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सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, 'लड़कियों को जबरन' रखने का मामला खारिज

  • चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि दोनों बेटियां, गीता और लता, बालिग हैं और अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 18 Oct 2024 02:36 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जग्गी वासुदेव (सद्गुरु) के ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत दी। शीर्ष अदालत ने फाउंडेशन के खिलाफ चल रहे उस मामले को खारिज कर दिया, जिसमें एक पिता ने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को 'ब्रेनवॉश' करके तमिलनाडु के कोयंबटूर में स्थित सद्गुरु के आश्रम में शामिल कराया गया और परिवार से संपर्क करने से वंचित किया गया। इस मामले में याचिका दाखिल कर यह दावा किया गया था कि उनकी बेटियों को गैरकानूनी रूप से आश्रम में बंदी बनाकर रखा गया है। लेकिन, चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि दोनों बेटियां, गीता और लता, बालिग हैं और अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं।

हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश सिर्फ इस विशेष मामले के लिए है। साथ ही, यह भी कहा कि हाल ही में आश्रम के एक डॉक्टर पर बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का मामला दर्ज किया गया है, जिस पर ध्यान देना आवश्यक है। 'ब्रेनवॉश' के आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले में अनुचित तरीके से हस्तक्षेप किया और पुलिस को आश्रम की जांच करने का आदेश दिया था, जो अदालत के अनुसार, अनुचित था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दोनों लड़कियों को आश्रम में रखा गया तब वे नाबालिग नहीं थीं। वे 27 और 24 वर्ष की थीं। इसलिए हाई कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं थी। बेटियों की अदालत में उपस्थिति से पहले ही याचिका का उद्देश्य पूरा हो गया था। चीफ जस्टिस ने मौखिक टिप्पणियों में कहा कि इस तरह के मामले लोगों और संस्थाओं को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल नहीं किए जा सकते।

इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट में चल रहे इस मामले को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था और पुलिस जांच को रोक दिया था, जो पिता के आरोपों के बाद शुरू हुई थी। पिता ने आरोप लगाया था कि सद्गुरु जग्गी वासुदेव के आश्रम में उनकी बेटियों को गलत तरीके से रखा गया है। लेकिन बेटियों ने खुद कोर्ट के सामने पेश होकर कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और उनके पिता पिछले आठ सालों से उन्हें परेशान कर रहे हैं। एक बेटी ने यह भी कहा कि उनकी मां ने भी उन्हें परेशान किया था।

ईशा फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि तमिलनाडु पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में भी यह स्पष्ट था कि दोनों महिलाएं स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिता से कहा कि वे अपनी बेटियों के जीवन पर नियंत्रण नहीं रख सकते और उन्हें सलाह दी कि वे उनके विश्वास को जीतें, न कि अदालतों में याचिकाएं दायर करें।

पुलिस द्वारा दायर एक अन्य याचिका में यह भी कहा गया था कि फाउंडेशन से जुड़े कई लोग लापता हुए हैं। इसके अलावा, ईशा आउटरीच प्रोग्राम में कार्यरत एक डॉक्टर पर बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया है। दिल्ली की एक महिला ने भी 2021 में योगा कोर्स के दौरान अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी, जिसका जिक्र इस याचिका में किया गया था।

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