क्या है वो 17 साल पुराना कैश कांड, एक जैसा नाम होने पर फंसे थे पूर्व HC जज; 29 को फैसला
- 17 साल पुराने कैशकांड का यह मामला इसलिए भी रोचक है, क्योंकि दो जजों का नाम एक जैसा होने पर कैश किसी और जज के घर पहुंच गया था, जिसके बाद घटना का खुलासा हुआ।

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर भारी कैश बरामद होने से देश भर में मचे बवाल के बीच पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश निर्मल यादव के खिलाफ चल रहे 17 साल पुराने बहुचर्चित भ्रष्टाचार मामले में गवाहों की गवाही पूरी होने के बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। 29 मार्च को इस हाई-प्रोफाइल केस का फैसला आएगा। यह मामला इसलिए भी बहुत रोचक है, क्योंकि दो जजों का नाम एक जैसा होने पर कैश किसी और जज के घर पहुंच गया था, जिसके बाद घटना का खुलासा हुआ।
यह मामला 2008 में सामने आया था, जब 15 लाख रुपए की नकदी गलती से हाईकोर्ट की एक अन्य जज निर्मलजीत कौर के चंडीगढ़ स्थित घर पहुंच गई। जांच में पता चला कि यह रकम असल में जस्टिस निर्मल यादव को दी जानी थी। आरोप है कि यह रिश्वत एक प्रॉपर्टी डील से जुड़े फैसले को प्रभावित करने के लिए दी गई थी। इस केस में हरियाणा के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल, प्रॉपर्टी डीलर राजीव गुप्ता और दिल्ली के होटल कारोबारी रवींदर सिंह भसीन का भी नाम आया। संजीव बंसल की मौत के बाद 2017 में उनके खिलाफ केस बंद कर दिया गया था।
दोनों जजों का एक जैसा नाम होने से हुई गलतफहमी
रिश्वत की ये रकम राज्य सरकार के तब के अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के मुंशी लेकर गए थे। ये रकम उस वक्त पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में जज जस्टिस निर्मल यादव तक पहुंचाई जानी थी। गलती से जज निर्मलजीत कौर के घर पहुंचा दी गई। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना पुलिस को दी। दोनों जजों के नाम निर्मल होने के चलते ये गलतफहमी हुई और भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला सामने आ गया।
इसके बाद निर्मल यादव का तबादला उत्तराखंड हाईकोर्ट कर दिया गया और 2011 में उन्होंने रिटायरमेंट ले ली। मामले की जांच शुरू में चंडीगढ़ पुलिस ने की, लेकिन 15 दिन के भीतर ही इसे सीबीआई को सौंप दिया गया। वर्ष 2009 में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी लेकिन सीबीआई कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दोबारा जांच के आदेश दिए। साल 2010 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी।
2011 में राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद 3 मार्च 2011 को चार्जशीट दाखिल हुई। 2013 में सीबीआई कोर्ट ने आरोप तय किए और मुकदमे की सुनवाई शुरू की। 2020 में कोविड-19 महामारी के चलते सुनवाई प्रभावित हुई। 2024 में 76 गवाहों की गवाही पूरी हुई और 10 गवाह मुकदमे के दौरान पलट गए। सीबीआई ने 2011 में चार्जशीट दायर की, जिसमें जज निर्मल यादव सहित कई अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया।
रिपोर्ट: मोनी देवी
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