उत्पन्न हुआ है जब भारत और चीन ने साढ़े चार साल से अधिक समय से जारी सीमा गतिरोध का समाधान किया है और अविश्वास को कम करने के लिए कदम उठाने की घोषणा की है। पिछले साल 21 अक्टूबर को बनी सहमति के बाद दोनों पक्षों ने डेमचोक और देपसांग के टकराव वाले स्थानों पर सैनिकों की वापसी पूरी कर ली है।

(इनपुट एजेंसी)

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