अब ऑफिस में महिलाओं को नहीं झेलना पड़ेगा यौन उत्पीड़न, जान लें भारत का कानून
अपनी सुरक्षा की चिंता किए बिना बेफिक्र होकर नौकरी करना हर महिला का अधिकार है। कार्यस्थल पर महिला को सुरक्षित माहौल प्रदान करने के लिए भारत में अलग से एक कानून है। क्या है यह कानून और इसके तहत क्या हैं आपके अधिकार, बता रही हैं शमीम खान
महिलाओं को आज भी अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों में से एक है, कार्यस्थल पर होने वाला शारीरिक शोषण। पर, इस शोषण से उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारत में अलग से एक व्यवस्था है। कामकाजी महिलाओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए और उनको शारीरिक शोषण से बचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम लागू किया था, जिसे संक्षिप्त में पीओएसएच (ढडरऌ) भी कहा जाता है। यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है। यौन उत्पीड़न शारीरिक/मानसिक/ आभासी हो सकता है। यौन उत्पीड़न की शिकार महिला को सलाह दी जाती है कि वह अपने कार्यस्थल पर आंतरिक समिति, जिसे पीओएसएच समिति भी कहा जाता है, से संपर्क करें और अपनी शिकायत दर्ज कराए। यदि यौन उत्पीड़न की शिकायत नियोक्ता के विरुद्ध है तो इस स्थिति में पीड़ित महिला शिकायत उस जिले की स्थानीय समिति (एलसी) के पास दर्ज करानी होगी, जहां कार्यस्थल है।
क्या है यौन उत्पीड़न के दायरे में?
पीओएसएच कानून के तहत यौन उत्पीड़न प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यौन प्रकृति का कोई भी अवांछित कार्य है, जिसमें शारीरिक संपर्क या चेष्टा, कामुक टिप्पणियां, यौन संबंधों की मांग या अनुरोध, यौन संबंधों के संबंध में धमकी आदि शामिल हैं। पोर्न दिखाना या किसी भी प्रकार के आभासी उत्पीड़न को भी इसमें शामिल किया गया है।
कौन दर्ज करा सकता है शिकायत
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली कोई भी महिला (किसी भी उम्र की), जो उस कार्यस्थल पर कार्यरत हो, उस संगठन की आंतरिक समिति (आईसी या आईसीसी) में शिकायत दर्ज कर सकती है। इसी तरह से एलसी और महिला महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्युसीडी) की वेबसाइट रऌी-इङ्म७ पर भी किसी भी उम्र की कोई भी महिला अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की शिकायत कर सकती है। यदि किसी संस्थान के पास आईसी नहीं है, तो उस स्थिति में, जिले की स्थानीय शिकायत समिति (एलसी या एलसीसी) के पास घटना के तीन माह के भीतर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है या नजदीकी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कर सकती है।
संस्थानों के लिए जरूरी है आईसी
दस या अधिक कर्मचारियों वाले सभी संस्थानों को पीओएसएच कानून की धारा 4 के अनुसार एक आईसी का गठन करना अनिवार्य है। यदि ऐसे संगठन ने आईसी का गठन नहीं किया है, तो उन्हें गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। पहली बार अपराध करने पर 50,000 रुपये का जुर्माना निर्धारित है। अगर संस्थान कानूनी नोटिस या अदालत के आदेश के बावजूद आईसी का गठन नहीं करता है, तो उस स्थिति में उस संस्थान का व्यवसायिक लाइसेंस रद्द हो सकता है।
क्यों झिझकती हैं महिलाएं
-कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं के द्वारा शिकायत दर्ज कराना कठिन नहीं है, लेकिन उसके बाद उन्हें जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, कई बार वो यौन उत्पीड़न से ज्यादा तकलीफदेह होती हैं। एक अध्ययन के अनुसार करीब 80 प्रतिशत महिलाएं कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ नीतियों के बारे में जानती थीं। लेकिन, लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं अभी भी ऐसी घटनाओं के बारे में आंतरिक समिति से शिकायत करने से झिझकती हैं। आधी से अधिक महिलाएं इस बारे में आश्वस्त नहीं होतीं कि वो उसी स्थान पर काम करना जारी रखेंगी, जहां उनका यौन उत्पीड़न हुआ था। निम्न वजहों से महिलाएं शिकायत करने से बचती हैं:
-सहकर्मी शिकायत दर्ज कराने वाली कर्मचारी को पीड़ित के रूप में देखने लगते हैं और उसका समर्थन नहीं करते। ऐसे में उसे कार्यस्थल पर सामान्य रूप से काम करने में कई परेशानियां आती हैं।
-कभी-कभी, आईसी के सदस्य बेहद असंवेदनशील तरीके से घटनाओं के संबंध में प्रश्न पूछते हैं। उनका लहजा और भाषा ऐसी होती है कि पीड़िता असहज महसूस करती है।
-शिकायत दर्ज कराने वाली महिलाओं को कार्यस्थल पर कई तरह के प्रतिरोधों का सामना करना पड़ता है। जैसे उन्हें किसी कार्य के लिए कम समय देना, बिना जरूरत के देर तक रुकने के लिए कहना, किसी कार्य या प्रोजेक्ट से दूर रखना या अप्रत्यक्ष रूप से संस्थान छोड़ने का दबाव बनाना।
-ऐसे मामलों में कई जांचें और प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। पीड़िता की बहुत ज्यादा ऊर्जा कार्यवाही पर नजर रखने में खर्च हो जाती है।
(दिल्ली उच्च न्यायालय में वकील अनुज कुमार से बातचीत पर आधारित)
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