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Hindi Newsहरियाणा न्यूज़Who was Gaya Lal and what is The origins of Aaya Ram gaya Ram Haryana Assembly Election

पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव से मशहूर हुआ था 'आया राम-गया राम', कांग्रेस विधायक ने बनाया था इतिहास

  • क्या कभी सोचा है कि आखिर ये 'आया राम-गया राम' का मुहावरा आया कहां से? दरअसल ये मुहावरा भी असल में दल-बदल की ही एक फेमस घटना से जुड़ा है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, चंडीगढ़Thu, 22 Aug 2024 02:01 PM
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The origins of Aaya Ram gaya Ram: भारतीय राजनीति में 'आया राम-गया राम' का मुहावरा बहुत फेमस है। जब भी कोई नेता एक से ज्यादा बार पार्टी बदलता है तो लोग अक्सर उसके लिए 'आया राम-गया राम' के मुहावरा का इस्तेमाल कर मजे लेते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि आखिर ये 'आया राम-गया राम' का मुहावरा आया कहां से! दरअसल ये मुहावरा भी असल में दल-बदल की ही एक फेमस घटना से जुड़ा है।

भारतीय राजनीति में दल-बदल की घटनाएं नई नहीं हैं, लेकिन अगर इसकी जड़ों की तलाश की जाए, तो हम हरियाणा की राजनीति में 1967 के एक चर्चित और ऐतिहासिक किस्से तक पहुंचते हैं। यह किस्सा है "आया राम-गया राम" का, जो आज भी भारतीय राजनीति में दल-बदल के लिए एक मुहावरा बन चुका है।

आया राम-गया राम की कहानी

1967 के हरियाणा विधानसभा चुनावों के बाद, राज्य में एक अस्थिर राजनीतिक माहौल बना हुआ था। पंजाब के अलग होकर बने हरियाणा राज्य का ये पहला विधानसभा चुनाव था। इस चुनाव में हरियाणा के हसनपुर निर्वाचन क्षेत्र (अब होडल) से गया लाल ने जीत हासिल की थी। अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित हसनपुर सीट से चुनाव लड़ने वाले एक निर्दलीय उम्मीदवार गया लाल ने कांग्रेस के एम सिंह को 360 वोटों से हराया था। उन्हें 10,458 वोट मिले जबकि एम सिंह को 10,098 वोट मिले। हालांकि, कुछ दिनों बाद गया लाल खुद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।

गिर गई थी कांग्रेस सरकार

तत्कालीन 81 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस ने 48 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया था। भारतीय जनसंघ या बीजेएस (जिससे भाजपा उभरी) ने 12 सीटें जीतीं, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) ने 2 सीटें जीतीं, स्वतंत्र पार्टी ने 3 सीटें जीतीं और निर्दलीय उम्मीदवारों ने मिलकर 16 सीटें जीतीं और इस तरह 10 मार्च 1967 को कांग्रेस के भगवत दयाल शर्मा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन एक हफ्ते के भीतर ही 12 कांग्रेस विधायकों के दलबदल के बाद उनकी सरकार गिर गई। निर्दलीय विधायकों ने भी एक नई पार्टी बनाई, जिसे 'संयुक्त मोर्चा' या संयुक्त विधायक दल (एसवीडी) कहा गया, जिसका नेतृत्व राव बीरेंद्र ने किया। पाला बदलने का सिलसिला जारी रहा और नए संयुक्त मोर्चे ने आखिरकार 48 विधायकों को अपने साथ जोड़ लिया। 24 मार्च, 1967 को राव बीरेंद्र ने नए सीएम के रूप में शपथ ली।

सत्ता में रहना चाहते थे गया लाल

गया लाल सत्ता में काबिज पार्टी में वापस जाना चाहते थे। इसलिए, असमंजस की स्थिति के बीच, राव बीरेंद्र के शपथ ग्रहण से ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और एसवीडी में शामिल हो गए। नौ घंटे के भीतर, उन्होंने तीन बार पार्टी बदली - पहले एसवीडी में शामिल हुए, फिर कांग्रेस में वापस गए और फिर एसवीडी में शामिल हो गए। यही वह समय था, जब गया लाल एसवीडी में वापस आए, तो राव बीरेंद्र ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनका परिचय कराया और घोषणा की, "गया राम अब आया राम हैं"। गया लाल के इस अप्रत्याशित कदम ने भारतीय राजनीति में एक नया शब्द "आया राम-गया राम" जन्म दिया।

हालांकि, तमाम जद्दोजहद के बावजूद राव की सरकार कुछ ही महीने चली और 2 नवंबर को उन्होंने पद छोड़ दिया। राज्य विधानसभा भंग कर दी गई और 1968 में फिर से चुनाव हुए। गया लाल अपने शेष राजनीतिक जीवन में अन्य दलों में जाते रहे और विभिन्न मौकों पर संयुक्त मोर्चा, आर्य सभा, भारतीय लोक दल और जनता पार्टी में शामिल हुए।

राजनीतिक अस्थिरता और दल-बदल की परंपरा

गया लाल की इस हरकत ने हरियाणा में राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ावा दिया। इसके बाद, हरियाणा में दल-बदल की राजनीति ने जोर पकड़ा। विधायक और मंत्री अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के चलते एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल होते रहे, जिससे राज्य में सरकारें गिरती और बनती रहीं। यह दल-बदल का दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया।

आया राम-गया राम का प्रभाव और दल-बदल विरोधी कानून

"आया राम-गया राम" की राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र में एक गंभीर समस्या को उजागर किया। इससे निपटने के लिए 1985 में राजीव गांधी सरकार ने दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) पेश किया, जिसे 52वें संशोधन के रूप में संविधान में शामिल किया गया। इस कानून का उद्देश्य विधायकों और सांसदों को दल-बदल से रोकना और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना था। इस कानून के तहत, अगर कोई विधायक या सांसद अपनी पार्टी छोड़कर किसी दूसरी पार्टी में जाता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है। हालांकि दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों। ऐसे में न तो दल-बदल रहे सदस्यों पर कानून लागू होगा और न ही राजनीतिक दल पर।

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