खिलाड़ियों को बढ़ावा दे रहीं सरकारें
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों की घोषणा की है, जिसके बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि अपने देश में खिलाड़ियों को उचित सम्मान नहीं मिलता। यहां तक कि मनु भाकर का उदाहरण देकर बताया जा रहा है कि किस तरह खिलाड़ियों को प्रताड़ित किया जाता है…
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों की घोषणा की है, जिसके बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि अपने देश में खिलाड़ियों को उचित सम्मान नहीं मिलता। यहां तक कि मनु भाकर का उदाहरण देकर बताया जा रहा है कि किस तरह खिलाड़ियों को प्रताड़ित किया जाता है, जबकि सच्चाई यही है कि मनु ने फॉर्म भरते हुए गलती की थी, जो वह बार-बार बताती रहीं। फिर भी, न जाने क्यों आलोचकों को सिवाय आलोचना के कुछ सूझता नहीं। वे तो यही हल्ला कर रहे थे कि मनु का नाम जान-बूझकर लिस्ट में नहीं डाला गया, जबकि ऐसा कुछ नहीं था।
वास्तव में, अपने देश की यही विडंबना है। यहां जितना भी कर लो, कुछ लोग ऐसे मिल ही जाएंगे, जो प्रशंसा करने के बजाय आलोचना में विश्वास करते हैं। खिलाड़ियों को उचित सम्मान न मिलने की बहस भी कुछ ऐसी ही है। यह मानसिक रूप से दिवालिये हो चुके कुछ लोगों की कारस्तानी है। वे जान-बूझकर विवाद खड़ा करना चाहते हैं, ताकि उनको सुर्खियां मिल सके, लेकिन ऐसा करने वाले भूल जाते हैं कि जनता सब कुछ जानती है। वह समझती है कि हमारी सरकारें अब खिलाड़ियों को लेकर कितनी गंभीर हो गई हैं और खेलों को कितना प्रोत्साहित करती हैं। यकीन न हो, तो गांवों तक में घूम लीजिए। आपको हर गांव में ऐसे बच्चे मिल जाएंगे, जो किसी न किसी खेल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उन्हें प्रशासन की ओर से स्थानीय स्तर पर सुविधाएं भी मिल रही हैं, जिनसे वे अपने खेल कौशल को निखार रहे हैं। खेलो इंडिया योजना ने ही क्या कमाल का काम किया है। अब तो गांव-गांव से नए खिलाड़ी निकलकर सामने आ रहे हैं। वे न सिर्फ खेलों में अपना परचम लहरा रहे हैं, बल्कि भारत का नाम भी रोशन कर रहे हैं। इसी साल खेल पुरस्कारों में कई ऐसे खिलाड़ियों को भी सम्मानित किया गया है, जिनकी आर्थिक पृष्ठभूमि बहुत अच्छी नहीं कही जाएगी।
बहरहाल, केंद्र सरकार की योजनाओं को छोड़ भी दें, तो तमाम राज्यों में कई तरह की ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनसे खेलों और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिल रहा है। मुख्यमंत्री खिलाड़ी प्रोत्साहन जैसी योजनाओं से खिलाड़ियों को आर्थिक मदद भी मिल रही है। चूंकि अब सभी खेलों पर ध्यान दिया जा रहा है, इसलिए अलग-अलग विधा के खेलों में नए-नए बच्चे सामने आ रहे हैं। हां, कुछ खेलों में रास्ता अभी लंबा है, लेकिन उम्मीद कायम है कि जल्द ही हम उनमें भी पदक जीतने लगेंगे। हमारे खिलाड़ी इसके लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।
हर्षित, टिप्पणीकार
उपेक्षा के कारण प्राथमिकता में नहीं खेल
सरकार ने देश के विभिन्न खेलों के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को पुरस्कार देकर बहुत ही अच्छा काम किया है। पुरस्कार पाने वाले खिलाड़ियों में मनु भाकर, डी गुकेश सहित चार खिलाड़ियों को खेल रत्न और अन्य 32 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार दिए जाने का एलान किया गया है। जब भी कोई इंसान किसी भी क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करे, तो उसकी हौसला अफजाई जरूर की जानी चाहिए। खिलाड़ियों का प्रोत्साहन जरूरी है, क्योंकि इससे अन्य युवाओं की भी रुचि खेलों में बढ़ती है। ओलंपिक और अन्य खेलों में हमारे देश के खिलाड़ी मेहनत करके मेडल जीतते हैं, लेकिन कई बार उनकी आर्थिक स्थिति बदहाल हो जाती है, क्योंकि सरकारों की तरफ से उनका ख्याल नहीं रखा जाता। इसलिए जरूरी है कि केंद्र व राज्य की सरकारें मिलकर सभी खेलों के खिलाड़ियों की तरफ ध्यान दें और देश के विभिन्न स्थानों से ऐसे खिलाड़ियों को चुनने का अभियान चलाएं, जो विभिन्न खेलों में रुचि रखते हैं। तभी हम ओलंपिक जैसे आयोजनों में अपने देश का नाम अधिक से अधिक रोशन कर सकेंगे।
देखा जाए, तो देश में न प्रतिभाओं का अभाव है, न दक्षता की कमी है, कमी है तो बस सरकारी तंत्र की सक्रियता की। हमारा तंत्र इतना सुस्त है कि कई खिलाड़ी उचित मंच के अभाव में बदहाली का जीवन जीने को मजबूर होते हैं। ऐसे में, सरकारों का जगना तो जरूरी है ही, खेलों पर काम कर रही गैर-सरकारी संस्थाओं का गंभीर होना भी आवश्यक है। ऐसा नहीं है कि संस्थाएं बिल्कुल काम नहीं कर रहीं। कुछ इस दिशा में सक्रिय हैं, लेकिन वे पैसे बहुत लेती हैं, जिस कारण गरीब घरों के बच्चों को आगे बढ़ने का बहुत मौका नहीं मिल पाता है।
खेल-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को प्राइमरी स्कूलों से लेकर कॉलेजों तक के विद्यार्थियों का खेलों में भाग लेना अनिवार्य कर देना चाहिए और खेलों को पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। सरकारों की एक आदत बन चुकी है कि जब कोई खिलाड़ी ओलंपिक या अन्य किसी बड़े मुकाबलों में अच्छा प्रर्दशन करता है, तो वे उस पर इनामों की बौछार कर देती हैं, लेकिन बाकी खिलाड़ियों को बिसरा देती हैं। अगर सरकारें सभी खेलों के प्रति समान रूप से गंभीर बने और खिलाड़ियों को समान मौका उपलब्ध कराए, तो हमारा देश हर खेल में नंबर वन बन सकता है। क्या इसे विडंबना नहीं कहेंगे कि राष्ट्रीय खेल हॉकी होने के बावजूद इस खेल के खिलाड़ियों को लोग नहीं जानते, जबकि क्रिकेटरों पर न्योछावर होते रहते हैं?
राजेश कुमार चौहान, टिप्पणीकार
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