आरक्षण कानून रद्द होने से बिहार में लटकी डॉक्टरों की बहाली; कोटा को लेकर असमंजस
बिहार आरक्षण कानून रद्द होने के बाद अब राज्य के मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की बहाली लटक गई है। स्वास्थ्य विभाग ने 1339 पदों के लिए विज्ञापन निकाला था। जिसे अब संसोधित करके जारी किया जाएगा।
पटना उच्च न्यायालय द्वारा 20 जून को पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने के बिहार सरकार के फैसले को रद्द करने के बाद बिहार के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की बहाली का इंतजार और लंबा हो गया है। 6 जून को लोकसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता हटाए जाने के तुरंत बाद, स्वास्थ्य विभाग ने 9 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 1,339 संकाय पदों का विज्ञापन जारी किया था। जिसे अब संशोधित करना होगा। और पूर्व के कोटा फॉमूले के मुताबिक जारी करना होगा।
अधिकारियों ने कहा कि आरक्षण कोटा में कोई भी बदलाव राज्य कैबिनेट की मंजूरी के बाद ही किया जा सकता है, जिसने जनवरी और मई के बीच राज्य के जाति-आधारित सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर 50% से 65% किया था। जिसका डेटा पिछले साल 2 अक्टूबर को जारी किया गया था। पटना हाईकोर्ट के आदेश के लगभग 20 दिन बाद भी, बिहार कैबिनेट ने अभी तक अपना निर्णय रद्द नहीं किया है।
सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी ने कहा, कि राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। स्वास्थ्य विभाग ने जून के तीसरे सप्ताह में 1,339 संकाय पदों का विज्ञापन दिया था, जिनमें से ज्यादातर एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर थे। तब भर्ती के लिए आरक्षण रोस्टर बीसी, ईबीसी, एससी और एसटी को 65% आरक्षण के आधार पर तैयार किया गया था।
पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार की खंडपीठ ने बिहार में पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को रद्द कर दिया। और अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता का उल्लंघन बताया है।
आपको बता दें बिहार विधानमंडल ने 2023 में दोनों अधिनियमों में संशोधन किया था, नौकरियों और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया था। राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर, राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए कोटा 16% से बढ़ाकर 20%, अनुसूचित जनजाति के लिए 1% से 2%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 18% से 25% और पिछड़ा वर्ग के लिए कोटा 12% से 18% कर दिया था। देश के बड़े राज्यों में बिहार में आरक्षण प्रतिशत सबसे अधिक था, जो कुल 75% तक पहुंच गया है। इसमें ऊंची जातियों के बीच आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा भी शामिल था।