एक को मनाऊं तो दूजा रूठ जाता है, अब महाराष्ट्र में भाजपा की पूर्व सांसद ने छोड़ी पार्टी
- महाराष्ट्र में भाजपा बगावत से जूझ रही है। हालांकि पार्टी कई नेताओं को मनाने में कामयाब रही, लेकिन अब पूर्व सांसद ने बागी रुख अख्तियार कर लिया है।
महाराष्ट्र में भाजपा बगावत से जूझ रही है। हालांकि पार्टी कई नेताओं को मनाने में कामयाब रही, लेकिन अब पूर्व सांसद ने बागी रुख अख्तियार कर लिया है। भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता और नांदूरबार से पूर्व सांसद हीना गावित ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। भाजपा अक्कालकुवा सीट पर महायुति गठबंधन की संयुक्त उम्मीदवार शिंदे सेना की अमाष्या पाडवी का समर्थन कर रही है। इसी सीट से हीना ने भी पर्चा भरा है। पार्टी ने हीना को पर्चा वापस लेने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने पार्टी के फैसले पर बागी रुख अख्तियार कर लिया है। प्रदेश नेतृत्व ने हीना को चेतावनी दी थी कि अगर वो पर्चा वापस नहीं लेती हैं तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। इसके बाद उन्होंने अपना इस्तीफा पार्टी नेतृत्व को भेज दिया है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में हीना गावित को गोवल पाडवी से हार का सामना करना पड़ा था। गोवल अक्कालकुवा सीट से वर्तमान विधायक हैं। कांग्रेस ने इस बार भी गोवल को उम्मीदवार बनाया है। दिलचस्प बात यह है कि हीना के पिता और प्रदेश के आदिवासी विकास मंत्री विजयकुमार गावित नांदूरबार विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं। उत्तरी महाराष्ट्र से एक भाजपा नेता ने कहाकि हिना ने केसी पाडवी से बदला लेने के लिए खुद को मैदान में उतारा है। ताकि वह लोकसभा चुनाव में केसी बेटे से मिली हार का बदला ले सकें। भाजपा नेता का यह भी कहना है कि पार्टी की नीतियों के खिलाफ आदिवासियों में असंतोष है। पार्टी द्वारा कार्रवाई की धमकी के अलावा उनके इस्तीफे के पीछे यह एक और कारण हो सकता है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा बगावत से जूझ रही है। हालांकि नाम वापसी के आखिरी दिन वह डैमेज कंट्रोल में कामयाब रही। भाजपा उन नौ उम्मीदवारों को मनाने में कामयाब रही, जो पार्टी का साथ छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रहे थे। रूठे नेताओं को मनाने की कवायद में भाजपा हाईकमान पूरे जोर-शोर से लगा हुआ था। इसमें डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की भी अहम भूमिका रही। इन नौ में गोपाल शेट्टी का भी नाम शामिल था। बता दें कि महाराष्ट्र चुनाव में लगभग सभी प्रमुख पार्टियों को बगावत का सामना करना पड़ता है।