Sharda Sinha Demise: बेटियों का स्टेज पर गाना ठीक नहीं..., शारदा सिन्हा ने उस दौर से निकल कैसे बनाई पहचान

Sharda Sinha Demise: साल 1978 में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के प्रसिद्ध गीत 'उग हो सूरज देव' गाकर उन्होंने लोकगायिका के तौर पर अपनी अलग पहचान बनाई। आज दुनियाभर में स्वर कोकिला शारदा सिन्हा के करोड़ों चाहने वाले हैं।

Nishant Nandan हिन्दुस्तान टीम, पटनाWed, 6 Nov 2024 12:59 PM
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सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन की खबर सुनते ही मंगलवार की रात उसके पैतृक गांव सुपौल जिले के हुलास पंचायत वार्ड 2 में मातम पसर गया। इस दौरान शारदा सिन्हा के प्रशंसकों के साथ उनके परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। शारदा सिन्हा को चाहने वालों के आसूं थम नहीं रहे हैं। हर कोई गमगीन है। साल 1978 में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के प्रसिद्ध गीत 'उग हो सूरज देव' गाकर उन्होंने लोकगायिका के तौर पर अपनी अलग पहचान बनाई। आज दुनियाभर में स्वर कोकिला शारदा सिन्हा के करोड़ों चाहने वाले हैं। वहीं लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के पहले दिन शारदा सिन्हा का दुनिया से अलविदा कहना चाहने वालों को भावुक कर रहा है।

हुलास पंचायत वार्ड 2 में दिवंगत सुखदेव ठाकुर की पांचवी संतान शारदा सिन्हा का जन्म एक अक्टूबर 1952 को हुआ। शारदा अपने 8 भाई-बहनों में इकलौती थी। उनके पिता शिक्षा विभाग में एक वरिष्ठ अधिकारी थे। शारदा को बचपन से संगीत से लगाव हो गया था। जिस कारण उन्होंने बचपन में पढ़ाई के साथ अपने ही गांव के एक संगीत शिक्षक रामचन्द्र झा से पारंपरिक तरीके से संगीत शिक्षा प्राप्त की। इस दौरान वह तबला वादक पंडित युगेश्वर झा के साथ अपने सुर का रियाज करती थीं। धीरे-धीरे शारदा का संगीत से लगाव गहराता चला गया। वहीं उन्होंने सुपौल के विलियम्स हाईस्कूल में दाखिला लिया। यहां संगीत शिक्षक पंडित रघु झा ने उन्हें आगे की संगीत शिक्षा देते हुए शारदा के सुर-ताल को असाधारण करने में बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि, शारदा के लिए अभी मुख्य चुनौती आना बांकी था।

दरअसल जानने वाले बताते हैं कि उस जमाने में स्टेज पर बेटियों का गायिकी करना ठीक नहीं माना जाता था। जिस कारण शारदा के गायिकी करने पर स्थानीय ग्रामीणों के साथ परिजनों के बीच दबे मुंह विरोध उठना शुरू हो गया था। इस बीच शारदा के पिता ने उनका पूरा साथ दिया और उन्हें गायिकी करने के लिए प्रोत्साहित किया। वहीं हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान ही नवरात्रि में छुट्टी पर शारदा अपने परिवार संग अपने घर हुलास पहुंची थीं।

इस दौरान हुलास पंचायत के ब्राह्मण टोला के दुर्गा मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होना था। परिजनों की मानें तो शारदा के पिता के कहने पर आयोजनकर्ताओं ने शारदा को अपना हुनर दिखाने का अवसर दिया। शारदा ने पहली बार इसी स्टेज पर अपनी प्रतिभा लोगों के सामने प्रस्तुत किया। जिसके बाद शारदा के गांव वालों के साथ आसपास के कई इलाकों के लोग शारदा के गायिकी के कायल हो गए थे। वहीं शारदा ने धीरे-धीरे अपने कारवां को आगे बढ़ाना जारी रखा और आखिरकार वह लोक गायिकी की दुनिया में बेमिसाल पहचान बनाने में कामयाब हुई।

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