डिजिटल पेमेंट हुआ और भी सेफ, AI टूल्स ने बढ़ा दीं स्कैमर्स की मुश्किलें; क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
रोजमर्रा लाखों की संख्या में लोग डिजिटल पेमेंट्स करते हैं और इन पेमेंट्स को सुरक्षित बनाने के लिए रियल-टाइम फ्रॉड डिटेक्शन सिस्टम काम करता है। यह सिस्टम क्या है और कैसे काम काम करता है, समझने के लिए हमने एक्सपर्ट से बात की।
फोन निकाला, QR कोड स्कैन किया और फटाफट पेमेंट हो गया। भारत में डिजिटल पेमेंट का विकल्प बड़े मॉल्स से लेकर छोटी सी दुकानों तक मिलने लगा है और ऐसे में हैकर्स या स्कैमर्स भी बैंक अकाउंट में सेंध लगाने की कोशिश में लगे रहते हैं। खास बात यह है कि फ्रॉड डिटेक्शन का तरीका अब एडवांस्ड हो चुका है और फ्रॉड होने से पहले ही संभावित खतरों के खिलाफ जरूरी कदम उठा लिए जाते हैं। डिजिटल पेमेंट से जुड़े फ्रॉड रोकने का तरीका कैसे काम करता है, यह समझने के लिए हमने सीरियल आंत्रपन्योर और इन्फ्लुएंसर रायन मल्होत्रा से बात की। आइए बताते हैं कि AI टूल्स ने कैसे कैसे ऑनलाइन भुगतान को सुरक्षित बनाने में मदद की है।
ऐसे काम करता है रियल-टाइम फ्रॉड डिटेक्शन
रायन ने बताया कि मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म रियल टाइम फ्रॉड को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ढेर सारे मौजूदा डाटा का इस्तेमाल करते हुए यह फ्रॉड से जुड़ी गतिविधियों का पैटर्न समझ जाता है और दोबारा ऐसी गतिविधि की आशंका होने पर फौरन जरूरी कदम उठाए जाते हैं और उसे फ्लैग कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, कोई क्रेडिट कार्ड कंपनी अचानक बहुत ज्यादा भुगतान, नई जगह से पेमेंट या फिर किसी ऐसे पेमेंट की स्थिति में ट्रांसफर ब्लॉक कर सकती है, जो आम तौर पर यूजर नहीं करता और उसके पिछले पैटर्न से हटकर है।
अतिरिक्त सुरक्षा देते हुए कार्डहोल्डर को ना सिर्फ इसकी जानकारी दी जाती है, बल्कि लेनदेन से पहले उससे वेरिफिकेशन लिया जाता है। यह तय करने के बाद कि पेमेंट कार्डहोल्डर ने ही किया है, उसकी प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है। मशीन लर्निंग का फायदा यह है कि यह सिस्टम कहीं ज्यादा प्रभावी रूप से काम करता है और ग्राहकों को बेहतर रियल-टाइम सुरक्षा दी जा सकती है।
अब भी चुनौतियां बने हुए हैं फ्रॉड के नए तरीके
फ्रॉड को रोकने से जुड़ी व्यवस्था के सामने मौजूद चुनौतियों पर चर्चा करते हुए रायन ने बताया कि रियल-टाइम फ्रॉड का पता लगाने के लिए बहुत कम वक्त में बहुत ढेर सारे डाटा को एनालाइज और प्रोसेस करने की जरूरत पड़ती है। हालांकि, यह काम अब एडवांस्ड एनालिटिक्स टूल्स की मदद से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा फ्रॉड करने वाले कोई ना कोई नई तरकीबें आजमाते रहते हैं और इन तरीकों को समझकर फौरन सिस्टम में बदलाव की जरूरत पड़ती रहती है।
ग्राहकों को लेनदेन में दिक्कत ना हो इसलिए फ्रॉड रोकने से जुड़ा सिस्टम बहुत सख्त या कड़ा नहीं किया जा सकता। रायन ने कहा कि अगर सिस्टम एग्रेसिव तरीके से काम करेगा तो संभव है कि ग्राहकों को जरूरी लेनदेन में भी दिक्कत आए और सिस्टम उसे फ्रॉड मानकर फ्लैग कर दे। ऐसी स्थिति में कंपनी और ग्राहक के संबंध पर असर पड़ेगा। जरूरी है कि इससे जुड़ा संतुलन बना रहे और असली लेनदेन प्रभावित ना हों।
क्या पर्सनल डाटा चोरी कर सकते हैं नए AI टूल्स?
हमने रायन के सामने सवाल रखा कि सुरक्षित लेनदेन में मदद करने वाले AI टूल्स के पास अगर यूजर्स का डाटा पहुंच रहा है तो वे इसका गलत इस्तेमाल तो नहीं कर सकते या फिर यह डाटा चोरी तो नहीं हो सकता, बदले में रायन ने इनके काम करने का तरीका समझाया। उन्होंने कहा, ऐसे सही टूल्स का इस्तेमाल करना जरूरी है जिनका पिछला ट्रैक-रिकॉर्ड अच्छा हो और जिनपर भरोसा किया जा सके। इसके अलावा टूल्स एनक्रिप्शन प्रोटोकॉल्स और डाटा सुरक्षा से जुड़े मानकों का पालन करने के चलते यूजर्स का डाटा कभी किसी थर्ड-पार्टी के साथ शेयर नहीं करते।
मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन से लेकर पासवर्ड मैनेजमेंट टूल्स तक अतिरिक्त सुरक्षा लेयर देते हैं, जिससे ग्राहक या फिर एंड-यूजर को ही उसके पर्सनल डाटा पर पूरा कंट्रोल दिया जाए। यही वजह है कि OTP जैसे सेंसिटिव जानकारी कोई बैंक कर्मचारी भी अकाउंट होल्डर से नहीं मांग सकता। टूल्स का काम फ्रॉड रोकने के साथ-साथ मौजूदा डाटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है, जिससे यूजर्स बिना किसी डर या खतरे के डिजिटल भुगतान कर सकें।
डिजिटल पेमेंट आसान बनाने की दिशा में कदम
रायन ने बताया कि उनकी फिनटेक बिजनेस फर्म NeoFinity ने बीते दिनों ऐसे डिजिटल पेमेंट को आसान बनाने के लिए बीते दिनों NeoZAP नाम का पेमेंट स्टिकर डिजाइन किया है। यह पेमेंट टैग किसी भी गैजेट को पेमेंट डिवाइस में बदल सकता है और कॉन्टैक्टलेस पेमेंट का विकल्प देता है। यह नियर फील्ड कम्युनिकेशन (NFC) टेक्नोलॉजी सपोर्ट करता है और रायन की मानें तो यह UPI और डेबिट कार्ड जैसे विकल्पों से भी तेज है। साथ ही यह यूजर्स को कई रिवॉर्ड्स भी ऑफर करेगा।
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