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हर सांस के लिए 10 रुपये की 'हवा खरीदते' थे बीजिंग के लोग, चीन ने कैसे जीती प्रदूषण की जंग; समझिए

  • चीन ने प्रदूषण के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक दिन में महत्वपूर्ण जीत हासिल नहीं की। इस संकट से निपटने के लिए उसे कई व्यापक रणनीतिक योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करना पड़ा।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, बीजिंगWed, 20 Nov 2024 05:48 PM
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दिल्ली और बीजिंग - एशिया के दो ताकतवर शहर हैं। लेकिन कुछ सालों पहले तक दोनों ही शहरों की एक ही ऐसी समस्या थी- वायु प्रदूषण। इसने राजधानियों की आर्थिक और सामाजिक बुनियाद को हिलाकर रख दिया। अब इस मामले में बीजिंग जंग जीत चुका है जबकि दिल्ला का दम घुट रहा है। दिल्ली में दो हफ्तों से सूरज का दीदार नहीं हुआ, स्कूल बंद हैं, और लोग खांसी, गले में जलन, और सांस लेने में तकलीफ से परेशान हैं। यह हालत 2024 के दिल्ली है। कुछ ऐसी ही हालत बीजिंग की 2013 में देखी गई थी।

वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): हालात बदतर

19 नवंबर 2024 को बीजिंग का AQI 137 था, जबकि दिल्ली में यह 750 पर पहुंच गया। कुछ स्थानों पर तो यह 1,500 तक रिकॉर्ड किया गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्य स्तर से 15 गुना ज्यादा है। दिल्ली में प्रदूषण के मुख्य कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र, और उद्योगों की गंदगी हैं। इसके अलावा, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पराली जलाने का धुआं दिल्ली की हवा को और जहरीला बना देता है।

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चीन में बदतर थे हालात

चीन पहले तेल की अत्यधिक खपत के कारण गंभीर प्रदूषण से जूझता था। लगभग एक दशक पहले, 2013 में, वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो गई थी कि PM2.5 का स्तर 101.56 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हवा तक पहुंच गया था। 2013 में, बीजिंग में दो सप्ताह तक जहरीली हवा के कारण लोगों में भारी आक्रोश था।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, विरोध को देखते हुए चीन ने बहु-वर्षीय मिशन के लिए 100 बिलियन डॉलर अलग रखे और एक राष्ट्रीय वायु कार्य योजना जारी की। इसने पहली बार वायु-गुणवत्ता डेटा प्रकाशित करना भी शुरू किया। इससे पहले, पान शिया जैसे अभियानकर्ता बीजिंग में अमेरिकी दूतावास द्वारा जारी किए गए AQI डेटा पर निर्भर थे। योजना के हिस्से के रूप में, बीजिंग को अपने प्रदूषण को 25% तक कम करना था। इसने गंभीरता से इस कार्य को अंजाम दिया।

10 वर्षों की अवधि में इसी पैरामीटर में काफी सुधार हुआ। 2023 में, चीन में PM2.5 वायु प्रदूषण का स्तर 38.98 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हवा था। चीन ने प्रदूषण के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक दिन में महत्वपूर्ण जीत हासिल नहीं की। इस संकट से निपटने के लिए उसे कई व्यापक रणनीतिक योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करना पड़ा।

बीजिंग ने कैसे बदला अपना हाल?

यहां एक बड़ा विरोधाभास है। चीन पिछले 15 सालों से दुनिया में सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है और अब सालाना वैश्विक उत्सर्जन में 30% से ज़्यादा योगदान देता है। 2015 में, बीजिंग में लोग सांस लेने के लिए बोतल में बंद "ताजा हवा" खरीद रहे थे। कनाडाई स्टार्ट-अप 'वाइटलिटी एयर' 160 ग्राम की बोतल को 1,500 रुपये में बेच रहा था, जिसमें 150 सेकंड की ताजा हवा थी। यानी हर सांस के लिए लोग 10 रुपये खर्च करने को मजबूर थे। हालांकि, दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक अपने सबसे खराब शहर बीजिंग की हवा को साफ करने में कामयाब रहा है।

आईसीएलईआई-लोकल गवर्नमेंट्स फॉर सस्टेनेबिलिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस बड़े बदलाव में एक मुख्य कारक शहरी रेल का विस्तार था। देश की कार-केंद्रित परिवहन प्रणाली एक स्थायी गतिशीलता मॉडल में बदल गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में एक अत्याधुनिक एकीकृत वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क स्थापित किया गया था, जिसके कारण एचडी सैटेलाइट, रिमोट सेंसिंग और लेजर रडार जैसी उच्च गुणवत्ता वाली तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। इससे देश को प्रदूषण की बेहतर निगरानी करने में मदद मिली।

शहर भर में 1000 से अधिक सेंसर के साथ PM2.5 के स्तर की निगरानी करने वाली नेटवर्क प्रणालियों ने अधिकतम प्रदूषणकारी कारकों का उत्सर्जन करने वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद की। निम्न उत्सर्जन क्षेत्र (LEZ), पंचवर्षीय योजनाएं और नई ऊर्जा वाहनों (NEV) को प्रोत्साहित करने जैसी कई अन्य पहलों ने चीन में प्रदूषण के स्तर को कम करने में भारी योगदान दिया।

बीजिंग की अन्य रणनीतियां

चीन ने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कानूनों को सख्ती से लागू किया। कोयले से चलने वाले पुराने बिजली संयंत्र बंद किए गए। बीजिंग के आस-पास के औद्योगिक संयंत्रों को दूरदराज के इलाकों में स्थानांतरित किया गया। बीजिंग में वाहनों की संख्या नियंत्रित करने के लिए "ऑड-ईवन" योजना लागू की गई और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया गया। इसके अलावा, सौर और पवन ऊर्जा जैसे ग्रीन एनर्जी स्रोतों में निवेश किया गया। प्रदूषण कम करने में जनता की भूमिका को समझाने के लिए व्यापक अभियान चलाए गए। चीन अब दुनिया भर में सबसे तेज़ वायु गुणवत्ता सुधार का दावा करता है।

दिल्ली की विफलता

दूसरी तरफ, दिल्ली में नीतियों का अभाव और क्रियान्वयन की कमी है। पराली जलाने को रोकने के लिए सरकारें ठोस समाधान नहीं निकाल सकीं। सार्वजनिक परिवहन पर कम ध्यान और निजी वाहनों की बढ़ती संख्या प्रदूषण को बढ़ा रही है। उद्योगों और बिजली संयंत्रों से निकलने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए कानून कमजोर हैं। दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच समन्वय का अभाव भी एक बड़ी समस्या है।

बीजिंग ने दिखाया कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सही नीतियों के माध्यम से वायु प्रदूषण से निपटा जा सकता है। दिल्ली को इस सबक से सीखने की जरूरत है। वरना, आने वाले सालों में स्थिति और भयावह हो सकती है। दिल्लीवासियों को सांस लेने का अधिकार मिलना चाहिए, और यह तभी संभव है जब सरकारें सख्त कदम उठाएं और जनता भी अपनी जिम्मेदारी निभाए।

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