महाराष्ट्र में एक ही नाव पर क्यों सवार MVA और NDA, एक जैसी उलझन में दोनों गठबंधन; दोनों तरफ शिवसेना ने फंसाया पेच
जिस तरह से भाजपा को देवेंद्र फडणवीस सबसे बिकाऊ चेहरे लगते हैं, उसी तरह शिवसेना को एकनाथ शिंदे और एनसीपी को अजित पवार लगते हैं। इसलिए महायुति गठबंधन इस मसले पर फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है क्योंकि अगर तीनों में से किसी भी चेहरे का ऐलान हुआ तो बाकी दो चहेरे के नेतृत्व वाले दल भड़क सकते हैं।
महाराष्ट्र में अक्तूबर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। फिलहाल राज्य में एकनाथ शिंदे की अगुवाई में महायुति यानी NDA गठबंधन की सरकार है। इसमें शिंदे की शिवसेना के अलावा भाजपा और अजित पवार की एनसीपी शामिल है। चुनाव सिर पर हैं लेकिन अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इस पर महायुति गठबंधन में खामोशी छाई हुई है। हालांकि, गठबंधन के नेता 20 अगस्त से संयुक्त रूप से चुनावी रैलियां करने का ऐलान कर चुके हैं। ये रैलियां संयुक्त रूप से इसलिए हो रही हैं ताकि जनता के बीच यह संदेश जा सके कि महायुति एकजुट है।
हालांकि, महायुति के दो घटक दलों मुख्यमंत्री शिंदे की शिवसेना और उप मुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी के बीच खटपट की खबरें आम हैं। बावजूद इसके कोशिश हो रही हैं कि एकजुटता दिखाई जाय। उधर, भाजपा के वरिष्ठ नेता ने यह कहते हुए स्थिति साफ कर दी है कि भले ही शिंदे राज्य के मुख्यमंत्री हों लेकिन जब राजनीतिक वर्चस्व की बात आती है तो देवेंद्र फडणवीस का कद उनसे ऊंचा हो जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर भाजपा देवेंद्र फडणवीस को अगला सीएम चेहरा क्यों नहीं घोषित करती?
दरअसल, जिस तरह से भाजपा को देवेंद्र फडणवीस सबसे बिकाऊ चेहरे लगते हैं, उसी तरह शिवसेना को एकनाथ शिंदे और एनसीपी को अजित पवार लगते हैं। इसलिए महायुति गठबंधन इस मसले पर फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है क्योंकि अगर तीनों में से किसी भी चेहरे का ऐलान हुआ तो बाकी दो चहेरे के नेतृत्व वाले दल भड़क सकते हैं। वैसे 2019 के चुनावों में भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस को सीएम चेहरा बताकर चुनाव लड़ा था। तब भाजपा के साथ अविभाजित शिवसेना थी लेकिन जैसे ही चुनाव संपन्न हुए, सीएम पद पर दोनों दलों के बीच खटपट हो गई और दोनों की राहें जुदा हो गईं। इससे पहले फडणवीस 2014 से 2019 तक पांच साल तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
उधर, विपक्षी महाविकास अघाड़ी गठबंधन में भी यही हाल है। वहां भी सीएम चेहरे का ऐलान नहीं हुआ है, जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता संजय राउत इसकी मांग कर चुके हैं। अभी हाल ही में उद्धव ठाकरे बेटे आदित्य ठाकरे के साथ तीन दिनों के दिल्ली दौरे पर थे। माना जा रहा है कि शिवसेना और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे और सीएम फेस पर रार है। इसलिए महाविकास अघाड़ी यानी MVA भी NDA की तरह समान उलझन से जूझ रहा है। बड़ी बात है कि दोनों ही तरफ शिवसेना (महायुति में शिंदे की सेना और महाविकास अघाड़ी में उद्धव की सेना) सीएम चेहरे पर पेच फंसा रही है।
शिंदे जहां मौजूदा गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री हैं और फिर से गठबंधन के सत्ता में लौटने पर अपना सीएम पद का दावा नहीं छोड़ना चाहते हैं, वहीं उद्धव ठाकरे पूर्व मुख्यमंत्री हैं और वह भी अपना पुराना रुतबा छोड़ना नहीं चाहते हैं। हालिया लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 13 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना (यूबीटी) ने 9 सीटें जीतीं थीं और एनसीपी (एसपी) ने 8 सीटें जीतीं थीं। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने सिर्फ़ 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि एनसीपी (एसपी) ने 10 और शिवसेना (यूबीटी) ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसलिए कांग्रेस अपना पलड़ा भारी समझ रही है लेकिन उद्धव टीम का कहना है कि उद्धव के मुकाबले कोई चेहरा MVA में नहीं है।