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मायके से पैसे न लाने पर पति का साथ रहने से इनकार? HC ने नहीं माना उत्पीड़न; पूरा मामला समझिए

  • इस मामले में पत्नी ने अपने पति और ससुराल वालों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने उससे 5 लाख रुपये मायके से लाने की मांग की ताकि पति को स्थायी सरकारी नौकरी मिल सके।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, मुंबईThu, 16 Jan 2025 02:11 PM
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कथित दहेज उत्पीड़न के एक मामले में बेहद अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि 'पत्नी से यह कहना कि वह अपने पति के साथ तब तक नहीं रह सकती जब तक कि वह अपने माता-पिता से पैसे लेकर न आए' यह उत्पीड़न नहीं है। न्यायमूर्ति विभा कणकनवाड़ी और रोहित जोशी की खंडपीठ ने कहा कि 'अगर किसी महिला को उसके पति या ससुरालवालों द्वारा यह कहा जाए कि वह अपने मायके से मांगी गई रकम लाने में असमर्थ है तो उसे पति के साथ सहवास का अधिकार नहीं मिलेगा, तो यह मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न के दायरे में नहीं आता।'

इस मामले में पत्नी ने अपने पति और ससुराल वालों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने उससे 5 लाख रुपये मायके से लाने की मांग की ताकि पति को स्थायी सरकारी नौकरी मिल सके। महिला ने यह भी कहा कि उसके माता-पिता गरीब हैं और इतनी राशि देने में असमर्थ हैं। अपने फैसले में पीठ ने कहा, "पति और ससुराल वालों ने कहा कि अगर वह पैसे नहीं ला सकती तो उसे साथ रहने के लिए नहीं आना चाहिए और इस आधार पर उसे बार-बार मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। लेकिन 'शारीरिक और मानसिक क्रूरता' के बराबर की हरकतें नहीं बताई गईं। यह कहना कि जब तक वह पैसे नहीं लाती तब तक उसे साथ रहने के लिए नहीं आना चाहिए, यह बिना किसी कार्रवाई के मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न नहीं माना जाएगा।"

अपर्याप्त साक्ष्यों के कारण आरोप खारिज

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायाधीशों ने अपने 10 जनवरी को दिए गए आदेश में कहा, "महिला ने अपनी FIR में मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का आरोप लगाया है, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि इन घटनाओं के दौरान कौन-कौन से विशेष कृत्य किए गए। इसके अलावा, मांगों के समय और उनकी अवधि को लेकर भी कोई सटीक जानकारी प्रस्तुत नहीं की गई।" पीठ ने पाया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप अस्पष्ट थे। FIR में दिए गए बयानों में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि उसे किस प्रकार की क्रूरता या दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा।

पुलिस जांच पर कड़ी टिप्पणी

खंडपीठ ने पुलिस जांच की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों की जांच में पुलिस संवेदनशीलता और उचित प्रक्रिया नहीं अपनाती। पीठ ने कहा, "जांच अधिकारी केवल शिकायतकर्ता महिला के रिश्तेदारों के बयान दर्ज करते हैं और पड़ोसियों या अन्य संबंधित व्यक्तियों से पूछताछ नहीं करते।" न्यायाधीशों ने कहा कि केवल शिकायतकर्ता के पक्ष के गवाहों के बयानों पर निर्भर रहना उचित नहीं है। कोर्ट ने कहा, "यह आवश्यक है कि जांच अधिकारी अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए केवल उन्हीं आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करें, जिनके खिलाफ मजबूत सबूत हों।"

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FIR में नामित कई लोगों को राहत

मामले में पति, ससुराल के सदस्य, भाई, विवाहित बहन, बहनोई और एक चचेरे भाई को आरोपित किया गया था। न्यायालय ने सभी के खिलाफ दायर FIR को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामले में आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे।

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