Hindi Newsबिहार न्यूज़villages of Bihar in news after Operation Sindoor gave more than 1 thousand soldiers

ऑपरेशन सिंदूर के बाद चर्चा में बिहार के ये गांव, यहां आब-ओ-हवा में देशप्रेम की गंगा बहती है

दोनों गांव जिले में फौजियों के गांव के नाम से जाने जाते हैं। अब भी जब सीमा पर कुछ हरकत होती है तो इन गांवों के लोग टीवी और रेडियो से चिपक जाते हैं। जब ये सैनिक छुट्टी में अपने गांव आते हैं तो बाकायदा युवाओं के साथ फिल्ड में जाकर बहाली के लिए टिप्स और ट्रेनिंग भी देते हैं।

Sudhir Kumar हिन्दुस्तान, विपिन नागवंशी/अंकित आनंद, भागलपुरSun, 11 May 2025 02:01 PM
share Share
Follow Us on
ऑपरेशन सिंदूर के बाद चर्चा में बिहार के ये गांव, यहां आब-ओ-हवा में देशप्रेम की गंगा बहती है

यह कहानी बिहार के भागलपुर जिले के उन दो गांवों की है, जिसने अब तक देश को लगभग 1000 से अधिक सैनिक दिए हैं। यह गांव गोराडीह प्रखंड का खुटाहा और सुल्तानगंज प्रखंड का कमरगंज है। इन गांवों के युवाओं में अब भी सेना में जाने का जबरदस्त जज्बा है। सुबह और शाम फिजिकल के लिए युवाओं की टोली दौड़ लगाती दिखती है। इन दोनों गांवों से कई सैन्यकर्मी ऐसे भी रहे हैं जो 1965 और 1971 के युद्ध का हिस्सा रहे थे। ऐसे लोगों की प्रेरणा से ही गांव में सेना का कुनबा बढ़ता चला गया।

ये दोनों गांव जिले में फौजियों के गांव के नाम से जाने जाते हैं। अब भी जब सीमा पर कुछ हरकत होती है तो इन गांवों के लोग टीवी और रेडियो से चिपक जाते हैं। जब ये सैनिक छुट्टी में अपने गांव आते हैं तो बाकायदा युवाओं के साथ फिल्ड में जाकर बहाली के लिए टिप्स और ट्रेनिंग भी देते हैं। खुटाहा गांव के लोग कहते हैं कि यह वीरों की धरती है। गांव की मिट्टी में पल-बढ़कर सैकड़ों सपूत भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं या दे रहे हैं।

ये भी पढ़ें:पटना एयरपोर्ट से इन जगहों के लिए 15 मई तक रद्द रहेगी फ्लाइट, देखें डिटेल

सुल्तानगंज प्रखंड के कमरगंज गांव को लोग सैनिक ग्राम से जानते हैं। इस गांव के आब-ओ-हवा में देशप्रेम की गंगा बहती है। गांव के लगभग हर घर से कोई न कोई युवा देश की सरहद पर गया है। जब भी सीमा पर कोई हलचल होता है और सैन्य कार्रवाई शुरू होती है तो गांव की महिलाएं बच्चों के लिए मन्नतें मांगती हैं। शनिवार को भारत-पाक के बीच हुए युद्धविराम की जानकारी मिलते ही गांववालों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया, लेकिन बेटे की बहादुरी पर अभिमान कम नहीं है। धर्मी देवी बताती हैं कि उनका बेटा छुट्टी पर आया था, लेकिन जब जरूरत पड़ी तो ड्यूटी पर चला गया।

कमरगंज गांव की दो पीढ़ियों ने की देश सेवा, तीसरी कर रही तो चौथी तैयारी में जुटी: इस गांव की दो पीढ़ी देश की सेवा कर चुकी है तो वहीं देश की तीसरी पीढ़ी देश की सेवा कर रही है। जबकि चौथी पीढ़ी इन दिनों रोजाना गंगा व हाइवे किनारे कसरत करके खुद को शारीरिक रूप से दक्ष बना रहा है तो वहीं पढ़ाई करके सेना में जाने का मार्ग प्रशस्त करने में जुटा है। इस गांव में कुल छह हजार की आबादी है। इनमें से आज की तारीख में तकरीबन 100 से अधिक युवा भारतीय वायु सेना, थल सेना, जल सेना से लेकर आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ से लेकर तमाम अर्द्धसैनिक बलों में तैनात हैं। गांव के ओम कुमार बताते हैं कि इस गांव में हर घर से एक से दो युवा बतौर सैनिक या अर्द्धसैनिक काम कर रहा है। वहीं गांव के करीब 100 से 150 युवा सेना का जवान बनने के लिए सेना की तैयारी में जुटे हैं।

ये भी पढ़ें:जम्मू में पाक की नापाक हरकत, गोलीबारी में बिहार के जवान मोहम्मद इम्तियाज शहीद

खुटाहा गांव ने कई बार युद्ध का दंश झेला, लेकिन हौसला कम नहीं

खुटाहा गांव ने कई बार युद्ध का दंश झेला। यहां के सैकड़ों लोग सेना में रहे। कुछ ऐसे सपूत भी हैं जो वापस नहीं लौट पाए। इनमें एक जयफूल यादव भी थे जो एक सैन्य कार्रवाई के दौरान 1992 में शहीद हो गये थे। 1977 में एक सैन्य कार्रवाई के दौरान पठानकोट में प्रतिनियुक्त लोकनाथ यादव ने भी बलिदान दिया था।

तीन भाइयों में एक हुए थे शहीद, फिर परिवार में चाहते हैं सैनिक

खुटाहा में एक परिवार ऐसा भी जिसके तीन बेटे सेना में थे, एक ने सर्वोच्च बलिदान दे दिया। जबकि दो भाई शिव नारायण यादव और बुलेश्वर प्रसाद यादव सेना से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि वे आज भी अपने परिवार के बच्चों को सेना में भेजने को तैयार हैं।

ये भी पढ़ें:भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर, तेजस्वी ने प्रधानमंत्री मोदी से कर दी बड़ी मांग

छविलाल यादव के पीछे चल पड़े थे युवा

सेवानिवृत सुबेदार 91 वर्षीय छवि लाल यादव गांव के चौथे सैनिक थे। छवि लाल जब 1957 में सेना में भर्ती होने के बाद पहली बार गांव आये तो उन्होंने सेना के बारे में गांव के लोगों को जानकारियां दी।

1971 के युद्ध में ढाका में थी निरगुन यादव की पोस्टिंग

गांव के रहने वाले पूर्व सैनिक निरगुन यादव 1971 के युद्ध पोस्टिंग असम में थे, जहां से रातोंरात उन्हें बांग्लादेश के ढाका भेजा दिया गया था। उन्होंने बताया कि जब वे जमीन पर आगे बढ़ रहे थे तो उनके कई साथी शहीद हो रहे थे। इसके बावजूद उनका जज्बा कम नहीं हुआ। वे लगातार आगे बढते रहे। भारतीय वायु सेना ऊपर से बम गिराती थी और इसके बाद वे लोग चढ़ाई करते थे। उनका एक बेटा भी सेना में है।

ये भी पढ़ें:आपकी मांग का सिंदूर पीएम मोदी की ताकत, पाक के खिलाफ ऑपरेशन पर ललन सिंह बोले

गंगा के किनारे बसा है कमरगंज

कमरगंज गांव सुल्तानगंज प्रखंड अंतर्गत है। सुल्तानगंज शहर से लगभग आठ किमी पश्चिम की तरफ पवित्र गंगा नदी के किनारे यह गांव बसा है। इस गांव की आबादी करीब छह हजार है। एक हजार से अधिक घर हैं। गांव के बीच से एनएच 80 सड़क भी गुजरती है। कमरगंज ग्राम पंचायत के मुखिया भरत कुमार ने बताया कि मुझे इस बात का गर्व है कि हमारी पंचायत के कमरगंज में तीनों सेना में युवक तैनात होकर देश की सेवा में लगे हुए हैं। अब भी कई युवा ऐसे हैं जो देश की सेवा में जाने को आतुर हैं। सुबह शाम ये बच्चे अपनी फिजिकल ट्रेनिंग करते हैं।

ये भी पढ़ें:... तो 48 घंटे भी नहीं टिकेगा पाकिस्तान, ऑपरेशन सिंदूर पर बोले कारगिल के जांबाज

भागलपुर शहर से छह किमी दूरी पर खुटाहा

गोराडीह प्रखंड का खुटाहा गांव भागलपुर से महज छह किमी दूरी पर है। खुटाहा दो टोले की तरह है और अकेले पूरा पंचायत है। लगभग 10 हजार यहां की आबादी है। दो हजार के करीब घर हैं। खेत को समतल कर यहां मैदान बनाया गया है और वहीं लड़के फिजिकल की तैयारी करते हैं। गांव के मुखिया देवेन्द्र कुमार यादव कहते हैं कि गांव के युवाओं में सेना बनने का क्रेज पीढ़ियों से है। इस गांव ने अब तक एक हजार से अधिक सैनिक देश को दिया है। मैं खुद पूर्व सैनिक हूं।

अगला लेखऐप पर पढ़ें